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चंबा में पीठ पर उठा कर अस्पताल पुहंचाया मरीज, सड़क सुविधा से वंचित 2 दर्जन गांव - no road facility in chamba

चंबा की भावला पंचायत के 2 दर्जन गांव में आजादी के सात दशक बाद भी लोगों को पीठ पर उठाकर सड़क तक पहुंचाया जाता है. हिमाचल प्रदेश सरकार लोगों को बेहतर सुविधाएं देने की बात करती है, लेकिन आजादी के साथ दशक बीत जाने के बाद भी कई गांव ऐसे हैं जहां सड़क सुविधा नहीं होने से लोगों को भारी परेशानियां झेलनी पड़ती है.

Villagers craving the road even after seven decades of independence in chamba
आजादी के सात दशक बाद भी सड़क को तरस रहे ग्रामीण
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Published : Feb 7, 2021, 8:15 PM IST

चंबा: हिमाचल प्रदेश सरकार लोगों को बेहतर सुविधाएं देने की बात करती है, लेकिन आजादी के साथ दशक बीत जाने के बाद भी कई गांव ऐसे हैं जहां सड़क सुविधा नहीं होने से लोगों को भारी परेशानियां झेलनी पड़ती है.

यही हाल चंबा जिला के अंतर्गत आने वाली भावला पंचायत के दो दर्जन गांवों का है. यहां आजादी के सात दशक बाद भी लोगों को पीठ पर उठाकर सड़क तक पहुंचाया जाता है.

इस बार भी इस क्षेत्र के अंतर्गत एक बीमार महिला को लोगों ने पीठ पर उठाकर सड़क तक पहुंचाया. वहीं महिला को इस तरह से ले जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है.

वीडियो.

इससे पहले भी ठीक इसी तरह का एक मामला प्रकाश में आया था जब ग्रामीणों ने एक बीमार महिला को पालकी में उठाकर मुख्य सड़क तक पहुंचाा था. इसे इन लोगों का दुर्भाग्य कहें या राजनेताओं की नाकामी, लेकिन सफर बदस्तूर जारी है कई नेता आए कई नेता गए.

गांववालों को मिल रहा सिर्फ आश्वासन

हर किसी ने गांव वालों को आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं दिया. जब भी चुनाव होते हैं, तब नेता गांव तक तो पहुंच जाते हैं. लेकिन जीतने के बाद अपने वादे भूल जाते हैं. नेता इन इलाकों की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते हैं.

पीठ पर मरीजों को अस्पताल पहुंचाते हैं ग्रामीण

जब भी यहां कोई बीमार होता है, तो उसे पीठ पर उठाकर सडक तक पहुंचाने के सिवाय दूसरा और कोई रास्ता गांव वालों के पास नहीं है. गांव के लोग मांग करते-करते थक चुके हैं, लेकिन नेताओं के पास गांववालों के लिए समय नहीं है छोटी-सी बीमारी के लिए भी 10 किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता है. अगर ऐसी स्थिति में कोई गर्भवती महिला बीमार हो जाए, तो उसे बड़ी मुश्किल से लोग जान जोखिम में डालकर सडक तक पहुंचाते हैं.

स्कूली बच्चे भी परेशान

यही हाल स्कूली बच्चों का भी है. स्कूली बच्चों को दसवीं की पढ़ाई करने के बाद 10 किलोमीटर का पैदल सफर तय करने के बाद राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला कल्हेल पहुंचना पड़ता है. इसके चलते कई परिवार को अपनी बेटियों को इतनी दूर भेजने में भी असमर्थ होते हैं. क्योंकि पैदल रास्ता तय करके पहुंचना पड़ता है, जो मुश्किल भरा है. अक्सर बच्चियां स्कूल छोड़ने को मजबूर होती हैं.

सरकार के वादे-दावे कोरा कागज

बता दें कि आज भी लोग बीमार होने की सूरत में पीठ पर उठाकर सड़क तक पहुंचाने पड़ते हैं. अस्पताल ले जाने के बाद जब वापस घर जाना हो, तो चढ़ाई चढ़ लोग अपने घरों तक पहुंचने के लिए मजबूर होते आ रहे हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है. ऐसे में साफ है कि सरकार के वादे और दावे कोरे कागज की तरह है.

ये भी पढ़ेंः- यूको बैंक संगड़ाह में सेंधमारी कर कैश उड़ाने का प्रयास, दबोचे गए 2 आरोपी

चंबा: हिमाचल प्रदेश सरकार लोगों को बेहतर सुविधाएं देने की बात करती है, लेकिन आजादी के साथ दशक बीत जाने के बाद भी कई गांव ऐसे हैं जहां सड़क सुविधा नहीं होने से लोगों को भारी परेशानियां झेलनी पड़ती है.

यही हाल चंबा जिला के अंतर्गत आने वाली भावला पंचायत के दो दर्जन गांवों का है. यहां आजादी के सात दशक बाद भी लोगों को पीठ पर उठाकर सड़क तक पहुंचाया जाता है.

इस बार भी इस क्षेत्र के अंतर्गत एक बीमार महिला को लोगों ने पीठ पर उठाकर सड़क तक पहुंचाया. वहीं महिला को इस तरह से ले जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है.

वीडियो.

इससे पहले भी ठीक इसी तरह का एक मामला प्रकाश में आया था जब ग्रामीणों ने एक बीमार महिला को पालकी में उठाकर मुख्य सड़क तक पहुंचाा था. इसे इन लोगों का दुर्भाग्य कहें या राजनेताओं की नाकामी, लेकिन सफर बदस्तूर जारी है कई नेता आए कई नेता गए.

गांववालों को मिल रहा सिर्फ आश्वासन

हर किसी ने गांव वालों को आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं दिया. जब भी चुनाव होते हैं, तब नेता गांव तक तो पहुंच जाते हैं. लेकिन जीतने के बाद अपने वादे भूल जाते हैं. नेता इन इलाकों की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते हैं.

पीठ पर मरीजों को अस्पताल पहुंचाते हैं ग्रामीण

जब भी यहां कोई बीमार होता है, तो उसे पीठ पर उठाकर सडक तक पहुंचाने के सिवाय दूसरा और कोई रास्ता गांव वालों के पास नहीं है. गांव के लोग मांग करते-करते थक चुके हैं, लेकिन नेताओं के पास गांववालों के लिए समय नहीं है छोटी-सी बीमारी के लिए भी 10 किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता है. अगर ऐसी स्थिति में कोई गर्भवती महिला बीमार हो जाए, तो उसे बड़ी मुश्किल से लोग जान जोखिम में डालकर सडक तक पहुंचाते हैं.

स्कूली बच्चे भी परेशान

यही हाल स्कूली बच्चों का भी है. स्कूली बच्चों को दसवीं की पढ़ाई करने के बाद 10 किलोमीटर का पैदल सफर तय करने के बाद राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला कल्हेल पहुंचना पड़ता है. इसके चलते कई परिवार को अपनी बेटियों को इतनी दूर भेजने में भी असमर्थ होते हैं. क्योंकि पैदल रास्ता तय करके पहुंचना पड़ता है, जो मुश्किल भरा है. अक्सर बच्चियां स्कूल छोड़ने को मजबूर होती हैं.

सरकार के वादे-दावे कोरा कागज

बता दें कि आज भी लोग बीमार होने की सूरत में पीठ पर उठाकर सड़क तक पहुंचाने पड़ते हैं. अस्पताल ले जाने के बाद जब वापस घर जाना हो, तो चढ़ाई चढ़ लोग अपने घरों तक पहुंचने के लिए मजबूर होते आ रहे हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है. ऐसे में साफ है कि सरकार के वादे और दावे कोरे कागज की तरह है.

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