धर्मशाला: क्षय रोग निवारण समिति की गतिविधियों की समीक्षा बैठक आयोजित की गई. इसकी अध्यक्षता अतिरिक्त उपायुक्त राघव शर्मा ने की. बैठक में मरीजों को जिला टीबी फोरम के अधिकार व दायित्व के बारे में जागरूक किया गया. साथ ही टीबी उन्मूलन हेतु कई पहलुओं पर विशेष चर्चा भी की गई.
वहीं, इस अवसर पर अतिरिक्त उपायुक्त ने जानकारी दी कि क्षय रोग के खात्मे के लिए प्रधानमंत्री द्वारा प्रदेश के सभी मुख्यमंत्रियों को पहले ही इस बाबत बड़े और गम्भीर प्रयासों को करने के लिए 2025 तक टीबी मुक्त भारत बनाए जाने के लिए पत्र लिखा जा चुका है. 24 मई, 2018 को टीबी उन्मूलन के लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी ‘टीबी मुक्त हिमाचल’ अभियान और ‘मुख्यमंत्री क्षय रोग निवारण योजना’ का शुभारंभ किया है.
इसके साथ ही उन्होंने टीबी को समाप्त करने के लिए हर पहलुओं की गंभीरता से समीक्षा की. इसके साथ ही उन्होंने टीबी खात्मे के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को और भी सुदृढ़ बनाने के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश भी दिए.
जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि विश्व में हर साल एक करोड़ टीबी के नए मामले सामने आए हैं, जिसमें से एक चौथाई से अधिक मामले भारत में पाए गए हैं. हालांकि, भारत सरकार द्वारा हिमाचल को बड़े राज्यों में क्षय रोग उन्मूलन में अव्वल आंका गया है.
उन्होंने कहा कि हिमाचल की बात करें तो 2019 में 17,434 नए मरीजों की खोज की जा चुकी है, जिनमें से 3,678 मामले जिला कांगड़ा के पाए गए हैं. उन्होंने बताया कि बिगड़ी हुई टीबी जिसे एमडी. आर.टीबी भी कहते हैं, की प्रदेश में 581 मामले हैं, जिनमें से 115 जिला कांगड़ा के ही हैं.
अधिक मरीज खोजना टीबी उन्मूलन का पहला एवं प्रमुख चरण माना जाता है और साल 2019 में जिला में 3,285 मरीजों में से 348 ऐसे मरीज सामने आए हैं, जो मधुमेह और टीबी दोनों बीमारियों से ग्रसित हैं. इसके साथ ही 60 ऐसे मरीज हैं जो एड्स और टीबी से ग्रसित पाए गए हैं. इसके अलावा 720 ऐसे रोगी हैं, जिन्हें तंबाकू के सेवन से गंभीर बीमारियों ने जकड़ा हुआ है.
वहीं, एडीसी जिला कांगड़ा राघव शर्मा ने कहा कि टीबी रोग का उपचार बीच में छोड़ दिया जाए तो बिगड़ जाता है. जिन परिवारों में टीबी या एचआईवी के मरीज हैं, वो इसे स्टिगमा की तरह न लें, क्योंकि यह बीमारियां ऐसी हैं, जिनका उपचार संभव है. उपचार के सिस्टम में ऐसे मरीजों को लाना जरूरी है.
राघव शर्मा ने कहा कि पंचायत प्रतिनिधियों व जनता से हमारा आग्रह है कि ऐसे मरीजों से भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसे मरीजों को स्वास्थ्य सिस्टम तक पहुंचाने के लिए काउंसलिंग की जानी चाहिए. वहीं, एडीसी राघव शर्मा ने कहा कि जिला कांगड़ा में 1,253 मरीज एचआईवी से ग्रस्त हैं, जिनका उपचार चल रहा है.
उन्होंने कहा कि जिन मरीजों को एचआईवी होता है उन्हें टीबी भी हो जाता है. इसलिए इस रोग के डबल इंपेक्ट को ट्रेस करने का प्रयास किया जा रहा है कि जिन्हें टीबी है उन्हें एचआईवी तो नहीं है. साथ ही जिन्हें एचआईवी है उन्हें टीबी तो नहीं है. जिससे हमें इस इपेक्टस की वास्तविक स्थिति पता चल सके. एचआईवी में इम्यूनिटी कम होती है तो सबसे पहले टीबी के लक्षण बढ़ते हैं.
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