हमीरपुर: ढाई दशक के अपने कार्यकाल में हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर का विवादों से नाता रहा है. 24 वर्ष के आयोग के कार्यकाल में दो दफा नाम भी बदला लेकिन छवि सुधरने के बजाय धूमिल होती गई. साल 1998 में धूमल सरकार में गठित यह आयोग सुक्खू सरकार के सत्ता में आते आते अपने कारनामों से ही धूमिल हो गया. भर्ती में धांधली और चिट पर नौकरी चुनावों में खूब मुद्दे बने. लेकिन मुकम्मल तौर पर आयोग की सर्जरी किसी भी सरकार में नहीं हो पाई. लोगों के रोजगार से सीधे तौर पर जुड़े इस एजेंसी पर सवाल तो पहले भी उठे लेकिन शासकीय तौर पर इस एजेंसी पर कार्रवाई करने की दृढ़ इच्छा शक्ति सरकारों में कम ही दिखी.
यही वजह रही कि गठन के शुरुआती सालों में विवादों में आने के बावजूद सत्तासीन सरकारें इस भर्ती एजेंसी को ढोहती दिखी. 3 साल से अधिक की भर्ती प्रक्रिया में पेपर लीक की आशंकाओं के चलते गठन के 24 वर्ष बाद आखिरकार प्रदेश के सबसे बड़ी सरकारी भर्ती एजेंसी भंग कर दिया गया. लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद आयोग की भर्ती प्रक्रिया में धांधली सामने आना नया नहीं है. साल 2004 में भी सत्ता परिवर्तन होते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में यहां पर बड़ी कार्रवाई की जा चुकी है. कर्मचारी चयन आयोग के गठन के कुछ सालों के भीतर ही कर्मचारी चयन आयोग भर्तियों में धांधली को लेकर सवालों में घिर गया था.
जब चयन आयोग को वीरभद्र सिंह ने मुर्गी खाना बनाने की बात कही: इतना ही नहीं धूमल सरकार में कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर को विपक्ष में रहते हुए दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने मुर्गी खाना बनाने की बात तक कह डाली थी. साल 2003-04 में चिट पर नौकरी दिए जाने के मुद्दे को लेकर विधानसभा चुनावों में भी खूब हो हल्ला हुआ था. विपक्ष में रहते हुए वीरभद्र सिंह ने आयोग के मुद्दे को लेकर भाजपा सरकार को घेरा था. वीरभद्र सिंह के कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर को मुर्गी खाना बनाने के बयान पर भी धूमल सरकार ने आपत्ति जताई थी, हालांकि दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का यह बयान कहीं भी रिकॉर्ड में नहीं है. उन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के इस कथित बयान को लेकर खबरों में सुर्खियां खूब बनी. साल 2004 में वीरभद्र सिंह के दोबारा मुख्यमंत्री बनते ही आयोग में बड़ी कार्रवाई की गई. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि कर्मचारी चयन आयोग में भर्ती घोटाले नए नहीं हैं.
2004 में सत्ता में आते ही वीरभद्र सिंह ने भी लिया था बड़ा एक्शन: सालों पहले सामने आए मामले में आरोपियों को हाल ही के कुछ सालों में सजाएं हुई हैं. सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद साल 2004 में भी कांग्रेस सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में बड़ी कार्रवाई की गई थी. वर्ष 2001-02 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के कार्यकाल में सरकारी पदों पर भर्तियां हुई थीं. प्रदेश में भाजपा की सरकार के रहते चयन बोर्ड के माध्यम से हुई इन भर्तियों में धांधली के आरोप लगे थे. वर्ष 2004 में सत्ता परिवर्तन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इस भर्ती फर्जीवाड़े के मामले में जांच के आदेश दिए थे. विजिलेंस ने मामला दर्ज कर छानबीन शुरू की और चालान कोर्ट में पेश किया था.आरोप साबित होने पर हमीरपुर सत्र न्यायालय ने चयन बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन समेत छह को सजा सुनाई थी. सभी हाईकोर्ट चले गए. कोर्ट ने भ्रष्टाचार समेत अन्य धाराएं हटाते हुए एक-एक साल का कारावास और पांच-पांच हजार जुर्माने की सजा सुनाई. सर्वोच्च न्यायालय में अपील खारिज होने के बाद सभी को विजिलेंस ने गिरफ्तार कर लिया, जिन्हें बाद में जेल भेज दिया गया.
नाम बदला पर नहीं बदले भर्ती में धांधली के प्रकरण: साल 1998 में धूमल सरकार में हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड के नाम से इस भर्ती एजेंसी को गठित किया गया था. कांग्रेस सरकार में साल 2016 में हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड का नाम बदलकर हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग कर दिया गया. भर्ती एजेंसी का नाम कांग्रेस सरकार में बदल गया लेकिन भर्तियों में धांधली के प्रकरण नहीं बदले. यही वजह रही कि सत्ता परिवर्तन के कुछ दिनों बाद ही साल 2022 में पेपर लीक का भंडाफोड़ हुआ. सुक्खू सरकार के गठन को 15 दिन भी नहीं हुए थे और कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर में 23 दिसंबर को पेपर लीक का यह मामला सामने आ गया था. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस मामले में पूर्व की भाजपा सरकार को घेरते हुए गंभीर सवाल उठाए थे. पेपर लीक का भंडाफोड़ होने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बड़े स्तर पर धांधली होने की आशंका जताते हुए कर्मचारी चयन आयोग की फंक्शनिंग को सस्पेंड कर दिया था. वहीं, अब इसे मुकम्मल तौर पर भंग कर दिया गया है.
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