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दियोटसिद्ध: जानिए बाबा बालक नाथ की दिव्य शक्तियों और उनके धाम की पूरी कहानी

बाबा बालक नाथ को भगवान कार्तिकेय का अवतार माना जाता है. मंदिर में पहाड़ी के बीच एक प्राकृतिक गुफा है. ऐसी मान्यता है कि यही स्थान बाबाजी का आवास स्थान था. मंदिर में बाबा की एक मूर्ति स्थित है. भक्तगण बाबा की वेदी में 'रोट' चढ़ाते हैं. 'रोट' को आटे और चीनी/गुड़ को घी में मिलाकर बनाया जाता है. यहां पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है, जो कि उनके प्रेम का प्रतीक है. यहां पर बकरे की बलि नहीं चढ़ाई जाती बल्कि उनका पालन पोषण करा जाता है.

बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास, History of Baba Balak Nath Temple
जानिए बाबा बालक नाथ की दिव्य शक्तियों और उनके धाम की पूरी कहानी
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Published : Dec 16, 2019, 7:45 PM IST

हमीरपुर: उत्तरी भारत के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध जिला मुख्यालय हमीरपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बाबा बालक नाथ के दर्शनों के लिए हिमाचल के साथ ही पंजाब हरियाणा दिल्ली उत्तरी भारत के लगभग हर राज्य से श्रद्धालु हर साल दर्शन करने पहुंचते हैं.

बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास, History of Baba Balak Nath Temple
बाबा बालक नाथ मंदिर प्रवेश द्वार.

बाबा बालक नाथ को भगवान कार्तिकेय का अवतार माना जाता है. मंदिर में पहाड़ी के बीच एक प्राकृतिक गुफा है. ऐसी मान्यता है कि यही स्थान बाबाजी का आवास स्थान था. मंदिर में बाबा की एक मूर्ति स्थित है. भक्तगण बाबा की वेदी में 'रोट' चढ़ाते हैं. 'रोट' को आटे और चीनी/गुड़ को घी में मिलाकर बनाया जाता है. यहां पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है, जो कि उनके प्रेम का प्रतीक है. यहां पर बकरे की बलि नहीं चढ़ाई जाती बल्कि उनका पालन पोषण करा जाता है.

बाबा बालक नाथ के बारे में एक और कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि शाहतलाई में रत्नो माई नाम की एक महिला रहती थी जिनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने बाबा बालक नाथ को अपना धर्म का पुत्र बनाया था. बाबा बालक नाथ ने 12 साल माता रत्नो माई की गायें चराई. एक दिन जब गायें लोगों के खेतों में चरने के लिए घुस गई तो माता रत्नो के पास लोग शिकायत लेकर आए जिससे माता रत्नो ने गुस्से में आकर बाबा बालक नाथ बुरा भला कहा जिसके बाबा ने तानों से दुखी होकर 12 साल की लस्सी और रोटियां लौटा दीं.

बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास, History of Baba Balak Nath Temple
बाबा बालक नाथ मंदिर परिसर.

जब ये कहानी आस पास के लोगों को पता चली तो ये रिद्धी सिद्धी पूरी जगह फैल गई. जब गुरू गोरख नाथ को इसका पता चला तो वो काफी खुश हुए और बाबा बालक नाथ के पास पहुंच गए और उन्हें अपना चेला बनने के लिए कहा, लेकिन बाबा ने मना कर दिया. गोरख नाथ ने क्रोधित होकर उन्हें जबरदस्ती अपना चेला बनाने की कोशिश की. बाबा ने उड़ारी मारी और धौलगिरी पर्वत पर पहुंच गए. जहां बाबा की पवित्र गुफा है. मंदिर के मुख्य द्वार के साथ ही बाबा का अखंड धूणा है जो सबको आकर्षित करता है. धूणे के पास ही बाबा बालक नाथ का चिमटा मौजूद है. बताया जाता है कि बाबा बालक नाथ की गुफा में दियोट (दीपक) जलता था. जिसकी रोशनी दूर दूर तक जाती थी. जिसके बाद यहां का नाम दियोटसिद्ध पड़ा.

बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास, History of Baba Balak Nath Temple
बाबा बालक नाथ मंदिर का विहंगम दृश्य.

बाबा की गुफा में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है, लेकिन उनके दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊंचा चबूतरा बनाया गया है. जहां से महिलाएं उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं. मंदिर से करीब छह किमी आगे एक स्थान 'शाहतलाई' स्थित है. ऐसी मान्यता है कि इसी जगह बाबाजी 'ध्यानयोग' किया करते थे. चैत्र नवरात्रों के दौरान यहां पर एक महीना मेले का आयोजन होता है. इस दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. बाबा बालकनाथ हिंदू और सिख धर्म के अनुयायियों के पूजनीय देवता हैं.

वीडियो.

कैसे पहुंचे?
बाबा बालक नाथ का मंदिर जिला कांगड़ा के गग्गल स्थित एयरपोर्ट से यहां 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. एयरपोर्ट से एनएच 503 के माध्यम से लगभग तीन घंटे का सफर तय कर यहां पर पहुंचा जा सकता है. वहीं, यहां बस से कार किसी भी माध्यम से पहुंचा जा सकता है.

ये भी पढ़ें- बाबा बालक नाथ मंदिर से होगा लाइव आरती का प्रसारण, केंद्र से 1 करोड़ 41 लाख का बजट जारी

हमीरपुर: उत्तरी भारत के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध जिला मुख्यालय हमीरपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बाबा बालक नाथ के दर्शनों के लिए हिमाचल के साथ ही पंजाब हरियाणा दिल्ली उत्तरी भारत के लगभग हर राज्य से श्रद्धालु हर साल दर्शन करने पहुंचते हैं.

बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास, History of Baba Balak Nath Temple
बाबा बालक नाथ मंदिर प्रवेश द्वार.

बाबा बालक नाथ को भगवान कार्तिकेय का अवतार माना जाता है. मंदिर में पहाड़ी के बीच एक प्राकृतिक गुफा है. ऐसी मान्यता है कि यही स्थान बाबाजी का आवास स्थान था. मंदिर में बाबा की एक मूर्ति स्थित है. भक्तगण बाबा की वेदी में 'रोट' चढ़ाते हैं. 'रोट' को आटे और चीनी/गुड़ को घी में मिलाकर बनाया जाता है. यहां पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है, जो कि उनके प्रेम का प्रतीक है. यहां पर बकरे की बलि नहीं चढ़ाई जाती बल्कि उनका पालन पोषण करा जाता है.

बाबा बालक नाथ के बारे में एक और कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि शाहतलाई में रत्नो माई नाम की एक महिला रहती थी जिनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने बाबा बालक नाथ को अपना धर्म का पुत्र बनाया था. बाबा बालक नाथ ने 12 साल माता रत्नो माई की गायें चराई. एक दिन जब गायें लोगों के खेतों में चरने के लिए घुस गई तो माता रत्नो के पास लोग शिकायत लेकर आए जिससे माता रत्नो ने गुस्से में आकर बाबा बालक नाथ बुरा भला कहा जिसके बाबा ने तानों से दुखी होकर 12 साल की लस्सी और रोटियां लौटा दीं.

बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास, History of Baba Balak Nath Temple
बाबा बालक नाथ मंदिर परिसर.

जब ये कहानी आस पास के लोगों को पता चली तो ये रिद्धी सिद्धी पूरी जगह फैल गई. जब गुरू गोरख नाथ को इसका पता चला तो वो काफी खुश हुए और बाबा बालक नाथ के पास पहुंच गए और उन्हें अपना चेला बनने के लिए कहा, लेकिन बाबा ने मना कर दिया. गोरख नाथ ने क्रोधित होकर उन्हें जबरदस्ती अपना चेला बनाने की कोशिश की. बाबा ने उड़ारी मारी और धौलगिरी पर्वत पर पहुंच गए. जहां बाबा की पवित्र गुफा है. मंदिर के मुख्य द्वार के साथ ही बाबा का अखंड धूणा है जो सबको आकर्षित करता है. धूणे के पास ही बाबा बालक नाथ का चिमटा मौजूद है. बताया जाता है कि बाबा बालक नाथ की गुफा में दियोट (दीपक) जलता था. जिसकी रोशनी दूर दूर तक जाती थी. जिसके बाद यहां का नाम दियोटसिद्ध पड़ा.

बाबा बालक नाथ मंदिर का इतिहास, History of Baba Balak Nath Temple
बाबा बालक नाथ मंदिर का विहंगम दृश्य.

बाबा की गुफा में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है, लेकिन उनके दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊंचा चबूतरा बनाया गया है. जहां से महिलाएं उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं. मंदिर से करीब छह किमी आगे एक स्थान 'शाहतलाई' स्थित है. ऐसी मान्यता है कि इसी जगह बाबाजी 'ध्यानयोग' किया करते थे. चैत्र नवरात्रों के दौरान यहां पर एक महीना मेले का आयोजन होता है. इस दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. बाबा बालकनाथ हिंदू और सिख धर्म के अनुयायियों के पूजनीय देवता हैं.

वीडियो.

कैसे पहुंचे?
बाबा बालक नाथ का मंदिर जिला कांगड़ा के गग्गल स्थित एयरपोर्ट से यहां 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. एयरपोर्ट से एनएच 503 के माध्यम से लगभग तीन घंटे का सफर तय कर यहां पर पहुंचा जा सकता है. वहीं, यहां बस से कार किसी भी माध्यम से पहुंचा जा सकता है.

ये भी पढ़ें- बाबा बालक नाथ मंदिर से होगा लाइव आरती का प्रसारण, केंद्र से 1 करोड़ 41 लाख का बजट जारी

Intro:टूरिज्म असाइनमेंट
उत्तरी भारत के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध जिला मुख्यालय हमीरपुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जिला कांगड़ा के गग्गल स्थित एयरपोर्ट से यहां 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एयरपोर्ट से एनएच 503 के माध्यम से लगभग 3:00 घंटे का सफर तय कर यहां पर पहुंचा जा सकता है। बाबा बालक नाथ को भगवान कार्तिकेय का अवतार माना जाता है। यहां पर बाबा नाथ के दर्शनों के लिए हिमाचल के साथ ही पंजाब हरियाणा दिल्ली उत्तरी भारत के लगभग हर राज्य से श्रद्धालु हर साल दर्शन करने पहुंचते हैं. यहां पर लाखों की संख्या में हर साल श्रद्धालु बाबा के दर में शीश नवाते हैं. चैत्र नवरात्रों के दौरान यहां पर एक महीना मेले का आयोजन होता है इस दौरान करीब 1000000 श्रद्धालु पहुंचते हैं. बाबा बालकनाथ हिंदू और सिख धर्म के अनुयायियों के पूजनीय देवता हैं।


Body:ईटीवी बिहारी के लिए स्पेशल असाइनमेंट।


Conclusion:
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