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mahashivratri 2023:बारिश के देवता माने जाते हैं भोलेनाथ,जानें भगवान शिव की महिमा..

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Published : Feb 17, 2023, 12:42 PM IST

महाशिवरात्रि का त्योहर कल मनाया जाएगा. हमीरपुर में पांडव कालीन ऐतिहासिक गसोता महादेव मंदिर को बारिश का देवता माना जाता है. (mahashivratri 2023) (mahashivratri special story)

mahashivratri 2023
mahashivratri 2023
भगवान शिव की महिमा

हमीरपुर: पांडव कालीन ऐतिहासिक गसोता महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग को बारिश का देवता भी माना जाता है. सदियों पुरानी परंपरा है कि जब बारिश नहीं होती तब स्थानीय लोग धोती और पानी से भरा घड़ा लेकर गसोता महादेव के मंदिर पहुंचते हैं. बारिश होगी अथवा नहीं इसको लेकर महादेव की तरफ से यहां श्रद्धालुओं को साक्षात प्रमाण दिया जाता है. धोती से लिपटे पानी के घड़े को जब भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है तो लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित भगवान भोलेनाथ के स्थापित चरणों में स्वत ही जल की धारा फूट पड़ती थी.

जल की धारा निकली तो बारिश की गारंटी: किंवदंतियों के अनुसार गसोता महादेव के शिवलिंग पर परंपरा के मुताबिक जल चढ़ाने के बाद यदि डेढ़ किलोमीटर दूर भगवान के चरणों से जल की धारा निकले तो बारिश की गारंटी मानी जाती है. भगवान भोलेनाथ का स्वयंभू शिवलिंग कि यहां पर उत्पत्ति का इतिहास भी बेहद रोचक है. उत्पत्ति के वक्त भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर किसान के हल से लगे घाव के निशान आज भी देखे जा सकते हैं. इस बार भी पांडव काल से समय से जुडे ऐतिहासिक गसोता महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व के लिए तैयारियां जोरों से की जा रही है.

गसोता महादेव मंदिर हमीरपुर
गसोता महादेव मंदिर हमीरपुर

गसोता महादेव मंदिर में पांडवों ने बिताय था समय : गसोता महादेव मंदिर परिसर को सजाने के लिए बेंगलुरु से टनों के हिसाब से मंगवाए गए स्पेशल फूलों से सजावट की जा रही है. महाशिवरात्रि पर्व पर हर साल मंदिर परिसर में पूरे हिमाचल से श्रद्वालु आते हैं. कहा जाता है कि पांडव काल से स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के दुख कष्ट दूर हो जाते हैं. मान्यता है कि गसोता महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग में पूजा- अर्चना करने के साथ एक लोटा जलाभिषेक करने से मन की मुराद पूरी होती है. कहा जाता है कि पांडव काल में गसोता महादेव मंदिर में पांडवों में कुछ समय बिताया था.

बेंगलुरु के फूलों से सज रहा महादेव का दरबार: मंदिर के महंत राघवानंद गिरी महाराज ने बताया कि महाशिवरात्रि पर्व के लिए विशेष तैयारियां की जा रही है और फूलों को बाहर से मंगवाया गया है. उन्होंने बताया कि 18 फरवरी को शिवरात्रि पर्व के दिन हिमाचल, पंजाब व हरियाणा से भक्त पहुंचते हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर में एक लोटा जल चढाने से हर कष्ट से मुक्ति मिलती है. उन्होंने बताया कि हजारों वर्ष पुराने मंदिर के प्रति लोगों की अपार आस्था है. महादेव मंदिर के नाम यहां पर 550 कनाल भूमि है, जिसमें एक बड़ा खेलों का बगीचा भी है.स्थानीय व्यक्ति रामलाल ने बताया कि महादेव को बारिश के देवता के रूप में भी माना जाता है.

खेत में शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे भोलेनाथ: किंवदंतियों के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां खेत में शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे. राघवानंद गिरी महाराज ने बताया कि हल जोतते समय पिंडी टकराई थी और तीन जगहों पर धाराएं बही थी. उन्होंने बताया कि गाथाओं के अनुसार किसान और बैल दोनों अंधे हो गए थे. उन्होंने बताया कि जब लोग वहा पहुंचे तो सभी लोगों ने प्रार्थना की जिससे किसान व बैल को ज्योति आ गई. इसके बाद महादेव पूजन के साथ पालकी में पिंडी को रखा गया, लेकिन विश्राम के लिए गसोता में रुके थे जहां से दोबारा पिंडी नहीं उठाई जा सकी.
ये भी पढ़ें : mahashivratri 2023: शिमला में 500 साल पुराना स्वयंभू शिवलिंग, अंग्रेज भी करते थे पूजा

भगवान शिव की महिमा

हमीरपुर: पांडव कालीन ऐतिहासिक गसोता महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग को बारिश का देवता भी माना जाता है. सदियों पुरानी परंपरा है कि जब बारिश नहीं होती तब स्थानीय लोग धोती और पानी से भरा घड़ा लेकर गसोता महादेव के मंदिर पहुंचते हैं. बारिश होगी अथवा नहीं इसको लेकर महादेव की तरफ से यहां श्रद्धालुओं को साक्षात प्रमाण दिया जाता है. धोती से लिपटे पानी के घड़े को जब भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है तो लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित भगवान भोलेनाथ के स्थापित चरणों में स्वत ही जल की धारा फूट पड़ती थी.

जल की धारा निकली तो बारिश की गारंटी: किंवदंतियों के अनुसार गसोता महादेव के शिवलिंग पर परंपरा के मुताबिक जल चढ़ाने के बाद यदि डेढ़ किलोमीटर दूर भगवान के चरणों से जल की धारा निकले तो बारिश की गारंटी मानी जाती है. भगवान भोलेनाथ का स्वयंभू शिवलिंग कि यहां पर उत्पत्ति का इतिहास भी बेहद रोचक है. उत्पत्ति के वक्त भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग पर किसान के हल से लगे घाव के निशान आज भी देखे जा सकते हैं. इस बार भी पांडव काल से समय से जुडे ऐतिहासिक गसोता महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व के लिए तैयारियां जोरों से की जा रही है.

गसोता महादेव मंदिर हमीरपुर
गसोता महादेव मंदिर हमीरपुर

गसोता महादेव मंदिर में पांडवों ने बिताय था समय : गसोता महादेव मंदिर परिसर को सजाने के लिए बेंगलुरु से टनों के हिसाब से मंगवाए गए स्पेशल फूलों से सजावट की जा रही है. महाशिवरात्रि पर्व पर हर साल मंदिर परिसर में पूरे हिमाचल से श्रद्वालु आते हैं. कहा जाता है कि पांडव काल से स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के दुख कष्ट दूर हो जाते हैं. मान्यता है कि गसोता महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग में पूजा- अर्चना करने के साथ एक लोटा जलाभिषेक करने से मन की मुराद पूरी होती है. कहा जाता है कि पांडव काल में गसोता महादेव मंदिर में पांडवों में कुछ समय बिताया था.

बेंगलुरु के फूलों से सज रहा महादेव का दरबार: मंदिर के महंत राघवानंद गिरी महाराज ने बताया कि महाशिवरात्रि पर्व के लिए विशेष तैयारियां की जा रही है और फूलों को बाहर से मंगवाया गया है. उन्होंने बताया कि 18 फरवरी को शिवरात्रि पर्व के दिन हिमाचल, पंजाब व हरियाणा से भक्त पहुंचते हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर में एक लोटा जल चढाने से हर कष्ट से मुक्ति मिलती है. उन्होंने बताया कि हजारों वर्ष पुराने मंदिर के प्रति लोगों की अपार आस्था है. महादेव मंदिर के नाम यहां पर 550 कनाल भूमि है, जिसमें एक बड़ा खेलों का बगीचा भी है.स्थानीय व्यक्ति रामलाल ने बताया कि महादेव को बारिश के देवता के रूप में भी माना जाता है.

खेत में शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे भोलेनाथ: किंवदंतियों के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां खेत में शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे. राघवानंद गिरी महाराज ने बताया कि हल जोतते समय पिंडी टकराई थी और तीन जगहों पर धाराएं बही थी. उन्होंने बताया कि गाथाओं के अनुसार किसान और बैल दोनों अंधे हो गए थे. उन्होंने बताया कि जब लोग वहा पहुंचे तो सभी लोगों ने प्रार्थना की जिससे किसान व बैल को ज्योति आ गई. इसके बाद महादेव पूजन के साथ पालकी में पिंडी को रखा गया, लेकिन विश्राम के लिए गसोता में रुके थे जहां से दोबारा पिंडी नहीं उठाई जा सकी.
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