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धर्मशाला: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने एक आभासी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में लिया भाग

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने एक आभासी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें बौद्ध धर्म की पाली और संस्कृत परंपराओं चर्चा की गई. दलाई लामा ने कहा कि ''एक धार्मिक व्यवसायी के रूप में, मैं सराहना करता हूं कि सभी धार्मिक परंपराएं और करुणा विकसित करने की आवश्यकता की बात करती हैं''.

Tibetan religious leader Dalai Lama attended a virtual international conference
तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने एक आभासी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में लिया भाग
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Published : Mar 8, 2021, 9:22 PM IST

धर्मशाला: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने एक आभासी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें बौद्ध धर्म की पाली और संस्कृत परंपराओं चर्चा की गई. अपने संबोधन में दलाई लामा ने कहा कि वर्तमान में दुनिया में कम से कम 500 मिलियन बौद्ध हैं. इनके लिए आश्रित उत्पन्न होना उनका दार्शनिक दृष्टिकोण है और जिनके लिए अहिंसा और करुणा उनका मूल आचरण है. पाली और संस्कृत दोनों परंपराओं में तीन प्रशिक्षणों का उद्देश्य प्राणियों को पीड़ा से उबारने में मदद करना है.

पढ़ेंः Women's Day: शिमला समरहिल रेलवे स्टेशन पर पॉइंटमैन पर तैनात पॉइंटवूमेन

धार्मिक परंपराएं करुणा व विकसित करने की आवश्यकता

दलाई लामा ने कहा कि ''एक धार्मिक व्यवसायी के रूप में, मैं सराहना करता हूं कि सभी धार्मिक परंपराएं और करुणा विकसित करने की आवश्यकता की बात करती हैं. हम विभिन्न दार्शनिक पदों को अपना सकते हैं, लेकिन हम सभी में करुणा का एक समान संबंध है. उन्होंने कहा बौद्धों के रूप में हमें अपने बीच अच्छे संबंध बनाने चाहिए. हमें तीन प्रशिक्षणों को भी बरकरार रखना चाहिए, लेकिन आजकल नैतिकता, एकाग्रता और ज्ञान उन लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकते हैं, जो बिना किसी धार्मिक परंपरा का पालन करते हैं. बुद्धिमत्ता, दुःख और आत्महीनता को सही पहचान देती है''.

विपश्यना से निःस्वार्थता की होती है पहचान

दलाई लामा ने कहा कि विपश्यना से समझ गहरी होती है. इससे असंतोष, असमानता और निःस्वार्थता की पहचान होती है. बुद्ध शाक्यमुनि का शिक्षण 2500 वर्षों से अधिक समय तक फला-फूला, यह दुनिया की प्रमुख धार्मिक परंपराओं में से एक है. हालांकि, हाल ही में इसने वैज्ञानिक रुचि को भी आकर्षित किया है. हालांकि हमारे पास हीनयान और महायान शब्द हैं, मैं पाली और संस्कृत परंपराओं की बात करना पसंद करता हूं. बुद्ध एक भिक्षु थे और विनय का अभ्यास पाली और संस्कृत दोनों परंपराओं की नींव है.

ये भी पढ़ेंः किन्नौर की रिब्बा पंचायत: जहां सुविधाओं को देखकर आप भी कहेंगे...वाह!

धर्मशाला: तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने एक आभासी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया, जिसमें बौद्ध धर्म की पाली और संस्कृत परंपराओं चर्चा की गई. अपने संबोधन में दलाई लामा ने कहा कि वर्तमान में दुनिया में कम से कम 500 मिलियन बौद्ध हैं. इनके लिए आश्रित उत्पन्न होना उनका दार्शनिक दृष्टिकोण है और जिनके लिए अहिंसा और करुणा उनका मूल आचरण है. पाली और संस्कृत दोनों परंपराओं में तीन प्रशिक्षणों का उद्देश्य प्राणियों को पीड़ा से उबारने में मदद करना है.

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धार्मिक परंपराएं करुणा व विकसित करने की आवश्यकता

दलाई लामा ने कहा कि ''एक धार्मिक व्यवसायी के रूप में, मैं सराहना करता हूं कि सभी धार्मिक परंपराएं और करुणा विकसित करने की आवश्यकता की बात करती हैं. हम विभिन्न दार्शनिक पदों को अपना सकते हैं, लेकिन हम सभी में करुणा का एक समान संबंध है. उन्होंने कहा बौद्धों के रूप में हमें अपने बीच अच्छे संबंध बनाने चाहिए. हमें तीन प्रशिक्षणों को भी बरकरार रखना चाहिए, लेकिन आजकल नैतिकता, एकाग्रता और ज्ञान उन लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकते हैं, जो बिना किसी धार्मिक परंपरा का पालन करते हैं. बुद्धिमत्ता, दुःख और आत्महीनता को सही पहचान देती है''.

विपश्यना से निःस्वार्थता की होती है पहचान

दलाई लामा ने कहा कि विपश्यना से समझ गहरी होती है. इससे असंतोष, असमानता और निःस्वार्थता की पहचान होती है. बुद्ध शाक्यमुनि का शिक्षण 2500 वर्षों से अधिक समय तक फला-फूला, यह दुनिया की प्रमुख धार्मिक परंपराओं में से एक है. हालांकि, हाल ही में इसने वैज्ञानिक रुचि को भी आकर्षित किया है. हालांकि हमारे पास हीनयान और महायान शब्द हैं, मैं पाली और संस्कृत परंपराओं की बात करना पसंद करता हूं. बुद्ध एक भिक्षु थे और विनय का अभ्यास पाली और संस्कृत दोनों परंपराओं की नींव है.

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