किन्नौर: उत्तराखंड के ऋषि गंगा और धौली गंगा में त्रासदी मचने के बाद किन्नौर में भी वर्ष 2000 व 2005 की त्रासदी की यदि ताजा हुई है. जिला किन्नौर में भी वर्ष 2000 में सतलुज नदी के भयंकर बाढ़ आने से जिला के लोगों के जानमाल के साथ समूचा जिला पूरे एक वर्ष देश दुनिया से कट चुका था.
इस दौरान जिला में लोगों को अपने रोजमर्रा के सामान व अपने नकदी फसल सेब को मंडियों तक ले जाने में समस्याएं आई थी. ऐसे में कई लोगों के सेब की पेटियां तो सड़ कर खराब भी हुई थीं. वहीं, सतलुज त्रासदी में लोगों के जान के साथ पूरे जिंदगी भर की कमाई भी.
2005 में भी सतलुज नदी में बाढ़ आई थी
इसी तरह वर्ष 2005 में भी सतलुज नदी में बाढ़ आई थी. जानकार बताते हैं कि उस समय पारछू बांध टूटकर सतलुज में गिरा था. जिसके बाद वर्ष 2005 को भी सतलुज नदी ने जिला के सतलुज तट के आसपास रहने वाले लोगों के घर व सड़कों को नुकसान हुआ था.
इस बाढ़ में लोगों की जान नहीं गई क्योंकि वर्ष 2005 के बाढ़ दोपहर के आसपास आया था. जिसमें जिला प्रशासन ने लोगों को अलर्ट किया था और नदी के आसपास के लोगों ने घर खाली कर दिए थे और लोगों ने जान बचाई थी, लेकिन लोगों के सेब के बगीचे, बड़े-बड़े भवन सतलुज के बाढ़ की चपेट के आये थे.
सतलुज नदी के आसपास जाने से मनाही
आज उत्तराखंड में इस तरह की त्रासदी देखी जा सकती है. जिसमें सैकड़ों लोग अब तक लापता हैं. ऐसे में उत्तराखंड कई त्रासदी को देख अब जिला किन्नौर प्रशासन ने भी सभी जिलावासियों व पर्यटकों से सतलुज नदी के आसपास जाने से मनाही की है.
डीसी किन्नौर हेमराज बैरवा ने पर्यटकों व स्थानीय लोगों को पहाड़ों व सतलुज के अलावा दूसरे नदी नालों से दूर रहने की अपील की है, ताकि आपदा के समय किसी के जानमाल का नुकसान न हो डीसी ने कहा कि उत्तराखंड की त्रासदी के बाद सरकार ने किन्नौर प्रशासन से लोगो को अलर्ट करने के निर्देश दिए है.
जिला किन्नौर में वर्ष 2000 व 2005 में सबसे अधिक नुकसान वर्ष 2000 को हुआ था. जिसमें सेना के बड़े-बड़े कैंप ढह गए थे. लोगों के घर समेत सेब के बगीचे, नदी के आसपास बड़े-बड़े बाजार सतलुज की चपेट में आये थे.
उस समय लोगों के करोड़ों के सेब की फसल ग्रामीण क्षेत्रों में फंसी हुई थी और हेलीकॉप्टर के माध्यम से लोगों को सरकार द्वारा राशन इत्यादि भेजा जाता था. कई लोगों को अपने इलाज के लिए हेलीकॉप्टर से शिमला तक पहुंचाना पड़ता था.
ये भी पढ़ें- हिमाचल में सतलुज, चिनाब और रावी बेसिन पर लगातार बढ़ रही झीलों की संख्या