किन्नौर: जिला किन्नौर शिव भगवान के शीतकालीन तपोस्थली मानी जाती है. मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव शीतकालीन समय में किन्नौर के मध्य स्थिति किन्नर कैलाश की पहाड़ियों पर तपस्या करने आते हैं. ऐसे में आज किन्नौर जिले के सांगला व कल्पा के आसपास के कई ग्रामीण इलाकों में महाशिवरात्रि का आयोजन होता है. जिसमें जिले के लोग भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं और भगवान शिव से वर्षभर के लिए सुख-समृद्धि की कामनाएं करते हैं.
क्या है लोगों की मान्यताएं- किन्नौर जिले के बहुत सारे देवी-देवताओं के मंदिर के कपाट भी आज आम जनमानस के लिए खोले जाते हैं. भक्तों के अलावा भगवान शिव व किन्नर कैलाश के स्थानीय देवी-देवता भी पूजा पाठ हवन करते हैं. किन्नौर जिले की मान्यताओं के अनुसार किन्नर कैलाश देवी-देवताओं के स्वर्गलोक की ओर जाने की अहम कढ़ी व मार्ग है. ऐसे में जिले के देवी-देवता अपने मंदिर प्रांगण में निकलते ही सबसे पूर्व किन्नर कैलाश की ओर खड़े होकर पूजा करते हैं.
किन्नौर जिले में सैकड़ों वर्ष पूर्व से ही शिवरात्रि व अन्य पर्व के अवसर पर सबसे पहले किन्नर कैलाश की पूजा की जाती है. आज महाशिवरात्रि के अवसर पर जिले के शिव मंदिर व अन्य मंदिरों में भक्त भगवान शिव की पूजा अर्चना के अलावा नृत्य कर भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं. आज बहुत सारे शिव भगवान के उपासक व्रत या उपवास भी करते हैं.
मानसरोवर कैलाश दिन में सात बार बदलता है अपना रंग- जिले में शिव रात्रि के उपरांत अब लगभग सभी देवी-देवताओं के मंदिरों में वर्षभर होने वाली सांस्कृतिक गतिविधियों को भी शुरू किया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि किन्नर कैलाश मानसरोवर कैलाश के सबसे करीब वाला कैलाश है जो पंच कैलाशों में द्वितीय स्थान पर भी माना जाता में द्वितीय स्थान पर भी माना जाता है. यह कैलाश दिन में सात बार अपना रंग बदलता है.
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