हमीरपुरः पहाड़ी राज्य हिमाचल में रियासतों के दौर के अधिकतर किले आज के दौर में जर्जर हो चुके हैं. रियासती दौर में राजा और प्रजा के लिए यह दुश्मनों पर नजर रखने का एक सशक्त माध्यम होते थे. शानों शौकत का उदाहरण ऐसा ही एक सरहदी किला कटोच वंश के अंतिम शासक राजा संसार चंद ने हमीरपुर जिला में भी बनवाया था. जिसे आज महल मोयरियां किला के नाम से जाना जाता है.
किंवदंतियों के अनुसार जिला हमीरपुर के उपमंडल भोरंज में स्थित महाराजा संसार चंद के प्राचीन महल मोरिया किले में आज भी अरबों रुपए का रियासती दौर का खजाना दबा हुआ है.
खंडहर बन चुके इस किले की कहानी और जर्जर हालत को देखने के लिए ईटीवी भारत की टीम इस किले तक पहुंची, लेकिन इस एतेहासिक किले तक पहुंचने वाला सफर बेहद ही चुनौतीपूर्ण था. सड़क से करीब चार किलोमीटर का पैदल सफर कर सुनसान और जंगली रास्तों के बीच से स्थानीय निवासी के साथ ईटीवी भारत के संवाददाता कमलेश भारद्वाज ने सफर शुरू किया.
कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली थी
किले तक पहुंचने के लिए कलकल बहती कुनाह खड्ड को पार कर खड़ी चढ़ाई शुरू की. करीब 1 घंटे की चढ़ाई के बाद ईटीवी भारत की संवाददाता स्थानीय निवासी के साथ किले तक पहुंच गए. महल मोरियां किले का सफर शुरू करते ही स्थानीय लोगों की तरफ से बताई जा रही यह कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली थी.
मान्यता है कि इसमें दबा अरबों का खजाना आज भी सुरक्षित है. सरहदी किले में दबे इस खजाने की रक्षा इस जंगल में रहने वाले जहरीले सांप करते हैं. जिस किसी ने भी इस खजाने को निकालने का प्रयास किया उसे इन जहरीले सांपो का सामना करना पड़ा है.
वहीं, गांवासियों ने बताया कि कई बार खजाने को निकालने के प्रयास भी किए गए हैं, लेकिन किसी को भी सफलता हाथ नहीं लगी. कई बार जहरीले सांपों से सामना होने के बाद लोगों ने खजाने को निकालने के प्रयास अब बंद कर दिए हैं. साथ ही इस किले की मौजूदा स्थिति के बारे में बात करें तो, आज भले ही इस किले की दीवारें ध्वस्त हो चुकी हों, लेकिन इसकी बनावट से पता चलता है कि यहां से दूर से आ रहा दुश्मन भी आसानी से देखा जा सकता था.
महल गांव के बीच की पहाड़ी पर कुनाह खड्ड के किनारे पर हैं
महल मोरियां का किला हमीरपुर जिला के महल गांव के बीच की पहाड़ी पर कुनाह खड्ड के किनारे पर हैं. इस गांव को आज भी महल नाम से जाना जाता है. जाहिर है कि इस गांव का नाम यहां पर सरहदी किला होने की वजह से रियासतों के दौर में पढ़ा था, जिस वजह से महल नाम से जाना जाता है.
यहां पर 1805 ई. में राजा संसार चंद गोरखा सेना के आगे परास्त हुए थे. महाराजा संसार चंद ने सुजानपुर टिहरा के साथ नादौन में कुछ समय व्यतीत किया जहां आज भी उनके पूर्वज रहते हैं. कहा जाता है कि इस किले में ही मंडी रियासत के राजा ईश्वरी सेन को राजा संसार चंद ने कई वर्षों तक कैद करके रखा था, जिन्हें आजाद करने के लिए गोरखा सेना ने दो बार राजा संसार चंद से युद्ध लड़ा.
अरबों रुपए का खजाना दबे होने की बात कही जाती है
एक बार तो राजा संसार चंद ने गोरखा को खदेड़ दिया, लेकिन दूसरी बार वह किला नहीं बचा पाए और लंबी कैद के बाद राजा ईश्वरी सेन को गोरखा आजाद करके ले गए. तमाम बाधाओं को पार करने के बाद ईटीवी भारत की टीम यहां पर पहुंची और उस जगह को भी दिखाया जिसके बारे में अरबों रुपए का खजाना दबे होने की बात कही जाती है. हालांकि इसके कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है, लेकिन गांवासियों में यह धारणा यहां प्रचलित है.
इतना ही नहीं गुपचुप तरीके से इस खजाने को यहां से चुराने के प्रयास तो हुए हैं. इस सरहदी महल मोरियां किले पर हुई खुदाई इन प्रयासों का प्रमाण भी है, लेकिन सरकार और प्रशासन इस बारे में कुछ भी कहने को तैयार नहीं है. इस सरहदी किले की महज चंद दीवारें बची हैं और चारों ओर सिर्फ जंगल ही जंगल नजर आता है.
दंतकथा भी इस किले के खंडहर में तबदील होने का बड़ा कारण बनी
अब यहां पर इस किले को विकसित करने की संभावना भी लगभग ना के समान बची है. साथ ही इसके साथ सांपों द्वारा खजाने की रक्षा करने की दंतकथा भी इस किले के खंडहर में तबदील होने का बड़ा कारण बनी है. इसी तरह सरकार और स्थानीय लोगों की अनदेखी के चलते हिमाचल प्रदेश की एक और धरोहर मिट्टी में मिल गई.