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कई औषधिय गुणों से भरपूर है बुरांस, कई बीमारियों का है रामबाण इलाज - पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बुरांश का फूल

बुरांश के पेड़ समुद्रतल तल से लगभग 1500 मीटर से 3600 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाते हैं. हिमाचल प्रदेश में पाए जाने वाला विशिष्ट गुणों से भरपूर है- बुरांश के फूल खिलने का इंतजार करते हैं. पहाड़ों पर आजकल खिले बुरांश के फूल स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं.

Benefits of Rhododendron
कई बीमारियों में रामबाण है प्रदेश में पाया जाने वाला बुरांस का फूल
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Published : Feb 22, 2021, 5:42 PM IST

कांगड़ा: प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हिमाचल प्रदेश अपने हरे-भरे जंगलों, कलकल बहती नदियों, बर्फ से लदे पहाड़ों और जड़ी-बूटियों की वजह से विश्व के मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान रखता है. हिमाचल के जंगलों में कई ऐसे फल-फूल और जड़ी-बूटियां मौजूद हैं, जो अपने विशिष्ट गुणों के कारण कई बीमारियों में रामबाण का काम करती हैं.

विशिष्ट गुणों से भरपूर- बुरांश फूल

ऐसे ही विशिष्ट गुणों से भरपूर है- बुरांश के फूल, जो जनवरी माह के अंत तक जंगलों में खिलना आरम्भ हो जाते हैं. इसके विशिष्ट गुणों से लोग साल भर इसके खिलने का इंतजार करते हैं. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाजार में आते ही यह हाथों-हाथ बिक जाता है.

स्वास्थ्यवर्धक होता है बुरांश का फूल

स्थानीय लोगों के अनुसार इन फूलों को विभिन्न जिलों में आमतौर पर बुरांस, ब्रास, बुरांस या बराह के फूल के नाम से जाना जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार लाल रंग वाले बुरांश के फूलों का औषधीय महत्व अधिक होता है. कई शोधों के अनुसार बुरांसएंटी डायबिटिक, एंटीइंफ्लामेट्री और एंटी बैक्टिरियल गुणों से भरपूर होता है. इस तरह इन फूलों को बेहद स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. लोग इन्हें बवासीर, लीवर, किडनी रोग, खूनी दस्त, बुखार इत्यादि के दौरान प्रयोग में लाते हैं.

ये भी पढ़ेंः लाहौल घाटी के उरगोस में योर उत्सव शुरू

पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र

हिमाचल के पहाड़ों पर आजकल खिले बुरांश के फूल स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं. मनमोहक, आकर्षक और कुदरती गुणों से भरपूर इन फूलों को प्रदेश में आने वाले पर्यटक और स्थानीय लोग अपने-अपने कैमरों में कैद कर रहे हैं.

1500 से 3600 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाते हैं बुरांश के फूल

बुरांश के पेड़ समुद्रतल तल से लगभग 1500 मीटर से 3600 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाते हैं. यह वृक्ष मुख्यतः ढलानदार जमीन पर पाए जाते हैं. बुरांश की विशेषता है कि वे देखने में जितने सुन्दर होते हैं, उतने ही स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं.

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, मंडी, शिमला, चम्बा और सिरमौर में बुरांश के पेड़ अधिक संख्या में पाए जाते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में वृद्ध आज भी बुरांश की चटनी बनवाना नहीं भूलते. वहीं, युवाओं में भी यह चटनी लोकप्रिय है. इसके अलावा आधुनिक फल विधायन के माध्यम से बुरांश के फूलों का जूस बनाया जा रहा है. बुरांश का जूस बाजार में साल भर आसानी से उपलब्ध रहता है.

ये भी पढ़ेंः मशरूम उत्पादन में देश का गौरव बना हिमाचल

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विशिष्ट गुणों से भरपूर- बुरांश फूल

ऐसे ही विशिष्ट गुणों से भरपूर है- बुरांश के फूल, जो जनवरी माह के अंत तक जंगलों में खिलना आरम्भ हो जाते हैं. इसके विशिष्ट गुणों से लोग साल भर इसके खिलने का इंतजार करते हैं. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाजार में आते ही यह हाथों-हाथ बिक जाता है.

स्वास्थ्यवर्धक होता है बुरांश का फूल

स्थानीय लोगों के अनुसार इन फूलों को विभिन्न जिलों में आमतौर पर बुरांस, ब्रास, बुरांस या बराह के फूल के नाम से जाना जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार लाल रंग वाले बुरांश के फूलों का औषधीय महत्व अधिक होता है. कई शोधों के अनुसार बुरांसएंटी डायबिटिक, एंटीइंफ्लामेट्री और एंटी बैक्टिरियल गुणों से भरपूर होता है. इस तरह इन फूलों को बेहद स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. लोग इन्हें बवासीर, लीवर, किडनी रोग, खूनी दस्त, बुखार इत्यादि के दौरान प्रयोग में लाते हैं.

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पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र

हिमाचल के पहाड़ों पर आजकल खिले बुरांश के फूल स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं. मनमोहक, आकर्षक और कुदरती गुणों से भरपूर इन फूलों को प्रदेश में आने वाले पर्यटक और स्थानीय लोग अपने-अपने कैमरों में कैद कर रहे हैं.

1500 से 3600 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाते हैं बुरांश के फूल

बुरांश के पेड़ समुद्रतल तल से लगभग 1500 मीटर से 3600 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाते हैं. यह वृक्ष मुख्यतः ढलानदार जमीन पर पाए जाते हैं. बुरांश की विशेषता है कि वे देखने में जितने सुन्दर होते हैं, उतने ही स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं.

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, मंडी, शिमला, चम्बा और सिरमौर में बुरांश के पेड़ अधिक संख्या में पाए जाते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में वृद्ध आज भी बुरांश की चटनी बनवाना नहीं भूलते. वहीं, युवाओं में भी यह चटनी लोकप्रिय है. इसके अलावा आधुनिक फल विधायन के माध्यम से बुरांश के फूलों का जूस बनाया जा रहा है. बुरांश का जूस बाजार में साल भर आसानी से उपलब्ध रहता है.

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