कांगड़ा: अगर जिला कांगड़ा में फिर से 1905 वाला भूकंप आया तो तबाही का मंजर पहले से कई गुणा बढ़कर होगा. कांगड़ा जिला में बार-बार आ रहे भूकंप के झटकों से लोग डरे व सहमे से दिखाई देने लगे है.
वैज्ञानिकों की मानें तो भूकंप की भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती, लेकिन भूकंप रोधी तकनीक अपना कर जानमाल की हानि हो कम किया जा सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक को आज अपनाने के लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत है.
वैज्ञानिकों ने यह दावा भी किया है कि इस घाटी में पिछले कुछ दशकों में बहुमंजिला इमारतों के इजाफे के कारण भी यह भूकंप के संवेदनशील क्षेत्र में शामिल हो गई है. उल्लेखनीय है कि जूलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने भूकंप की दृष्टि से कांगड़ा घाटी को संवेदनशील जोन पांच में रखा है. गौरतलब है कि भूकंप को रोका नहीं जा सकता, लेकिन भूकंप से होने वाली जीवन हानि को कम किया जा सकता है.
कॉन्क्रीट जंगल बन रहा है कांगड़ा
इतिहासकारों की मानें तो पिछले छह-सात दशकों में विकास के साथ-साथ बड़े पैमाने पर निर्माण भी हुआ है और बहुमंजिला इमारतें बनाने की होड़ लगी है. उससे भूकंप आने पर भारी तबाही की आशंका है.
वैज्ञानिकों ने आपदा प्रबंधन और जागरूकता बढ़ाए जाने पर बल देने की बात कही है. बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि इस पर सख्ती बरतने की जरूरत है. इसके लिए जागरूकता शिविर में सलाह देने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किया जाए कि क्या वास्तव में भूकंप रोधी तकनीक को तरजीह दी जा रही है या नहीं.
भूकंप रोधी तकनीक का करें इस्तेमाल
भू वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप रोधी तकनीक इस्तेमाल करने से खर्चा थोड़ा सा बढ़ता है, लेकिन जानमाल की हानि कम होती है. लोक निर्माण विभाग के एक्शियन सुशील डढवाल के अनुसार मकान बनाते समय नींव कम चौड़ी या कम गहरी बनाना ठीक नहीं है. दूसरा दीवारों की मोटाई 45 सेंटीमीटर व लंबाई 3.5 मीटर से अधिक नहीं रखी जानी चाहिए और बहुत अधिक खिड़कियां दरवाजे नहीं होने चाहिए और उनके ठीक ऊपर लिंटल लैंड सभी मकानों में लगाना जरूरी है.
8 रिक्टर स्केल थी 1905 में आए भूकंप की तीव्रता
चार अप्रैल 1905 को कांगड़ा में आए विनाशकारी भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8 रिक्टर स्केल मापी गई थी. उनके मुताबिक अगर भूकंप की तीव्रता 9 से अधिक रहती है तो उसमें जानमाल की भारी क्षति होती है. इसलिए भूकंप से बचाव के तमाम उपाय पहले से अपनाने जरूरी हैं.
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