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86 के हुए दलाई लामा, दुनिया मानती है शांति दूत...चीन की आंखों में आज भी बने हुए किरकिरी

आज दलाई लामा का 86वां जन्मदिन है. तिब्बत के ल्हासा में आधिकारिक महल पोटाला से दूर भारत में यह उनकी 62वीं जन्मतिथि है. मात्र दो साल की उम्र में ही उन्हें दलाई लामा के तौर पर मान्यता मिली थी. तिब्बत में चीन सरकार के बढ़ते आतंक से उत्पन्न खतरे को भांपकर दलाई लामा 17 मार्च 1959 की रात को ल्हासा में अपने पोटला महल से निकले और 31 मार्च को भारत के तवांग इलाके में पहुंचे.

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Published : Jul 6, 2021, 2:40 PM IST

Updated : Jul 6, 2021, 2:52 PM IST

86th birthday in dharmshala
फोटो.

धर्मशाला: दलाई लामा तिब्बतियों के धर्म प्रमुख के साथ-साथ विश्व शांति के दूत भी हैं. आधी सदी से ज्यादा समय से वह निर्वासन में हैं, लेकिन दलाई लामा आज भी चीन की आंखों में खटकते हैं. आज दलाई लामा का 86वां जन्मदिन है. तिब्बत के ल्हासा में आधिकारिक महल पोटाला से दूर भारत में यह उनकी 62वीं जन्मतिथि है.

दलाई लामा का मूल नाम तेनजिन ग्यात्सो है. तेनजिन ग्यात्सो को जिस समय दलाई लामा के तौर पर मान्यता मिली थी, उस वक्त वे मात्र दो वर्ष के थे. दलाई लामा शब्द मंगोल भाषा से लिया गया है. इसका अर्थ है ज्ञान का सागर. कुंबुम मठ में अभिषेक के बाद उन्हें माता-पिता का ज्यादा साथ नहीं मिल पाया. इसका कारण उनका दलाई लामा बनना था. इनकी शिक्षा-दीक्षा उसी अनुरूप होनी थी.

वीडियो.

किताब में किया बचपन का जिक्र

महामहिम ने स्वयं एक किताब में लिखा है कि एक छोटे बच्चे के लिए मां-बाप से इस तरह अलग रहना सचमुच बहुत कठिन होता है. उस वक्त तो उन्हें यह भी पता नहीं था कि दलाई लामा होने का मतलब क्या है. मैं दूसरों की तरह ही एक छोटा बच्चा था. बचपन में उन्हें एक खास शौक था कि वह एक झोले में कुछ चीजें डालकर उन्हें कंधे पर लटका लेते थे व ऐसा नाटक करते थे कि वह एक लंबी यात्रा पर जा रहे हैं. अक्सर कहा करते थे कि वो ल्हासा जा रहे हैं. दलाई लामा खाने की मेज पर हमेशा जिद करते थे कि मुझे सबसे प्रमुख स्थान पर बिठाया जाए.

15 साल की उम्र में बातचीत के लिए गए थे बीजिंग

दलाई लामा केवल 15 वर्ष के थे तो उन्होंने अपनी सरकार के वरिष्ठ होने के नाते राजनीतिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन शुरू कर दिया था. 1954 में चीनी नेताओं से बातचीत करने चीन की राजधानी बीजिंग गए. चीन तिब्बत के बारे में असहयोगपूर्ण रवैया अपनाए हुए था. वर्ष 1956 में दलाई लामा महात्मा बुद्ध की 2500वीं वर्षगांठ पर भारत आए. इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से तिब्बत की दुर्दशा पर लंबी बातचीत की थी. तिब्बत में चीन का दमन जारी था. तिब्बती सेना में 8 हजार सैनिक थे. ये चीनी सेना के सामने कुछ भी नहीं थे.

1959 में छोड़ा था तिब्बत

तिब्बत में चीन सरकार के बढ़ते आतंक से उत्पन्न खतरे को भांपकर दलाई लामा 17 मार्च 1959 की रात को ल्हासा में अपने पोटला महल से निकले और 31 मार्च को भारत के तवांग इलाके में पहुंचे. इसके बाद दलाई लामा धर्मशाला आ गए. अब दलाई लामा भारत को अपना दूसरा घर मानते हैं. कोरोना के चलते दलाई लामा मार्च 2020 से मैक्लोडगंज में अपने महल में अकेले रह रहे हैं.

ये भी पढ़ें: 14वें बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का आज 86वां जन्मदिन

धर्मशाला: दलाई लामा तिब्बतियों के धर्म प्रमुख के साथ-साथ विश्व शांति के दूत भी हैं. आधी सदी से ज्यादा समय से वह निर्वासन में हैं, लेकिन दलाई लामा आज भी चीन की आंखों में खटकते हैं. आज दलाई लामा का 86वां जन्मदिन है. तिब्बत के ल्हासा में आधिकारिक महल पोटाला से दूर भारत में यह उनकी 62वीं जन्मतिथि है.

दलाई लामा का मूल नाम तेनजिन ग्यात्सो है. तेनजिन ग्यात्सो को जिस समय दलाई लामा के तौर पर मान्यता मिली थी, उस वक्त वे मात्र दो वर्ष के थे. दलाई लामा शब्द मंगोल भाषा से लिया गया है. इसका अर्थ है ज्ञान का सागर. कुंबुम मठ में अभिषेक के बाद उन्हें माता-पिता का ज्यादा साथ नहीं मिल पाया. इसका कारण उनका दलाई लामा बनना था. इनकी शिक्षा-दीक्षा उसी अनुरूप होनी थी.

वीडियो.

किताब में किया बचपन का जिक्र

महामहिम ने स्वयं एक किताब में लिखा है कि एक छोटे बच्चे के लिए मां-बाप से इस तरह अलग रहना सचमुच बहुत कठिन होता है. उस वक्त तो उन्हें यह भी पता नहीं था कि दलाई लामा होने का मतलब क्या है. मैं दूसरों की तरह ही एक छोटा बच्चा था. बचपन में उन्हें एक खास शौक था कि वह एक झोले में कुछ चीजें डालकर उन्हें कंधे पर लटका लेते थे व ऐसा नाटक करते थे कि वह एक लंबी यात्रा पर जा रहे हैं. अक्सर कहा करते थे कि वो ल्हासा जा रहे हैं. दलाई लामा खाने की मेज पर हमेशा जिद करते थे कि मुझे सबसे प्रमुख स्थान पर बिठाया जाए.

15 साल की उम्र में बातचीत के लिए गए थे बीजिंग

दलाई लामा केवल 15 वर्ष के थे तो उन्होंने अपनी सरकार के वरिष्ठ होने के नाते राजनीतिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन शुरू कर दिया था. 1954 में चीनी नेताओं से बातचीत करने चीन की राजधानी बीजिंग गए. चीन तिब्बत के बारे में असहयोगपूर्ण रवैया अपनाए हुए था. वर्ष 1956 में दलाई लामा महात्मा बुद्ध की 2500वीं वर्षगांठ पर भारत आए. इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से तिब्बत की दुर्दशा पर लंबी बातचीत की थी. तिब्बत में चीन का दमन जारी था. तिब्बती सेना में 8 हजार सैनिक थे. ये चीनी सेना के सामने कुछ भी नहीं थे.

1959 में छोड़ा था तिब्बत

तिब्बत में चीन सरकार के बढ़ते आतंक से उत्पन्न खतरे को भांपकर दलाई लामा 17 मार्च 1959 की रात को ल्हासा में अपने पोटला महल से निकले और 31 मार्च को भारत के तवांग इलाके में पहुंचे. इसके बाद दलाई लामा धर्मशाला आ गए. अब दलाई लामा भारत को अपना दूसरा घर मानते हैं. कोरोना के चलते दलाई लामा मार्च 2020 से मैक्लोडगंज में अपने महल में अकेले रह रहे हैं.

ये भी पढ़ें: 14वें बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का आज 86वां जन्मदिन

Last Updated : Jul 6, 2021, 2:52 PM IST
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