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हिमाचल के किले: वैद्य के नगाड़े ने बचाई थी राजा की जान, रानी के नाम पर पड़ा था इस शहर का नाम - हरिपुर का राजा

इतिहासकारों के अनुसार नूरपुर के राजा जगत सिंह पठानिया का राज्य बहुत बड़ा था जिसे हरिपुर का राजा हथियाना चाहता था. राजा हरिश्चंद्र को उसके मंत्रियों ने सलाह दी कि अगर आप अपने लड़के की शादी नूरपुर के राजा की लड़की के साथ कर देते हो तो नूरपुर का साम्राज्य खुद-ब-खुद आप के अधीन हो जाएगा. राजा हरिश्चंद्र ने अपने लड़के की शादी का प्रस्ताव नूरपुर के राजा के पास भेजा जिस पर नूरपुर के राजा ने स्वीकार कर लिया.

हिमाचल के किले
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Published : Sep 1, 2019, 11:47 PM IST

Updated : Sep 4, 2019, 5:17 PM IST

कांगड़ा: जिला कांगड़ा में वैसे तो कई ऐसे किले मौजूद हैं जो अपना गौरव में इतिहास के लिए जाने जाते हैं, लेकिन जिला में एक ऐसा किला भी मौजूद है जो अलग ही निर्माण शैली के जरिए बनाया गया था। इस किले की कहानी भी उतनी ही रोचक है जितनी नूरपुर, कोटला, कांगड़ा, रेहलु, हरीपुर आदि किलो की है. यह ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में आता है.

वैध के नगाड़े ने बचाई थी राजा की जान

इतिहासकारों के अनुसार नूरपुर के राजा जगत सिंह पठानिया का राज्य बहुत बड़ा था जिसे हरिपुर का राजा हथियाना चाहता था. राजा हरिश्चंद्र को उसके मंत्रियों ने सलाह दी कि अगर आप अपने लड़के की शादी नूरपुर के राजा की लड़की के साथ कर देते हो तो नूरपुर का साम्राज्य खुद-ब-खुद आप के अधीन हो जाएगा. राजा हरिश्चंद्र ने अपने लड़के की शादी का प्रस्ताव नूरपुर के राजा के पास भेजा जिस पर नूरपुर के राजा ने स्वीकार कर लिया.

नूरपुर का राजा हरिपुर के राजा की रियासत को समाप्त करना चाहता था. उसने सोचा कि शादी के दिन में खाने में जहर मिलाकर राजा सहित बारात में आए समस्त लोगों को समाप्त कर देगा और इससे हरिपुर का राज कम हो जाएगा. जैसे ही राजा नूरपुर पहुंचा और बारात को खाने का न्योता मिला तो राजा जगत सिंह पठानिया के राज महल में खाना बना रहे रसोइए के एक साथी ने इसकी सूचना राजा हरिश्चंद्र के करीबी को दी. जिसकी सूचना राजा हरिश्चंद्र के वैध को दी गई.

वैद्य ने नगाड़े पर मंत्र लिखा और राजा सहित बारातियों को समझाया कि जब तक मैं नगाड़े को बजाता रहूंगा तब तक आप खाना खाते रहना, जैसे ही मैं नगाड़ा बजाना बंद कर दूं तो आप भोजन खाना बंद कर देना. ऐसा करने से आपको खाने में मिलाए गए जहर का कोई असर नहीं होगा. इसके बाद नूरपूर के राजा ने शर्त रखी कि लगन तभी होंगे जब राजा हरि श्चंद्र का लड़का लगन के एक तरफ लगे पेड़ के ठूंठ को उखाड़ देगा. शर्त को मानते हुए गोवर्धन सिंह ने उक्त ठूंठ को उखाड़ दिया और लगन लेने के बाद लड़की ज्वाला देवी को अपने साथ ज्वाली ले आए. रानी ज्वाला देवी के नाम पर इस शहर का नाम ज्वाली पड़ गया.

ज्वाली में रानी के लिए एकडंडिया महल का निर्माण किया गया और नहाने के लिए नहाने का स्थान बनवाया गया. इस निर्माण शैली के प्राचीन महल आज बहुत कम देखने को मिलते हैं. आज भी जवाली में रानी का महल मौजूद है. रानी के लिए बनाए गए महल से तकरीबन 1 किलोमीटर दूर मंदिर की स्थापना की गई जिसमें विशेष त्योहारों पर रानी की पूजा अर्चना की जाती है. इस मंदिर में आज ही पानी के चश्मे मौजूद हैं जो कभी नहीं सूखते.

हैरत इस बात की है कि ऐतिहासिक इमारत होने के बाद भी इसका कोई रख रखाव नहीं किया जा रहा. किले के एक और आंगनबाड़ी केंद्र बना है जिसपर कुछ समय पहले किले की दीवार गिर गई और इमारत क्षतिग्रस्त हो गई.

ये भी पढ़ें- हिमाचल के किले: इतिहास को समेटे है बाघल रियासत का किला, आज खंडहर में हो रहा तब्दील

कांगड़ा: जिला कांगड़ा में वैसे तो कई ऐसे किले मौजूद हैं जो अपना गौरव में इतिहास के लिए जाने जाते हैं, लेकिन जिला में एक ऐसा किला भी मौजूद है जो अलग ही निर्माण शैली के जरिए बनाया गया था। इस किले की कहानी भी उतनी ही रोचक है जितनी नूरपुर, कोटला, कांगड़ा, रेहलु, हरीपुर आदि किलो की है. यह ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में आता है.

वैध के नगाड़े ने बचाई थी राजा की जान

इतिहासकारों के अनुसार नूरपुर के राजा जगत सिंह पठानिया का राज्य बहुत बड़ा था जिसे हरिपुर का राजा हथियाना चाहता था. राजा हरिश्चंद्र को उसके मंत्रियों ने सलाह दी कि अगर आप अपने लड़के की शादी नूरपुर के राजा की लड़की के साथ कर देते हो तो नूरपुर का साम्राज्य खुद-ब-खुद आप के अधीन हो जाएगा. राजा हरिश्चंद्र ने अपने लड़के की शादी का प्रस्ताव नूरपुर के राजा के पास भेजा जिस पर नूरपुर के राजा ने स्वीकार कर लिया.

नूरपुर का राजा हरिपुर के राजा की रियासत को समाप्त करना चाहता था. उसने सोचा कि शादी के दिन में खाने में जहर मिलाकर राजा सहित बारात में आए समस्त लोगों को समाप्त कर देगा और इससे हरिपुर का राज कम हो जाएगा. जैसे ही राजा नूरपुर पहुंचा और बारात को खाने का न्योता मिला तो राजा जगत सिंह पठानिया के राज महल में खाना बना रहे रसोइए के एक साथी ने इसकी सूचना राजा हरिश्चंद्र के करीबी को दी. जिसकी सूचना राजा हरिश्चंद्र के वैध को दी गई.

वैद्य ने नगाड़े पर मंत्र लिखा और राजा सहित बारातियों को समझाया कि जब तक मैं नगाड़े को बजाता रहूंगा तब तक आप खाना खाते रहना, जैसे ही मैं नगाड़ा बजाना बंद कर दूं तो आप भोजन खाना बंद कर देना. ऐसा करने से आपको खाने में मिलाए गए जहर का कोई असर नहीं होगा. इसके बाद नूरपूर के राजा ने शर्त रखी कि लगन तभी होंगे जब राजा हरि श्चंद्र का लड़का लगन के एक तरफ लगे पेड़ के ठूंठ को उखाड़ देगा. शर्त को मानते हुए गोवर्धन सिंह ने उक्त ठूंठ को उखाड़ दिया और लगन लेने के बाद लड़की ज्वाला देवी को अपने साथ ज्वाली ले आए. रानी ज्वाला देवी के नाम पर इस शहर का नाम ज्वाली पड़ गया.

ज्वाली में रानी के लिए एकडंडिया महल का निर्माण किया गया और नहाने के लिए नहाने का स्थान बनवाया गया. इस निर्माण शैली के प्राचीन महल आज बहुत कम देखने को मिलते हैं. आज भी जवाली में रानी का महल मौजूद है. रानी के लिए बनाए गए महल से तकरीबन 1 किलोमीटर दूर मंदिर की स्थापना की गई जिसमें विशेष त्योहारों पर रानी की पूजा अर्चना की जाती है. इस मंदिर में आज ही पानी के चश्मे मौजूद हैं जो कभी नहीं सूखते.

हैरत इस बात की है कि ऐतिहासिक इमारत होने के बाद भी इसका कोई रख रखाव नहीं किया जा रहा. किले के एक और आंगनबाड़ी केंद्र बना है जिसपर कुछ समय पहले किले की दीवार गिर गई और इमारत क्षतिग्रस्त हो गई.

ये भी पढ़ें- हिमाचल के किले: इतिहास को समेटे है बाघल रियासत का किला, आज खंडहर में हो रहा तब्दील

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Last Updated : Sep 4, 2019, 5:17 PM IST
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