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30 साल से खुले आसमान के नीचे झाड़ियों के बीच खंडहर में जिंदगी काट रही गुलाबो, प्रशासन ने नहीं मिली मदद - गुलाबो लाइफ स्टोरी

हमीरपुर से महज 5 किलोमीटर दूर झनियारी गांव में गुलाबो ने शिमला धर्मशाला नेशनल हाइवे किनारे कंटीली झाड़ियों में ही खंडहर को अपना आशियाना बना रखा है. इस आशियाने में कोई दीवार और खिड़की नहीं हैं, लेकिन फिर भी यही खंडहर गुलाबों के लिए आशियाना बना हुआ है.

gulabo living in bad condition in hamirpur
खंडहर में जिंदगी काट रही गुलाबो
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Published : Jan 17, 2020, 5:59 PM IST

हमीरपुर: जिला मुख्यालय हमीरपुर से महज 5 किलोमीटर दूर झनियारी गांव में गुलाबो ने शिमला-धर्मशाला नेशनल हाइवे के किनारे कंटीली झाड़ियों में खंडहर को अपना आशियाना बना रखा है. इस आशियाने में कोई दीवार और खिड़की नहीं हैं, लेकिन फिर भी यही खंडहर गुलाबों के लिए आशियाना बना हुआ है.

झाड़ियों से घिरे इस जगह पर गुलाबो पिछले 30 सालों से रह रही है. छत के नाम पर एक तिरपाल, ओढ़ने के लिए कंबल और सोने के लिए चारपाई है. साथ ही कुछ बर्तन है, जिसमें गांव वाले लोग रोटी दे जाते हैं.

वीडियो रिपोर्ट

स्थानीय निवासी संजीव कुमार ने कहा कि 30-35 सालों से यह महिला इस जगह पर रह रही है, लेकिन उसे लेने कोई नहीं आया. उन्होंने सरकार और प्रशासन से इस महिला को शिफ्ट कर उचित इलाज करवाने की मांग उठाई है, ताकि गुलाबो बेहतर जीवन यापन कर सके.

इस महिला को स्थानीय पंचायत ने छत मुहैया करवाने के प्रयास भी किया. कुछ समय पहले ही पास के एक जंजघर में महिला को शिफ्ट किया गया था, लेकिन इस महिला को कहीं भी शिफ्ट करने से पहले मानसिक उपचार की सख्त जरूरत है.

शीतकालीन सत्र के लिए शिमला से तपोवन धर्मशाला तक शासन और सरकार के नुमाइंदे शिमला धर्मशाला एनएच से 30 सालों से इसी जगह से गुजरते हैं, लेकिन किसी नेता और अफसर ने इस बुजुर्ग महिला की कभी सुध नहीं ली. स्थानीय निवासी रतन चंद का कहना है कि दो-तीन बार प्रशासन से मांग उठा चुके हैं कि महिला का उपचार करवाया जाए. इसके बावजूद कोई नेता और अधिकारी इस महिला की सुध लेने नहीं आया.

तीन दशक में देश और प्रदेश में कईं सरकारें आई, लेकिन गुलाबो के लिए कोई फरिश्ता बनकर नहीं आया. हर साल बरसात और सर्दियां मुसीबत बनकर जरूर आती हैं, लेकिन गुलाबो हर मौसम खुले आसमान के नीचे बिताने को मजबूर है.

स्थानीय पंचायत के उपप्रधान अरुण कुमार ने कहा कि रात को यहां से गुजरने पर गुलाबो कांगड़ी गीत गाते हुए सुनाई देती है. असहाय बुजुर्ग महिला का दर्द कभी गालियों में निकलता है तो कभी कांगड़ी गीतों में झलकता है.

ईटीवी भारत ने इस असहाय बुजुर्ग की आवाज को प्रशासन और सरकार तक पहुंचाने का प्रयास किया है . बता दें कि गांव वालों ने गुलाबों की जवानी में भरपूर मदद कर साथ तो निभाया ,लेकिन सरकार और प्रशासन एक महिला के अस्तित्व को 30 साल बाद भी तलाश नहीं सकते या फिर तलाशना ही नहीं चाहते.

ये भी पढ़ें: जिला परिषद की बैठक में अधिकारियों और सदस्यों में गहमागहमी, हाउस को गुमराह करने के आरोप

हमीरपुर: जिला मुख्यालय हमीरपुर से महज 5 किलोमीटर दूर झनियारी गांव में गुलाबो ने शिमला-धर्मशाला नेशनल हाइवे के किनारे कंटीली झाड़ियों में खंडहर को अपना आशियाना बना रखा है. इस आशियाने में कोई दीवार और खिड़की नहीं हैं, लेकिन फिर भी यही खंडहर गुलाबों के लिए आशियाना बना हुआ है.

झाड़ियों से घिरे इस जगह पर गुलाबो पिछले 30 सालों से रह रही है. छत के नाम पर एक तिरपाल, ओढ़ने के लिए कंबल और सोने के लिए चारपाई है. साथ ही कुछ बर्तन है, जिसमें गांव वाले लोग रोटी दे जाते हैं.

वीडियो रिपोर्ट

स्थानीय निवासी संजीव कुमार ने कहा कि 30-35 सालों से यह महिला इस जगह पर रह रही है, लेकिन उसे लेने कोई नहीं आया. उन्होंने सरकार और प्रशासन से इस महिला को शिफ्ट कर उचित इलाज करवाने की मांग उठाई है, ताकि गुलाबो बेहतर जीवन यापन कर सके.

इस महिला को स्थानीय पंचायत ने छत मुहैया करवाने के प्रयास भी किया. कुछ समय पहले ही पास के एक जंजघर में महिला को शिफ्ट किया गया था, लेकिन इस महिला को कहीं भी शिफ्ट करने से पहले मानसिक उपचार की सख्त जरूरत है.

शीतकालीन सत्र के लिए शिमला से तपोवन धर्मशाला तक शासन और सरकार के नुमाइंदे शिमला धर्मशाला एनएच से 30 सालों से इसी जगह से गुजरते हैं, लेकिन किसी नेता और अफसर ने इस बुजुर्ग महिला की कभी सुध नहीं ली. स्थानीय निवासी रतन चंद का कहना है कि दो-तीन बार प्रशासन से मांग उठा चुके हैं कि महिला का उपचार करवाया जाए. इसके बावजूद कोई नेता और अधिकारी इस महिला की सुध लेने नहीं आया.

तीन दशक में देश और प्रदेश में कईं सरकारें आई, लेकिन गुलाबो के लिए कोई फरिश्ता बनकर नहीं आया. हर साल बरसात और सर्दियां मुसीबत बनकर जरूर आती हैं, लेकिन गुलाबो हर मौसम खुले आसमान के नीचे बिताने को मजबूर है.

स्थानीय पंचायत के उपप्रधान अरुण कुमार ने कहा कि रात को यहां से गुजरने पर गुलाबो कांगड़ी गीत गाते हुए सुनाई देती है. असहाय बुजुर्ग महिला का दर्द कभी गालियों में निकलता है तो कभी कांगड़ी गीतों में झलकता है.

ईटीवी भारत ने इस असहाय बुजुर्ग की आवाज को प्रशासन और सरकार तक पहुंचाने का प्रयास किया है . बता दें कि गांव वालों ने गुलाबों की जवानी में भरपूर मदद कर साथ तो निभाया ,लेकिन सरकार और प्रशासन एक महिला के अस्तित्व को 30 साल बाद भी तलाश नहीं सकते या फिर तलाशना ही नहीं चाहते.

ये भी पढ़ें: जिला परिषद की बैठक में अधिकारियों और सदस्यों में गहमागहमी, हाउस को गुमराह करने के आरोप

Intro: Gulabo special story
30 साल से खुले आसमान के नीचे कटीली झाड़ियों के बीच खंडहर में जिंदगी काट रही गुलाबो
हमीरपुर।
गांव वाले गुलाबो बुलाते हैं, असल नाम तो कोई जानता ही नहीं । 30 वर्ष बीत चुके हैं इस बदहाली में लेकिन इनका अस्तित्व क्या है ये आज भी एक राज है। बस नाम गुलाबो है इनका लेकिन जिंदगी के सावन तो कांटों में बीत।
ये किस्सा है जिला मुख्यालय हमीरपुर से महज 5 किलोमीटर दूर स्थित झनियारी गांव तथाकथित गुलाबों का। गुलाबो ने शिमला धर्मशाला नेशनल एनएच किनारे कटीली झाड़ियों में ही खंडहर को अपना आशियाना बना रखा है। खंडहर भी ऐसा जिसमें ना कोई छत ना कोई दीवार और ना ही कोई खिड़की दरवाजा। लेकिन फिर भी यही खंडहर गुलाबों के लिए आशियाना बना हुआ है।
वैसे तो कंटीली झाड़ियों में चंद कच्ची ईंटों की तीन फीट की जर्जर हो चुकी दीवारों को आशियाना कहना जायज नहीं, लेकिन जहां कोई 30 सावन बिता चुका हो उसे खंडहर कहना भी मुनासिब नहीं। झाड़ियों से घिरे इस गरीब के घरोंदे में कुछ भी नहीं है चंद बर्तन है जिसमें गांव वाले रोटी दे जाते हैं। छत के नाम पर एक तिरपाल, ओढने के लिए कंबल, सोने के लिए चारपाई है तो सही। लेकिन शायद ही कभी इनका इस्तेमाल हुआ हो।
जवानी की जिस उम्र में लड़कियां हाथों में मेहंदी, आंखों में काजल और घर बसाने के सपने देखती हों, उसी उम्र में गुलाबो को न जाने इस जिंदगी ने ऐसा क्या दिखाया जिसके सदमे ने गुलाबो के अस्तित्व को मिटा ही रख दिया है।
स्थानीय लोगों की मानें तो गुलाबो कभी-कभार ही बात करती है। गांव वाले कहते हैं कि कभी-कभी खयालों से बाहर निकल कर गुलाबो इस कद्र गाली गलौज करती है कि ना जाने उसके साथ जिंदगी ने कौन सा खेल खेला हो?



Body:स्थानीय निवासी संजीव कुमार कहते हैं कि 30-35 बरसों से यह महिला यहां पर रह रही है लेकिन उसकी लेने कोई नहीं आया। उन्होंने सरकार और प्रशासन से इस महिला को यहां से शिफ्ट कर उचित इलाज करवाने की मांग उठाई है. ताकि उसका जीवन यापन बेहतर हो सके।
ऐसा नहीं है कि इस महिला को स्थानीय पंचायत ने छत मुहैया करवाने के प्रयास नहीं किए कुछ समय पहले ही पास के एक जंजघर में महिला को शिफ्ट किया गया था लेकिन इस महिला को कहीं भी शिफ्ट करने से पहले मानसिक उपचार की सख्त जरूरत है। बता दें कि शीतकालीन सत्र के लिए शिमला से तपोवन धर्मशाला तक शासन और सरकार के नुमाइंदे शिमला धर्मशाला एनएच से होते हुए 30 सालों से हर बार इसी स्थान से गुजरते हैं है लेकिन किसी नेता अथवा अफसर ने बदहाल जिंदगी जी रही इस बुजुर्ग महिला की कभी सुध नही ली। लोगों को इस बात का भी मलाल है कि प्रशासन और सरकार की अनदेखी से इस महिला ने अपनी जवानी को नर्क में जैसे तैसे काट लिया लेकिन अब बुढ़ापा सिर पर है ऐसे में लोगों की चिंताएं भी इस महिला के लिए बढ़ गई हैं।
स्थानीय निवासी रतन चंद का कहना है कि दो-तीन बार प्रशासन से मांग उठा चुके हैं कि महिला का उपचार करवाया जाए। इतने लंबे अरसे में ना तो कोई नेता और ना ही कोई अधिकारी इस महिला की सुध लेने आया है।




Conclusion:तीन दशक में देश और प्रदेश में कईं सरकारें आई और गई लेकिन गुलाबो के लिए कोई फरिश्ता बनकर नहीं आया, हर साल बरसात और सर्दियां मुसीबत बनकर जरूर आती है । गुलाबो ने जवानी में तो सब झेल लिया लेकिन अब बुढ़ापे ने डराना शुरू कर दिया है। चेहरे पर झुर्रियां, कमजोर शरीर और आंखों में बयां न होने वाला दर्द लेकिन आज भी गुलाबो की नजरें सड़क पर सरपट दौड़ते उन वाहनों पर टिकी रहती है। शायद आज भी गुलाबो को किसी के आने का इंतजार है।

स्थानीय पंचायत के उपप्रधान अरुण कुमार कहते हैं कि रात को कभी जब यहां से गुजरते हैं तो गुलाबो कांगड़ी गीत गाते हुए सुनाई देती है। असहाय बुजुर्ग महिला का दर्द कभी गालियों में निकलता है तो कभी कांगड़ी गीतों में।

जी हां यह थी गुलाबों की दर्द भरी कहानी ईटीवी भारत ने इस असहाय बुजुर्ग की आवाज को प्रशासन और सरकार तक पहुंचाने का प्रयास किया है . बता दें कि गांव वालों ने गुलाबों की जवानी में भरपूर मदद कर साथ तो निभाया लेकिन सवाल यह है कि सरकार और प्रशासन क्या इतने नाकाम है कि एक महिला के अस्तित्व को 30 बरस बाद भी तलाश नहीं सकते या फिर तलाशना ही नहीं चाहते। क्या सरकार की तरफ से गुलाबों को कोई मदद मिलेगी या फिर कांटों यह आशियाना ही उसकी कब्र बन जाएगा।
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