कांगड़ा: कांगड़ा चंबा लोकसभा सीट से कांग्रेस की नजरों में पवन काजल परफेक्ट उम्मीदवार हैं. विधायक पवन काजल को लोकसभा का उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस कांगड़ा में बिखरे पड़े ओबीसी वोट बैंक को अपने पक्ष में करना चाहेगी. कांग्रेस हाईकमान ने ऐसे नेता को चुना है जिसकी ओबीसी वर्ग में अच्छी पैठ है.
माना जा रहा है कि पवन काजल की कांगड़ा की जनता के बीच पैठ इतनी मजबूत है कि उन्होंने विधानसभा चुनावों में दूसरी बार जीत दर्जकर यह साबित कर दिया था. वहीं, काजल कांग्रेस की रैलियों में अपने हजारों समर्थकों सहित दिग्गजों की लाज भी बचाते आये हैं.
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पवन काजल को टिकट इतनी आसानी से नहीं मिला है. इससे पहले चुनावी मैदान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जीएस बाली और पूर्व विधायक सुधीर शर्मा के उतरने की अटकलें थी. जीएस बाली के इंकार के बाद सभी की राय थी कि कांगड़ा से किसी ओबीसी नेता को चुनाव लड़ाया जाए. इसके लिए कई ओबीसी नेताओं के नाम चर्चा में थे, लेकिन कांग्रेस को पवन काजल ही एकमात्र ऐसा चेहरे दिखे जो इस चुनाव में भाजपा को टक्कर दे सकता है.
वहीं, कांगड़ा में बाहुल्य घृत बाहती चाहंग महासभा ने भी राजनीतिक दलों से कांगड़ा से ओबीसी प्रत्याशी उतारने की मांग की थी. अब कांग्रेस ने कांगड़ा से ओबीसी प्रत्याशी को चुनावी दंगल में उतारा है देखना यह है कि क्या ओबीसी के सहारे पवन काजल भाजपा के किशन कपूर को शिकस्त दे पाएंगे या मोदी हवा में हार का सामना करेंगे.
पवन काजल का सियासी सफर
पवन काजल के सियासी सफर की बात करें तो काजल ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत भाजपा से जुड़कर की थी. इस दौरान वह 2005 और 2010 में दो बार जिला परिषद के सदस्य भी चुने गए लेकिन पार्टी से अनदेखी के कारण उन्होंने खुद को भाजपा से अलग कर लिया. पवन काजल कांगड़ा विधानसभा से 2012 में पहली बार निर्दलीय विधायक बनकर गए थे. इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से उनकी नजदीकियां बनी और कांग्रेस के एसोसिएट सदस्य भी बने. 2017 में हुए विधाससभा चुनाव में काजल ने कांग्रेस का दामन थामते हुए चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की.
क्यों है इस सीट पर ओबीसी वोटर्स का महत्व
हिमाचल में ओबीसी के करीब 18 फीसदी वोट बैंक को केंद्रित कर राजनीतिक दल सियासी अखाड़े में उतरते हैं. कांगड़ा में ही ओबीसी के 30 फीसदी वोट हैं जिसे कोई भी सियासी दल नजरअंदाज नहीं कर सकता. 15 विधानसभा क्षेत्रों में 8 ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां ओबीसी वोटर्स का दबदबा रहा है. वहीं, चम्बा में भी ओबीसी वोटर हैं जो तादाद में तो कम है लेकिन नेताओं के सियासी सफर को यही अंजाम तक पहुंचाते हैं.