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इन युवाओं ने पेश की मिसाल, नौकरी छोड़ बेसहारा गौवंश को रोजगार के रूप में अपनाया - रोजगार

देसी साहिवाल गौसंरक्षण, संबर्धन और नस्ल सुधार प्रकल्प के रूप में शुरू किया गया नूरपुर के युवाओं का मिशन आज कामयाब होता दिख रहा है. अच्छी खासी नौकरी करने वाले इन युवाओं ने जब इस क्षेत्र को चुना था तो उन्हें इस काम को लेकर कोई विशेष जानकारी नहीं थी.

बेसहारा गौवंश को रोजगार के रूप में अपनाया
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Published : Apr 28, 2019, 12:08 PM IST

कांगड़ाः आज प्रदेश का किसान कृषि और पशुपालन से विमुख हो रहा है. शायद यही कारण है कि सड़कों पर गौवंश भटक रहा है, लेकिन इसी गौवंश को रोजगार के रूप में अपनाकर समाज के लिए मिसाल पैदा की है नूरपुर विधानसभा की गनोह पंचायत के चार युवाओं ने.

देसी साहिवाल गौसंरक्षण, संबर्धन और नस्ल सुधार प्रकल्प के रूप में शुरू किया गया इन युवाओं का मिशन आज कामयाब होता दिख रहा है. अच्छी खासी नौकरी करने वाले इन युवाओं ने जब इस क्षेत्र को चुना था तो उन्हें इस काम को लेकर कोई विशेष जानकारी नहीं थी, लेकिन जज्बा था कि कुछ ऐसा किया जाए जो पूरे प्रदेश के लिए एक मिसाल बने.

Cattle rearing as Business
बेसहारा गौवंश को रोजगार के रूप में अपनाया

ऐसे में उन्होंने विलुप्त होती जा रही साहिवाल नस्ल की गायों को गौशाला में पालना शुरु किया. यह नस्ल हजारों वर्ष पुरानी है, लेकिन आज जर्सी और होलीस्टन प्रजाति आने के कारण साहिवाल नस्ल लुप्त होने के कगार पर है. इसी के सरंक्षण करने और नस्ल सुधारने का काम आज ये गौशाला में हो रहा है.

गौशाला के संचालक ऋषि डोगरा ने बताया कि इस व्यवसाय को चुनने का कारण यही था कि अगर इस गाय का सरंक्षण नहीं किया गया तो यह प्रजाति एक इतिहास बन कर रह जाएगी. उन्होंने कहा कि यह गाय मूलतः पाकिस्तान की नस्ल है, जो बाद में पंजाब और हरियाणा क्षेत्रों के आई, लेकिन हिमाचल प्रदेश में इसकी संख्या न के बराबर है.

जानकारी देते गौवंश संचालक

उन्होंने बताया कि ये गाय प्रदेश की स्थिति के अनुरूप है. जिसमें अत्यधिक गर्मी सहन करने की विशेष क्षमता होती है. इनकी पीठ पर जो कुकुंद होता है और गले में झालर होतीहै वो सुर्यकेतु नाडी का संकेत है जो सूर्य की किरणों को ग्रहण करके उसके अंश को अपने दूध में ग्रहण करती है. जिसमें माना जाता है इसके दूध में सोने के कण पाए जाते है.

इसी से वैदिक घी का निर्माण होता है. वैदिक घी का निर्माण मात्र साहिवाल नस्ल की गायों से ही होता है. उन्होंने कहा कि अगर गाय को हम माता के रूप में देखें तो इससे इतना कुछ मिल सकता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते.

ऋषि डोगरा की मानें तो अमूमन दुग्ध व्यवसाय के लिए ही आजकल डेयरी फार्म चलाए जाते हैं, लेकिन सिर्फ एक ही उद्देश्य से जब कोई काम किया जाता है तो उस कारोबार के फेल होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. उनके अनुसार तो वो दूध बिलकुल नहीं बेचते बल्कि दूध से पैदा होने वाली कई अन्य वस्तुएं तैयार करते हैं.

मौजूदा समय में वो घी के अलावा गौअर्क, फिनायल, धूप-अगरबत्ती और छाछ से तैयार होने वाले लगभग नौ प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं. जो कई बिमारियों की रोकथाम करने में सहायक होते हैं. इन उत्पादों की पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में बहुत मांग है.

वहीं ऋषि डोगरा के बहनोई जो कनाडा में एक अच्छी नौकरी कर रहे थे, उनका कहना है कि बाहर की दुनियां में पैसा तो आप कमा सकते हैं, लेकिन आत्म सकून कहीं नहीं मिलता. इसलिए उन्होंने इस व्यवसाय को चुना. आज की प्रतिस्पर्धा में जहां नौकरियों का टोटा है, वहीं, युवाओं द्धारा इस तरह के स्वरोजगार की तरफ ध्यान देना चाहिए. इससे आर्थिक रोजगार के साथ समाज के उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है.

कांगड़ाः आज प्रदेश का किसान कृषि और पशुपालन से विमुख हो रहा है. शायद यही कारण है कि सड़कों पर गौवंश भटक रहा है, लेकिन इसी गौवंश को रोजगार के रूप में अपनाकर समाज के लिए मिसाल पैदा की है नूरपुर विधानसभा की गनोह पंचायत के चार युवाओं ने.

देसी साहिवाल गौसंरक्षण, संबर्धन और नस्ल सुधार प्रकल्प के रूप में शुरू किया गया इन युवाओं का मिशन आज कामयाब होता दिख रहा है. अच्छी खासी नौकरी करने वाले इन युवाओं ने जब इस क्षेत्र को चुना था तो उन्हें इस काम को लेकर कोई विशेष जानकारी नहीं थी, लेकिन जज्बा था कि कुछ ऐसा किया जाए जो पूरे प्रदेश के लिए एक मिसाल बने.

Cattle rearing as Business
बेसहारा गौवंश को रोजगार के रूप में अपनाया

ऐसे में उन्होंने विलुप्त होती जा रही साहिवाल नस्ल की गायों को गौशाला में पालना शुरु किया. यह नस्ल हजारों वर्ष पुरानी है, लेकिन आज जर्सी और होलीस्टन प्रजाति आने के कारण साहिवाल नस्ल लुप्त होने के कगार पर है. इसी के सरंक्षण करने और नस्ल सुधारने का काम आज ये गौशाला में हो रहा है.

गौशाला के संचालक ऋषि डोगरा ने बताया कि इस व्यवसाय को चुनने का कारण यही था कि अगर इस गाय का सरंक्षण नहीं किया गया तो यह प्रजाति एक इतिहास बन कर रह जाएगी. उन्होंने कहा कि यह गाय मूलतः पाकिस्तान की नस्ल है, जो बाद में पंजाब और हरियाणा क्षेत्रों के आई, लेकिन हिमाचल प्रदेश में इसकी संख्या न के बराबर है.

जानकारी देते गौवंश संचालक

उन्होंने बताया कि ये गाय प्रदेश की स्थिति के अनुरूप है. जिसमें अत्यधिक गर्मी सहन करने की विशेष क्षमता होती है. इनकी पीठ पर जो कुकुंद होता है और गले में झालर होतीहै वो सुर्यकेतु नाडी का संकेत है जो सूर्य की किरणों को ग्रहण करके उसके अंश को अपने दूध में ग्रहण करती है. जिसमें माना जाता है इसके दूध में सोने के कण पाए जाते है.

इसी से वैदिक घी का निर्माण होता है. वैदिक घी का निर्माण मात्र साहिवाल नस्ल की गायों से ही होता है. उन्होंने कहा कि अगर गाय को हम माता के रूप में देखें तो इससे इतना कुछ मिल सकता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते.

ऋषि डोगरा की मानें तो अमूमन दुग्ध व्यवसाय के लिए ही आजकल डेयरी फार्म चलाए जाते हैं, लेकिन सिर्फ एक ही उद्देश्य से जब कोई काम किया जाता है तो उस कारोबार के फेल होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. उनके अनुसार तो वो दूध बिलकुल नहीं बेचते बल्कि दूध से पैदा होने वाली कई अन्य वस्तुएं तैयार करते हैं.

मौजूदा समय में वो घी के अलावा गौअर्क, फिनायल, धूप-अगरबत्ती और छाछ से तैयार होने वाले लगभग नौ प्रकार के उत्पाद तैयार किए जाते हैं. जो कई बिमारियों की रोकथाम करने में सहायक होते हैं. इन उत्पादों की पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में बहुत मांग है.

वहीं ऋषि डोगरा के बहनोई जो कनाडा में एक अच्छी नौकरी कर रहे थे, उनका कहना है कि बाहर की दुनियां में पैसा तो आप कमा सकते हैं, लेकिन आत्म सकून कहीं नहीं मिलता. इसलिए उन्होंने इस व्यवसाय को चुना. आज की प्रतिस्पर्धा में जहां नौकरियों का टोटा है, वहीं, युवाओं द्धारा इस तरह के स्वरोजगार की तरफ ध्यान देना चाहिए. इससे आर्थिक रोजगार के साथ समाज के उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है.


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From:Swarn Rana <swarnhimachalkesari@gmail.com>
Date: Sun, Apr 28, 2019, 10:24 AM
Subject: स्वर्ण राणा नूरपुर
To: <rajneeshkumar@etvbharat.com>


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