धर्मशाला: 12 सितंबर 1934 को जिला कांगड़ा के गढ़जमूला में जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर जन्मे हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का आज 86वां जन्मदिन है. पंडित के घर पैदा हुए शांता कुमार ने अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे.
शांता कुमार ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई की और एक स्कूल में शिक्षक के पद पर अपनी सेवाएं दीं, लेकिन आरएसएस में मन लगने और आगे पढ़ाई करने के लिए उन्होंने शिक्षक का पद त्याग कर दिल्ली जाने का फैसला किया. उन्होंने दिल्ली में जाकर संघ का काम करने के साथ ओपन यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री हासिल की.शांता कुमार ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में आदर्शों की राजनीती की. देश और प्रदेश की राजनीती में उन्हें भविष्य में भी ईमानदार नेता के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा. अपने साक्षात्कार में शांता कुमार खुद कह चुके हैं कि उन्हें ईमानदारी की सजा मिली है. परिवारवाद की राजनीति से शांता कुमार हमेशा दूर रहे.
पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1963 में गढ़मूला पंचायत से पंच का चुनाव जीत कर की. उसके बाद वह पंचायत समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किए गए.1965 से 1970 तक वह जिला परिषद के अध्यक्ष भी रहे. साल1971 में शांता कुमार ने पालमपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और कुंजबिहारी से करीबी अंतर से हार गए.
एक साल बाद प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर साल1972 में फिर विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें शांता कुमार ने खेरा विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत कर विधानसभा पहुंचे. सत्याग्रह और जनसंघ के आंदोलन में भी शांता कुमार ने भाग लिया और इस दौरान उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी. इस दौरान उन्होंने जेल कई किताबें भी लिखी. शांता कुमार एक नेता होने के साथ एक अच्छे लेखक भी हैं.
वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी. शांता कुमार ने सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, लेकिन इस सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं हो सका और साल 1980 में जनसंघ की सरकार गिर गई.
साल1990 में शांता कुमार एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद देश के राज्यों में भाजपा की सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया और शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.मुख्यमंत्री रहते हुए शांता कुमार ने गांव-गांव तक पानी पहुंचाने का काम किया. उनके इस काम ने उन्हें एक नई पहचान दी और उन्हें पानी वाले मुख्यमंत्री के नाम से भी जाना जाने लगा. शांता कुमार मूल्यों की राजनीति के लिए जाने जाते हैं.
मुख्यमंत्री रहते हुए नो वर्क नो पे को शांता कुमार ने सख्ती से लागू किया था जिससे उन्हें कर्मचारियों के विरोध का सामना भी करना पड़ा था. अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र की सरकार में वह खाद व उपभोक्ता मामले के मंत्री बने, इसके बाद 1999 से 2002 तक वाजपेयी सरकार में वे ग्रामीण विकास मंत्रायल के मंत्री रहे. इस दौरान शांता कुमार ने गरीबों के लिए अंत्योदय अन्न योजना की शुरुआत की. योजना के तहत आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को सस्ता राशन दिया जाता है.
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले शांता कुमार ने चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया है, लेकिन गैर चुनाव राजनीति में वो अभी भी भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. वर्तमान समय में वो अपनी आत्म कथा पर काम कर रहे हैं जो इस वर्ष पूरी हो जाएगी. इसके साथ ही शांता कुमार ने चुनावी राजनीति से सन्यास लेने के बाद वृद्ध आश्रम में अपनी सेवाएं देने का फैसला लिया है.