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अद्भुत हिमाचल: यहां विवाह में नहीं होते सात फेरे, अंगूरी शराब से होती दुल्हन की विदाई - different traditions of kinnaur wedding

ईटीवी भारत की खास सीरीज 'अद्भुत हिमाचल' में अब तक आपने देवभूमि में निभाए जाने वाले कई रोचक रीति-रिवाजों के बारे में जाना. हमारी कोशिश है कि आप को यहां की अद्भुत परंपराओं के बारे में बताना. इस सीरीज में आज हम आपको जिला किन्नौर की शादी में निभाई जाने वाली अलग-अलग परंपराओं के बारे में बताएंगे.

adhbhut himachal different traditions of kinnaur wedding
फोटो.
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Published : Jan 2, 2021, 3:27 PM IST

किन्नौर: देशभर में शादी से जुड़ी अनेकों परंपराएं हैं, लेकिन जिला किन्नौर में वैवाहिक परंपराएं अलग तरीके से निभाई जाती हैं. यहा विवाह को रानेकांग कहा जाता है. यहां शादी के दौरान सात फेरे नहीं लिए जाते और न ही विवाह के लिए परिवार की सहमति.

किन्नौर में देवी-देवताओं की मर्जी के बाद ही शादी की तारीख निकाली जाती है. शादी की तैयारियां शुरू होते ही भव्य तरीके से देवता को घर पर बुलाया जाता है. बारात में दूल्हे की तरह ही वेशभूषा पहनकर एक साथी को भी तैयार किया जाता है. देवता का आदेश मिलते ही दूल्हे की बारात को दुल्हन के घर जाने को कहा जाता है. दुल्हन के घर जाते समय रास्ते में नदी, नालों के पास पुजारी बुरी शक्तियों को भगाने के लिए पूजा करते हैं.

वीडियो रिपोर्ट.

बारात पहुंचते ही ग्रामीण महिलाएं हाथ में शुर धूप,अंगूरी शराब लेकर दूल्हे का भव्य स्वागत करती हैं. सभी बारातियों को गले मे सूखे मेवों की माला दी जाती है. सूखे मेवों में चिलगोजा,अखरोट,बादाम,काले अंगूर,खुमानी के गिरी होते है. दुल्हन का परंपरागत परिधान और गहनों से श्रृंगार किया गया जाता है.

सिर पर प्रठेपण (टोपी) जो तीन-चार फूलों के रंग से सजी होती है

सिर से पांव तक गहनों से लदी दुल्हन का श्रृंगार देखते ही बनता है. सिर पर प्रठेपण (टोपी) जो तीन-चार फूलों के रंग से सजी होती है. माथे पर बंधा होता है सुंदर डिजाइन का चांदी सोने का जिससे पूरा चेहरा ही ढक जाता है. यह पट्टा पूरे सोने या पूरे चांदी या फिर दोनों धातुओं के संयोग से मिलकर भी बना हो सकता है. नाक पर लौंग, बलाक, बालु (नथ) सोने के बने होते हैं.

गले में लाल व हरे पत्थर के मिश्रण से बनी माला पहनी जाती है जिसे तिंग शुलिक कहा जाता है. हाथ में चूड़ियों के साथ सोने और चांदी के कड़े पहने जाते हैं. सोने के कड़े को सुनंगो और चांदी के कड़े को धागलो कहा जाता है. इसमें दोनों हाथों के कड़ों का भार कम से कम 40 तोला तो रहता ही है. पैरों की अंगुलियों में चांदी का गहना पहना जाता है जिसे बांगपोल कहा जाता है.

किन्नौर के विवाह में सात फेरे नहीं होते यहां दूल्हा दुल्हन को सोने से बने तरमोल नाम के आभूषण को गले में पहनाकर उसे अपनी अर्धांगिनी बनाता है. इस समय न ही कोई फेरे होते है न ही कोई मन्त्र जाप बस जनजातीय जिला की महिलाएं पारम्परिक गीत गाकर और देवता व लामागन के समक्ष उन्हें आशीर्वाद देकर शादी के बंधन में बांधवा दिया जाता है.

परिवार के बड़े सदय अंगूरी शराब लेकर आते हैं

दूल्हे की तरफ से आए मजोमी दुल्हन को हाथ से पकड़कर दुल्हन के घर से बाहर निकालकर घर के द्वार तक लाते है. विदाई के दौरान परिवार के बड़े सदय अंगूरी शराब लेकर आते हैं और माजोमी के हाथ में सौंप देते हैं. इस परंपरां के साथ दुल्हन की विदाई कर दी जाती है.

किन्नौर: देशभर में शादी से जुड़ी अनेकों परंपराएं हैं, लेकिन जिला किन्नौर में वैवाहिक परंपराएं अलग तरीके से निभाई जाती हैं. यहा विवाह को रानेकांग कहा जाता है. यहां शादी के दौरान सात फेरे नहीं लिए जाते और न ही विवाह के लिए परिवार की सहमति.

किन्नौर में देवी-देवताओं की मर्जी के बाद ही शादी की तारीख निकाली जाती है. शादी की तैयारियां शुरू होते ही भव्य तरीके से देवता को घर पर बुलाया जाता है. बारात में दूल्हे की तरह ही वेशभूषा पहनकर एक साथी को भी तैयार किया जाता है. देवता का आदेश मिलते ही दूल्हे की बारात को दुल्हन के घर जाने को कहा जाता है. दुल्हन के घर जाते समय रास्ते में नदी, नालों के पास पुजारी बुरी शक्तियों को भगाने के लिए पूजा करते हैं.

वीडियो रिपोर्ट.

बारात पहुंचते ही ग्रामीण महिलाएं हाथ में शुर धूप,अंगूरी शराब लेकर दूल्हे का भव्य स्वागत करती हैं. सभी बारातियों को गले मे सूखे मेवों की माला दी जाती है. सूखे मेवों में चिलगोजा,अखरोट,बादाम,काले अंगूर,खुमानी के गिरी होते है. दुल्हन का परंपरागत परिधान और गहनों से श्रृंगार किया गया जाता है.

सिर पर प्रठेपण (टोपी) जो तीन-चार फूलों के रंग से सजी होती है

सिर से पांव तक गहनों से लदी दुल्हन का श्रृंगार देखते ही बनता है. सिर पर प्रठेपण (टोपी) जो तीन-चार फूलों के रंग से सजी होती है. माथे पर बंधा होता है सुंदर डिजाइन का चांदी सोने का जिससे पूरा चेहरा ही ढक जाता है. यह पट्टा पूरे सोने या पूरे चांदी या फिर दोनों धातुओं के संयोग से मिलकर भी बना हो सकता है. नाक पर लौंग, बलाक, बालु (नथ) सोने के बने होते हैं.

गले में लाल व हरे पत्थर के मिश्रण से बनी माला पहनी जाती है जिसे तिंग शुलिक कहा जाता है. हाथ में चूड़ियों के साथ सोने और चांदी के कड़े पहने जाते हैं. सोने के कड़े को सुनंगो और चांदी के कड़े को धागलो कहा जाता है. इसमें दोनों हाथों के कड़ों का भार कम से कम 40 तोला तो रहता ही है. पैरों की अंगुलियों में चांदी का गहना पहना जाता है जिसे बांगपोल कहा जाता है.

किन्नौर के विवाह में सात फेरे नहीं होते यहां दूल्हा दुल्हन को सोने से बने तरमोल नाम के आभूषण को गले में पहनाकर उसे अपनी अर्धांगिनी बनाता है. इस समय न ही कोई फेरे होते है न ही कोई मन्त्र जाप बस जनजातीय जिला की महिलाएं पारम्परिक गीत गाकर और देवता व लामागन के समक्ष उन्हें आशीर्वाद देकर शादी के बंधन में बांधवा दिया जाता है.

परिवार के बड़े सदय अंगूरी शराब लेकर आते हैं

दूल्हे की तरफ से आए मजोमी दुल्हन को हाथ से पकड़कर दुल्हन के घर से बाहर निकालकर घर के द्वार तक लाते है. विदाई के दौरान परिवार के बड़े सदय अंगूरी शराब लेकर आते हैं और माजोमी के हाथ में सौंप देते हैं. इस परंपरां के साथ दुल्हन की विदाई कर दी जाती है.

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