धर्मशालाः उपचुनाव में बीजेपी के टिकट के लिए दावेदारों की खींचतान से शांत धर्मशाला की सियायत में एकाएक भूचाल आ गया है. युवा कार्यकर्ता सम्मेलन में दावेदारी को लेकर हुई नारेबाजी के बाद भाजपा के अंदर के कई समीकरण पलट सकते हैं. प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती के स्थानीय कैंडिडेट देने की बात के बावजूद बाहरी प्रत्याशियों के नाम आलाकमान को भेजे जाने के बाद स्थानीय कैंडिडेट समर्थकों ने खूब बवाल काटा.
पहले बता दें कि भाजपा ने धर्मशाला से उमेश दत्त, राजीव भारद्वाज, संजय शर्मा, राकेश शर्मा, सचिन शर्मा, विशाल नेहरिया के नाम संसदीय बोर्ड को भेजे थे, जिनमें उमेश दत्त और राजीव भारद्वाज के नामों पर चर्चा हुई और फैसला हाईकमान पर छोड़ा गया. चूंकि ये दोनों ही कैंडिडेट्स धर्मशाला विधानसभा के स्थानीय नहीं हैं तो लोकल उम्मीदवारों के सर्मथकों में नाराजगी है जो खुलकर लगे नारों से छलकी.
विधानसभा अध्यक्ष के मंच से उतरते ही सबसे पहले सवाल हुआ कि एक भी नाम एसटी या ओबीसी प्रत्याशी का नहीं भेजा गया, फिर लोकल प्रत्याशी की मांग की गई और यही आवाज फिर नारों में बदली. इसी बीच एसटी प्रत्याशी विशाल नेहरिया जिंदाबाद के नारे लगने लगे. अब जो बात निकली है तो दूर तलक जाएगी, प्रदेश भाजपा ने इस मामले को लेकर रिपोर्ट तलब कर ली है.
इस बवाल के बाद विशाल नेहरिया को पार्टी टिकट दे न दे पर उनके समर्थकों की अनुशासनहीनता के लिए नोटिस जरूर दे सकती है. अब धर्मशाला के धरती पुत्रों सचिन शर्मा और राकेश शर्मा पर क्या पता अब पार्टी विचार कर भी ले, लेकिन खुले मंच पर हुए इस बवाल से भाजपा को नुकसान जरूर होगा. हालांकि ये कोई नई बात नहीं है कि सत्ताधारी दल के टिकट को पाने के लिए पब्लिकली तमाशा हुआ हो.
वहीं उपचुनाव विपक्ष के लिए एक बड़ा मौका होता है और ऐसे वक्त में जब सत्ताधारी दल में अंदरूनी खींचतान की स्थिति है तो छक्का लगाना और आसान हो जाता है. यहां धर्मशाला कांग्रेस का खिलाड़ी पवेलिएन में तैयार तो सबसे पहले था, लेकिन मैच शुरु होने से पहले ही उसके क्रीज पर जाने को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है. ऐसे में लोकल कैंडिडेट के समर्थक भाजपा कार्यकर्ता की कही बात '24 तारिख जो इंधा बजणा होग...तियां री हुणी मौज' ( 24 तारीख को हमारा मनेगा शोक... और उन लोगों की होगी मौज ) किसके लिए सच होगी ये कहना मुश्किल है.