धर्मशाला: कांगड़ा जिले के बैजनाथ में राज्य स्तरीय शिवरात्रि मेले का आगाज सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू करेंगे. सीएम आज बैजनाथ जाएंगे. वहीं, दोपहर बाद वह राज्यपाल के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के बाद मंडी के लिए रवाना होंगे. बता दें कि हिमाचल की कांगड़ा घाटी शक्तिपीठों व प्राचीन शिवालयों के लिए विश्व विख्यात है, जिसमें जहां प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री ज्वालाजी, चामुंडा और ब्रजेश्वरी धाम कांगड़ा के ऐतिहासिक महत्व का धार्मिक ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है. वहीं, कांगड़ा में अनेक प्राचीन शिवालय विद्यमान हैं, जिनमें से बैजनाथ स्थित शिवधाम एक हैं. जिसके प्रादुर्भाव की कथा दशानन रावण से जुड़ी हुई है.
आज से लगेगा पांच दिवसीय मेला: हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बैजनाथ में महाशिवरात्रि पर 5 दिवसीय राज्य स्तरीय मेला 18 से 22 फरवरी तक मनाया जाएगा, जिसमें शिवलिंग की पूजा- अर्चना और शोभा यात्रा के साथ 18 फरवरी को मेला आरंभ होगा. इस 5 दिवसीय मेले में रात्रि को सिनेमा जगत के प्रसिद्ध कलाकारों के अतिरिक्त प्रदेश के विभिन्न जिलों से प्रसिद्ध कलाकार प्रस्तुतियां देंगे. मंदिर कमेटी मेले के दौरान दंगल का भी आयोजन करेगी, इस मौके पर उत्तर भारत के पहलवान हिस्सा लेंगे.
अश्वमेध यज्ञ के समान मिलता फल: बताते हैं कि इस मंदिर में प्राचीन शिवलिंग के दर्शन करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है. जनश्रुति के अनुसार बैजनाथ शिव मंदिर में विशेषकर महाशिवरात्रि पर्व पर दर्शन करने का विशेष महत्व है. शिवरात्रि पर्व पर इस मंदिर में सुबह से ही भोलेनाथ के दर्शन के लिए हजार लोगों का मेला लगा रहता है.
खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व : इस दिन मंदिर के बाहर बिनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है. श्रद्धालु स्नान करने के बाद शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर उस पर बेलपत्र, फूल भांग, धतूरा आदि अर्पित कर भोले बाबा को प्रसन्न कर खुशहाली का वरदान मांगते हैं.
रावण ने की थी शिव तपस्या: पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की थी. कोई फल न मिलने पर दशानन ने घोर तपस्या प्रारंभ की और अपना एक -एक सिर काट कर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू कर दिया. दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिव जी ने प्रसन्न होकर रावण का हाथ पकड़ लिया उसके सभी सिरों को पुनर्स्थापित कर शिव ने रावण को वरदान मांगने को कहा.
बैजनाथ पहुंचने पर रावण को लघुशंका का आभास: रावण ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि वह कैलाशपति को शिवलिंग के रूप को लंका में स्थापित करना चाहता है. शिवजी ने तथास्तु कहकर लुप्त हो गए. लुप्त होने के पहले शिव जी ने अपनी शिवलिंग स्वरूप चिन्ह रावण को देने से पहले शर्त रखी कि वह इन शिवलिंगों को पृथ्वी पर न रखे. रावण दोनों शिवलिंग लेकर चला गया. रास्ते में गोकर्ण क्षेत्र बैजनाथ पहुंचने पर रावण को लघुशंका का आभास हुआ. रावण ने बैजू नाम के गवले को शिवलिंग पकड़ा दिया और स्वयं लघुशंका निवारण के लिए चला गया. शिवजी की माया के कारण बैजू शिवलिंग के अधिक भार नहीं सहन सका और उसने इसे धरती पर रख दिया.
दोनों शिवलिंग बैजनाथ में स्थापित हो गए: इस तरह दोनों शिवलिंग बैजनाथ में स्थापित हो गए.जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था वह चंद्रताल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की तरफ था वह बैजनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ. मंदिर के सामने कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है. जहां पर भक्तगण नंदी के कान में अपनी मन्नत पूरी होने की कामना करते हैं.
शिवधाम अत्यंत आकर्षक: बता दें कि यह शिवधाम अत्यंत आकर्षक सरंचना व निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने के रूप में विद्यमान है. इस मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश एक डयोढ़ी से होता है. जिसके सामने का बड़ा वर्गाकार मंडप बना हुआ और उत्तर व दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने हैं. मंडप के अग्रभाग में 4 स्तंभों पर टिका एक छोटा बरामदा है. बहुत सारे चित्र दीवार में नक्काशी करके बनाए गए हैं. मंदिर परिसर में प्रमुख मंदिर के अलावा कई और भी छोटे-छोटे मंदिर हैं ,जिनमें भगवान गणेश, मां दुर्गा, राधाकृष्ण व भैरव की प्रतिमाएं विराजमान हैं. देश -विदेश से हर वर्ष लाखों की तादाद यहां लोग शिव दर्शन करने पहुंचते हैं.
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