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क्या आपको पता है पांडवों ने वनवास का समय हिमाचल में कहां बिताया था? देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

उत्तर भारत में आज भी ऐसे कई स्थान हैं जो महाभारत काल से जुडे़ हुए हैं. उन्हीं जगहों में से एक देवभूमि की वो पहाड़िया भी हैं, जहां पांडवों ने अपने वनवास का अधिकतर समय बिताया था. ई़टीवी भारत आज आपको कुछ ऐसे ही स्थानों से रूबरू कराने जा रहा है.

ETV Bharat special story on footprints of Pandavas
भारत की स्पेशल रिपोर्ट
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Published : Dec 13, 2019, 1:46 PM IST

Updated : Dec 14, 2019, 7:32 AM IST

कांगड़ा: उत्तर भारत में आज भी ऐसे कई स्थान हैं जो महाभारत काल से जुडे़ हुए हैं. उन्हीं जगहों में से एक देवभूमि की वो पहाड़ियां भी हैं, जहां पांडवों ने अपने वनवास का अधिकतर समय बिताया था. प्रदेश के जिला मंडी, शिमला, सोलन, कांगड़ा, ऊना, सिरमौर और कुल्लू की वादियों में पांडवों ने कई साल गुजारे थे. जिनके साक्ष्य आज भी मौजूद हैं.

ई़टीवी भारत आज आपको कुछ ऐसे ही स्थानों से रूबरू कराने जा रहा है जहां पांडवों ने महाभारत के युद्ध से पहले समय व्यतीत किया था. तो चलिए आपको सबसे पहले लिए चलते हैं जिला सोलन के करोल में जहां मौजूद रहस्यमयी गुफा आज भी कई राज समेटे हुए हैं. मान्यता है कि भगवान शिव और पांडवों ने यहां तपस्या की थी.

पांडव गुफा के नाम से मशहूर इस गुफा की लम्बाई आज तक कोई नहीं जान पाया है. कहा जाता है कि गुफा के अंदर कई अजीबोंगरीब चीजें हैं, जिन्हें देखने के बाद किसी की अंदर जाने की हिम्मत नहीं होती. गुफा के अदर कई शिवलिंग बने हुए हैं. यह गुफा भगवान शिव से जुड़े अनेकों रहस्य समेटे हुए हैं. सावन के महीने में स्‍थानीय लोग यहां भगवान शिव की पूजा करते हैं.

वीडियो रिपोर्ट
  • मसरूर मंदिर

मसरूर मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में मौजूद एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल है. 15 शिखर मंदिरों वाली यह संरचना गुफाओं के अंदर स्थित है. मान्यता है कि ये मंदिर पांडवों ने अपने वनवास के दौरान पहाड़ को तरास कर बनाया था. इस मंदिर की शिल्प कला वैज्ञानिकों के लिए आज भी किसी अचंभे से कम नहीं है.

  • बाथू मंदिर

कांगड़ा में पांडवों द्वारा निर्मित एक ऐसा मंदिर है जो आठ महीने जल समाधि ले लेता है. आज भी इन मंदिरों के निर्माण में हुई हस्तकला उस जमाने की समृद्ध शिल्पकारी का बखान करती है.

  • हाटेश्वरी मंदिर

जिला शिमला के जुब्बल में मां हाटेश्वरी का प्राचीन मंदिर है. यह शिमला से करीब 110 किमी की दूरी पर पब्बर नदी के किनारे है. मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था. मंदिर के नजदीक ही सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी. जहां पांडवों ने अपने गुप्त वास के कई वर्ष व्यतीत किए थे. माता के मंदिर में तांबे का घड़ा, शिव मंदिर और पत्थरों से बनाए गए पांच पांडव आज भी विराजमान हैं.

  • भीम शिला

प्रदेश के मंडी जिला के जंजैहली गांव में एक ऐसी विशालकाय चट्टान मौजूद है जो पांडव शिला और भीम शिला के नाम से मशहूर है. कहा जाता है कि इस भारी भरकम चट्टान को पांडवों ने अपने अज्ञात वास के दौरान निशानी के तौर पर यहां रखा था. मान्यता है कि इस चट्टान को एक उंगली से हिलाया जा सकता है.

  • करसोग का ममलेश्वर मंदिर

जिला मंडी के करसोग में जहां आज भी पांडवों द्वारा निर्मित कई चीजें है जो आपको अचम्भे में डाल देंगी. मंडी के करसोग का ममलेश्वर मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहां 5000 साल पहले पांडवों द्वार जलाया गया अग्निकुंड आज भी जल रहा है. यही नहीं मंदिर में भीम द्वारा निर्मित ढोल आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

ये भी पढ़ें: यहां आज भी मौजूद है पांडवों द्वारा उगाया 250 ग्राम वजनी गेहूं का दाना

कांगड़ा: उत्तर भारत में आज भी ऐसे कई स्थान हैं जो महाभारत काल से जुडे़ हुए हैं. उन्हीं जगहों में से एक देवभूमि की वो पहाड़ियां भी हैं, जहां पांडवों ने अपने वनवास का अधिकतर समय बिताया था. प्रदेश के जिला मंडी, शिमला, सोलन, कांगड़ा, ऊना, सिरमौर और कुल्लू की वादियों में पांडवों ने कई साल गुजारे थे. जिनके साक्ष्य आज भी मौजूद हैं.

ई़टीवी भारत आज आपको कुछ ऐसे ही स्थानों से रूबरू कराने जा रहा है जहां पांडवों ने महाभारत के युद्ध से पहले समय व्यतीत किया था. तो चलिए आपको सबसे पहले लिए चलते हैं जिला सोलन के करोल में जहां मौजूद रहस्यमयी गुफा आज भी कई राज समेटे हुए हैं. मान्यता है कि भगवान शिव और पांडवों ने यहां तपस्या की थी.

पांडव गुफा के नाम से मशहूर इस गुफा की लम्बाई आज तक कोई नहीं जान पाया है. कहा जाता है कि गुफा के अंदर कई अजीबोंगरीब चीजें हैं, जिन्हें देखने के बाद किसी की अंदर जाने की हिम्मत नहीं होती. गुफा के अदर कई शिवलिंग बने हुए हैं. यह गुफा भगवान शिव से जुड़े अनेकों रहस्य समेटे हुए हैं. सावन के महीने में स्‍थानीय लोग यहां भगवान शिव की पूजा करते हैं.

वीडियो रिपोर्ट
  • मसरूर मंदिर

मसरूर मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में मौजूद एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल है. 15 शिखर मंदिरों वाली यह संरचना गुफाओं के अंदर स्थित है. मान्यता है कि ये मंदिर पांडवों ने अपने वनवास के दौरान पहाड़ को तरास कर बनाया था. इस मंदिर की शिल्प कला वैज्ञानिकों के लिए आज भी किसी अचंभे से कम नहीं है.

  • बाथू मंदिर

कांगड़ा में पांडवों द्वारा निर्मित एक ऐसा मंदिर है जो आठ महीने जल समाधि ले लेता है. आज भी इन मंदिरों के निर्माण में हुई हस्तकला उस जमाने की समृद्ध शिल्पकारी का बखान करती है.

  • हाटेश्वरी मंदिर

जिला शिमला के जुब्बल में मां हाटेश्वरी का प्राचीन मंदिर है. यह शिमला से करीब 110 किमी की दूरी पर पब्बर नदी के किनारे है. मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था. मंदिर के नजदीक ही सुनपुर के टीले पर कभी विराट नगरी थी. जहां पांडवों ने अपने गुप्त वास के कई वर्ष व्यतीत किए थे. माता के मंदिर में तांबे का घड़ा, शिव मंदिर और पत्थरों से बनाए गए पांच पांडव आज भी विराजमान हैं.

  • भीम शिला

प्रदेश के मंडी जिला के जंजैहली गांव में एक ऐसी विशालकाय चट्टान मौजूद है जो पांडव शिला और भीम शिला के नाम से मशहूर है. कहा जाता है कि इस भारी भरकम चट्टान को पांडवों ने अपने अज्ञात वास के दौरान निशानी के तौर पर यहां रखा था. मान्यता है कि इस चट्टान को एक उंगली से हिलाया जा सकता है.

  • करसोग का ममलेश्वर मंदिर

जिला मंडी के करसोग में जहां आज भी पांडवों द्वारा निर्मित कई चीजें है जो आपको अचम्भे में डाल देंगी. मंडी के करसोग का ममलेश्वर मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहां 5000 साल पहले पांडवों द्वार जलाया गया अग्निकुंड आज भी जल रहा है. यही नहीं मंदिर में भीम द्वारा निर्मित ढोल आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

ये भी पढ़ें: यहां आज भी मौजूद है पांडवों द्वारा उगाया 250 ग्राम वजनी गेहूं का दाना

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Last Updated : Dec 14, 2019, 7:32 AM IST
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