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पोंग विस्थापितों की तीसरी पीढ़ी को इंसाफ का इंतजार, 47 साल बाद भी नहीं हो सका पुनर्वास

विस्थापन के 47 साल बीतने के बाद भी विस्थापित पुनर्वास के लिए हिमाचल व राजस्थान के न्यायालयों व कार्यालयों के चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं. हक के लिए कई आंदोलन भी लोग कर चुके हैं, लेकिन अब तक कुछ हासिल नहीं हुआ है.

पोंग विस्थापितों की तीसरी पीढ़ी को इंसाफ का इंतजार
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Published : Oct 12, 2019, 5:17 PM IST

कांगड़ा: पोंग बांध विस्थापितों का दर्द नासूर बनता जा रहा है. चुनाव आते ही वोट बैंक के लिए इनके पुनर्वास का मामला गर्मजोशी से उठाया जाता है और नेता भी आश्वासन देते हैं, लेकिन परिणाम फिर ढाक के तीन पात ही रहता है. यही वजह है कि आज दिन तक पोंग बांध विस्थापित पुनर्वास ना होने का दर्द झेल रहे हैं. आज विस्थापितों की तीसरी पीढ़ी अपना हक हासिल करने के लिए संघर्षरत है.

पोंग बांध के निर्माण के दौरान 1972-73 में 20,722 परिवारों की 90 हजार 702 आबादी थी. जिनकी उपजाऊ भूमि बांध की भेंट चढ़ गई थी. इनमें से 16,352 पात्र परिवारों को राजस्थान में भूमि आवंटन के लिए अधिकृत किया गया. इसके बाद 15,124 परिवारों को समझौते के तहत राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले की आरक्षित 2.20 लाख एकड़ रेतीली जमीन पर बसाना तय हुआ. 4,370 भूमिहीन, लेबर से संबंधित लोगों को भी राजस्थान में बसाने और कृषि के लिए कुछ भूमि देने की सहमति बनी. 1980 तक 9,196 परिवारों को राजस्थान ने भूमि आवंटित की, जबकि, 6,658 अलॉटमेंट रद्द कर दिए गए. इनमें कुल 1,188 मुरब्बे राज रकबे थे. वर्तमान में भी इन लोगों की जमीनों पर राजस्थान के लोगों का कब्जा है. राजस्थान सरकार उन्हें बिजली पानी की सुविधा दे रही है. लगभग सात हजार परिवार आज भी भूमि के लिए दर-दर भटक रहे हैं.

वीडियो.

विस्थापन के 47 साल बीतने के बाद भी विस्थापित पुनर्वास के लिए हिमाचल व राजस्थान के न्यायालयों व कार्यालयों के चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं. हक के लिए कई आंदोलन भी लोग कर चुके हैं, लेकिन अब तक कुछ हासिल नहीं हुआ है. 1973 में जब बांध बनकर तैयार हुआ तो उस समय यशवंत सिंह परमार हिमाचल के मुख्यमंत्री थे. 1973 से लेकर अब तक प्रदेश में 12 मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन विस्थापितों को समझौते के अनुसार किसने भी पुनर्वास के लिए गंभीरता नहीं दिखाई.

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने इसे सिर्फ चुनावी मुद्दा बनाया है, लेकिन राजस्थान सरकार पर विस्थापितों को भूमि देने के लिए दबाव नहीं बनाया. मौजूदा हालात यह हैं कि पोंग बांध विस्थापित संघर्ष कर रहे हैं. विस्थापितों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के तमाम मीडिया चैनल्स को अपने हक के लिए चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई है. इस बारे में उपायुक्त राहत और पुनर्वास अश्वनी सूद ने बताया कि वह आगामी 22 अक्तूबर को स्वयं राजस्थान जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें उम्मीद है कि लगभग 150 से अधिक लोगों को मुरब्बे अलॉट कर दिए जाएंगे और जो शेष हैं उनके लिए भी प्रयास किया जाएगा कि उन्हें भी जल्द मुरब्बे अलॉट किये जाएं.

ये भी पढ़ें- प्रदेश के स्कूलों में लगेंगे सोलर प्लांट और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, शिक्षा विभाग ने जारी किए निर्देश

कांगड़ा: पोंग बांध विस्थापितों का दर्द नासूर बनता जा रहा है. चुनाव आते ही वोट बैंक के लिए इनके पुनर्वास का मामला गर्मजोशी से उठाया जाता है और नेता भी आश्वासन देते हैं, लेकिन परिणाम फिर ढाक के तीन पात ही रहता है. यही वजह है कि आज दिन तक पोंग बांध विस्थापित पुनर्वास ना होने का दर्द झेल रहे हैं. आज विस्थापितों की तीसरी पीढ़ी अपना हक हासिल करने के लिए संघर्षरत है.

पोंग बांध के निर्माण के दौरान 1972-73 में 20,722 परिवारों की 90 हजार 702 आबादी थी. जिनकी उपजाऊ भूमि बांध की भेंट चढ़ गई थी. इनमें से 16,352 पात्र परिवारों को राजस्थान में भूमि आवंटन के लिए अधिकृत किया गया. इसके बाद 15,124 परिवारों को समझौते के तहत राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले की आरक्षित 2.20 लाख एकड़ रेतीली जमीन पर बसाना तय हुआ. 4,370 भूमिहीन, लेबर से संबंधित लोगों को भी राजस्थान में बसाने और कृषि के लिए कुछ भूमि देने की सहमति बनी. 1980 तक 9,196 परिवारों को राजस्थान ने भूमि आवंटित की, जबकि, 6,658 अलॉटमेंट रद्द कर दिए गए. इनमें कुल 1,188 मुरब्बे राज रकबे थे. वर्तमान में भी इन लोगों की जमीनों पर राजस्थान के लोगों का कब्जा है. राजस्थान सरकार उन्हें बिजली पानी की सुविधा दे रही है. लगभग सात हजार परिवार आज भी भूमि के लिए दर-दर भटक रहे हैं.

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विस्थापन के 47 साल बीतने के बाद भी विस्थापित पुनर्वास के लिए हिमाचल व राजस्थान के न्यायालयों व कार्यालयों के चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं. हक के लिए कई आंदोलन भी लोग कर चुके हैं, लेकिन अब तक कुछ हासिल नहीं हुआ है. 1973 में जब बांध बनकर तैयार हुआ तो उस समय यशवंत सिंह परमार हिमाचल के मुख्यमंत्री थे. 1973 से लेकर अब तक प्रदेश में 12 मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन विस्थापितों को समझौते के अनुसार किसने भी पुनर्वास के लिए गंभीरता नहीं दिखाई.

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने इसे सिर्फ चुनावी मुद्दा बनाया है, लेकिन राजस्थान सरकार पर विस्थापितों को भूमि देने के लिए दबाव नहीं बनाया. मौजूदा हालात यह हैं कि पोंग बांध विस्थापित संघर्ष कर रहे हैं. विस्थापितों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के तमाम मीडिया चैनल्स को अपने हक के लिए चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई है. इस बारे में उपायुक्त राहत और पुनर्वास अश्वनी सूद ने बताया कि वह आगामी 22 अक्तूबर को स्वयं राजस्थान जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें उम्मीद है कि लगभग 150 से अधिक लोगों को मुरब्बे अलॉट कर दिए जाएंगे और जो शेष हैं उनके लिए भी प्रयास किया जाएगा कि उन्हें भी जल्द मुरब्बे अलॉट किये जाएं.

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