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85 के हुए 'पानी वाले मुख्यमंत्री', ऐसा रहा देश को अंत्योदय योजना देने वाले शांता कुमार का राजनीतिक सफर

कांगड़ा के गढ़जमूला में जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर जन्मे हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का आज 86वां जन्मदिन है. पंडित के घर पैदा हुए शांता कुमार ने अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे. उन्होंने देश को अंत्योदय योजना देने के साथ हिमाचल के मुख्यमंत्री रहते हुए कई सख्त फैसले भी लिए.

शांता कुमार (फाइल फोटो)
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Published : Sep 12, 2019, 11:50 AM IST

धर्मशाला: 12 सितंबर 1934 को जिला कांगड़ा के गढ़जमूला में जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर जन्मे हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का आज 86वां जन्मदिन है. पंडित के घर पैदा हुए शांता कुमार ने अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे.

पीएम मोदी के साथ शांता कुमार
पीएम मोदी के साथ शांता कुमार

शांता कुमार ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई की और एक स्कूल में शिक्षक के पद पर अपनी सेवाएं दीं, लेकिन आरएसएस में मन लगने और आगे पढ़ाई करने के लिए उन्होंने शिक्षक का पद त्याग कर दिल्ली जाने का फैसला किया. उन्होंने दिल्ली में जाकर संघ का काम करने के साथ ओपन यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री हासिल की.शांता कुमार ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में आदर्शों की राजनीती की. देश और प्रदेश की राजनीती में उन्हें भविष्य में भी ईमानदार नेता के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा. अपने साक्षात्कार में शांता कुमार खुद कह चुके हैं कि उन्हें ईमानदारी की सजा मिली है. परिवारवाद की राजनीति से शांता कुमार हमेशा दूर रहे.

संसद में शांता कुमार
संसद में शांता कुमार

पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1963 में गढ़मूला पंचायत से पंच का चुनाव जीत कर की. उसके बाद वह पंचायत समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किए गए.1965 से 1970 तक वह जिला परिषद के अध्यक्ष भी रहे. साल1971 में शांता कुमार ने पालमपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और कुंजबिहारी से करीबी अंतर से हार गए.

सीएम जयराम और हिमाचल के सांसदों से मुलाकात करते हुए शांता कुमार
सीएम जयराम और हिमाचल के सांसदों से मुलाकात करते हुए शांता कुमार

एक साल बाद प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर साल1972 में फिर विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें शांता कुमार ने खेरा विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत कर विधानसभा पहुंचे. सत्याग्रह और जनसंघ के आंदोलन में भी शांता कुमार ने भाग लिया और इस दौरान उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी. इस दौरान उन्होंने जेल कई किताबें भी लिखी. शांता कुमार एक नेता होने के साथ एक अच्छे लेखक भी हैं.

वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी. शांता कुमार ने सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, लेकिन इस सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं हो सका और साल 1980 में जनसंघ की सरकार गिर गई.

साल1990 में शांता कुमार एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद देश के राज्यों में भाजपा की सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया और शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.मुख्यमंत्री रहते हुए शांता कुमार ने गांव-गांव तक पानी पहुंचाने का काम किया. उनके इस काम ने उन्हें एक नई पहचान दी और उन्हें पानी वाले मुख्यमंत्री के नाम से भी जाना जाने लगा. शांता कुमार मूल्यों की राजनीति के लिए जाने जाते हैं.

सीएम जयराम से मुलाकात करते हुए शांता कुमार
सीएम जयराम से मुलाकात करते हुए शांता कुमार

मुख्यमंत्री रहते हुए नो वर्क नो पे को शांता कुमार ने सख्ती से लागू किया था जिससे उन्हें कर्मचारियों के विरोध का सामना भी करना पड़ा था. अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र की सरकार में वह खाद व उपभोक्ता मामले के मंत्री बने, इसके बाद 1999 से 2002 तक वाजपेयी सरकार में वे ग्रामीण विकास मंत्रायल के मंत्री रहे. इस दौरान शांता कुमार ने गरीबों के लिए अंत्योदय अन्न योजना की शुरुआत की. योजना के तहत आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को सस्ता राशन दिया जाता है.

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले शांता कुमार ने चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया है, लेकिन गैर चुनाव राजनीति में वो अभी भी भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. वर्तमान समय में वो अपनी आत्म कथा पर काम कर रहे हैं जो इस वर्ष पूरी हो जाएगी. इसके साथ ही शांता कुमार ने चुनावी राजनीति से सन्यास लेने के बाद वृद्ध आश्रम में अपनी सेवाएं देने का फैसला लिया है.

धर्मशाला: 12 सितंबर 1934 को जिला कांगड़ा के गढ़जमूला में जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर जन्मे हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का आज 86वां जन्मदिन है. पंडित के घर पैदा हुए शांता कुमार ने अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे.

पीएम मोदी के साथ शांता कुमार
पीएम मोदी के साथ शांता कुमार

शांता कुमार ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई की और एक स्कूल में शिक्षक के पद पर अपनी सेवाएं दीं, लेकिन आरएसएस में मन लगने और आगे पढ़ाई करने के लिए उन्होंने शिक्षक का पद त्याग कर दिल्ली जाने का फैसला किया. उन्होंने दिल्ली में जाकर संघ का काम करने के साथ ओपन यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री हासिल की.शांता कुमार ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में आदर्शों की राजनीती की. देश और प्रदेश की राजनीती में उन्हें भविष्य में भी ईमानदार नेता के रूप में हमेशा याद रखा जाएगा. अपने साक्षात्कार में शांता कुमार खुद कह चुके हैं कि उन्हें ईमानदारी की सजा मिली है. परिवारवाद की राजनीति से शांता कुमार हमेशा दूर रहे.

संसद में शांता कुमार
संसद में शांता कुमार

पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1963 में गढ़मूला पंचायत से पंच का चुनाव जीत कर की. उसके बाद वह पंचायत समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किए गए.1965 से 1970 तक वह जिला परिषद के अध्यक्ष भी रहे. साल1971 में शांता कुमार ने पालमपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और कुंजबिहारी से करीबी अंतर से हार गए.

सीएम जयराम और हिमाचल के सांसदों से मुलाकात करते हुए शांता कुमार
सीएम जयराम और हिमाचल के सांसदों से मुलाकात करते हुए शांता कुमार

एक साल बाद प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर साल1972 में फिर विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें शांता कुमार ने खेरा विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत कर विधानसभा पहुंचे. सत्याग्रह और जनसंघ के आंदोलन में भी शांता कुमार ने भाग लिया और इस दौरान उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी. इस दौरान उन्होंने जेल कई किताबें भी लिखी. शांता कुमार एक नेता होने के साथ एक अच्छे लेखक भी हैं.

वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी. शांता कुमार ने सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, लेकिन इस सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं हो सका और साल 1980 में जनसंघ की सरकार गिर गई.

साल1990 में शांता कुमार एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद देश के राज्यों में भाजपा की सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया और शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.मुख्यमंत्री रहते हुए शांता कुमार ने गांव-गांव तक पानी पहुंचाने का काम किया. उनके इस काम ने उन्हें एक नई पहचान दी और उन्हें पानी वाले मुख्यमंत्री के नाम से भी जाना जाने लगा. शांता कुमार मूल्यों की राजनीति के लिए जाने जाते हैं.

सीएम जयराम से मुलाकात करते हुए शांता कुमार
सीएम जयराम से मुलाकात करते हुए शांता कुमार

मुख्यमंत्री रहते हुए नो वर्क नो पे को शांता कुमार ने सख्ती से लागू किया था जिससे उन्हें कर्मचारियों के विरोध का सामना भी करना पड़ा था. अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र की सरकार में वह खाद व उपभोक्ता मामले के मंत्री बने, इसके बाद 1999 से 2002 तक वाजपेयी सरकार में वे ग्रामीण विकास मंत्रायल के मंत्री रहे. इस दौरान शांता कुमार ने गरीबों के लिए अंत्योदय अन्न योजना की शुरुआत की. योजना के तहत आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को सस्ता राशन दिया जाता है.

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले शांता कुमार ने चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया है, लेकिन गैर चुनाव राजनीति में वो अभी भी भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. वर्तमान समय में वो अपनी आत्म कथा पर काम कर रहे हैं जो इस वर्ष पूरी हो जाएगी. इसके साथ ही शांता कुमार ने चुनावी राजनीति से सन्यास लेने के बाद वृद्ध आश्रम में अपनी सेवाएं देने का फैसला लिया है.

Intro:धर्मशाला - जिला काँगड़ा के गढ़जमूला में 12 सितमबर 1934 को जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का जन्म हुआ !  पंडित के घर पैदा होने वाले शांता कुमार तब किसने सोचा था की बड़ा होकर यह शख्स प्रदेश का मुख्यमंत्री बनेगा !


शिक्षा - 


स्कुल की प्रांभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई की उसके बाद स्कुल में शिक्षा देने लग पड़े , लेकिन आरएसएस में मन लगने की वजह से दिल्ली चले गए वहा जाकर संघ का काम किया और ओपन यूनिवसर्सिटी से वकालत की डिग्री की ! 


राजनीती करियर -


पंच के चुनाव से राजनीती की शुरुआत की थी शांता कुमार ने 1963 में पहली बार गढ़जमूला पंचयात से जीते थे ! उसके बाद वह पंचयात समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किये गए ! काँगड़ा जिले के1965 से 1970 तक जिला परिषद के भी अध्य्क्ष  रहे !


सत्याग्रह और जनसंघ के आंदोलन में भी शांता कुमार ने भाग लिया और जेल की हवा भी खाई ! पहला चुनाव 1971 में शांता कुमार ने पालमपुर विधानसभा से लड़ा  और कुंजबिहारी से करीबी अंतर् से हार गए , एक साल बाद प्रदेश को पूर्णराज्य का दर्जा मिल गया और 1972 में फिर चुनाव हुए शांता कुमार ने यह चुनाव खेरा विधानसभा से लड़ा और चुनाव जीते और विधानसभा पहुंचे ! 




Body:
1977 में आपातकाल के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो जनसंघ की सरकार बनी और शांता कुमार ने सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और फिर प्रदेश के मुखिया बने लेकिन सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके ! इसके बाद 1979 में पहली बार काँगड़ा लोकसभा के चुनाव जीते और सांसद बने ! 1990 में वह फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद इंद्रा गाँधी ने भाजपा की सरकारो को वार्कस्थ कर दिया और शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके !

 

अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र की सरकार में वह खाद वह उपभोक्ता मामले के मंत्री बने , इसके बाद 1999 से 2002 तक वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रायल के मंत्री रहे ! वर्तमान में भी काँगड़ा चम्बा लोकसभा सीट के सांसद है ! राज्य सभा में भी शांता कुमार 2008 के लिए नियुक्त रह चुके है ! 

क्या काम किये अपने कार्यकाल में -

शांता कुमार ने अन्तोदय जैसी योजना शुरू की जिससे कई गरीब परिवारों को सस्ता राशन मिला , पानी को लोगो के घर -घर तक पहुचाहया , प्रदेश के पानी पर रायल्टी लगाई गई , प्रदेश में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाये ,नो वर्क नो पेय जैसे सख्त फैसला भी लिया ! 




Conclusion:क्यों कहा जाता है पानी वाला मुख्यमंत्री- 

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को पूरे प्रदेश में पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है ।1990 में शांता कुमार जब प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने प्रदेश में हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट की शुरुआत की पहाड़ी राज्य होने के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में बहुत सी नदियां बहती हैं तो यह लगता नहीं कि इस प्रदेश के लोगों को पानी की दिक्कत का सामना करना पड़ेगा लेकिन 1990 से पहले प्रदेश के लोगों को दूरदराज तक पानी के लिए जाना पढ़ता था, लेकिन मुख्यमंत्री शांता कुमार ने रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल करवाया और प्रदेश के तमाम जिलों में हेड पंप लगाए उनके लगवाए गए हैंड पंप आज भी लोगों को पानी की सुविधा प्रदान करवा रहे हैं यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को पूरे प्रदेश में पानी वाला मुख्यमंत्री कहा जाता है।



शांता कुमार ने आपातकाल के दौरान जेल में बहुत से किताबे भी लिखी है एक नेता होने के साथ वह एक अच्छे लेखक भी है !


पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का जन्म दिन है राजनीती के इतने लम्बा अरसा विताने के बाद भी उनकी छवि ईमानदार और सिंद्वांतो से कभी समजोता नहीं किया ! अगर अपनी ही सरकार में गलत हो रहा हो तो वो उसको भी खुल कर बोलते है , देश की राजनीती और प्रदेश में उनका हमेशा ईमानदार नेता के रूपा में याद किया जायेगा ! परिबार वाद की राजनीती से भी शांता कुमार दूर रहे ! वही वर्तमान की बात की जाए तो इस बार के हुए लोकसभा चुनावों से पहले शान्ता कुमार ने चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया लेकिन गेर चुनावी राजनीति में अभी भी भाजपा के सिपाही की तरह तैनात है वही शान्ता कुमार कहते है कि चुनावी राजनीति से सन्यास लेकर उनका ध्यान अब विवेकानंद ट्रस्ट की तरफ है। वही शान्ता कुमार पहले भी जिक्र कर चुके है कि इस बर्ष व अपनी आत्म कथा को पूरा करेगे ओर रोजाना एक घण्टा वह अपनी आत्मकथा में काम करेगें इसबीच वह लोगो से भी नही मिलेगे।

  

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