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देश-विदेश में तारीफें बटोर रहा चंबा रुमाल, 50 हजार से 5 लाख तक है कीमत

देश-विदेश में तारीफें बटोर रहा चंबा रुमाल 50 हजार से 5 लाख तक है कीमत

चंबा रुमाल.
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Published : Mar 21, 2019, 6:07 AM IST

चंबा: देवभूमि हिमाचल के चंबा जिला को विरासत में मिली कला आज देश-विदेश में तारीफें बटोर रही है. चंबा में प्राचीन काल से बनाए जा रहे रुमाल आज दुनिया भर में ख्याति पा चुके हैं. रुमाल ऐसा जिसे आप एक बार देखें तो देखते रह जाएं.

इस खास तरह के रुमाल की कीमत पचास हजार से पांच लाख रुपये तक होती है. चंबा रुमाल आज किसी पहचान का मौहताज नहीं है. तीन बार राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित हो चुकी हस्तशिल्प कलाकार ललिता वकील इस कला के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर रही है.

देश-विदेश में तारीफें बटोर रहा चंबा रुमाल

चंबा रुमाल में धागे से कढ़ाई कर विशेष नक्काशी की जाती है. रियासतकाल में विकसित हुए चंबा रूमाल को ब्राह्मण और मुस्लिम महिलाओं ने बनाना शुरू किया. शुरुआत में महिलाएं खादी के साधारण कपड़े पर धार्मिक चित्रों और फूलपत्ती के डिजाइन को उकेरती थीं. राजा उमेद सिंह के शासन काल से वर्चस्व में चंबा रुमाल को इस मुकाम तक पहुंचाने में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित माहेश्वरी देवी का अहम योगदान रहा है.

chamba rumal
चंबा रुमाल.

18वीं सदी में ब्रिटिश अधिकारियों और पड़ोसी रियासतों के राजाओं को उपहार में चंबा रूमाल को भेंट के तौर पर देने का दौर शुरू हुआ. इस रुमाल पर बनी कलाकृतियां और भी सुंदर दिखें. इसके लिए इग्लैंड, जर्मन सहित दूसरे देशों से रेशम के कपड़े और सिल्क की कढ़ाई के लिए प्रयोग होने वाले धागों को मंगवाया जाने लगा. इसके बाद इस कला को रियासतकाल में ही चंबा के अतिरिक्त विदेशी सरजमीं पर पहचान मिली.

जर्मन और इग्लैंड समेत देश-विदेश के दर्जनों संग्रहालयों में आज भी चंबा रुमाल के कई नायाब नमूने हैं. जो आज भी इस कला के स्वर्णिम दौर की गवाही दे रहे हैं.

चंबा: देवभूमि हिमाचल के चंबा जिला को विरासत में मिली कला आज देश-विदेश में तारीफें बटोर रही है. चंबा में प्राचीन काल से बनाए जा रहे रुमाल आज दुनिया भर में ख्याति पा चुके हैं. रुमाल ऐसा जिसे आप एक बार देखें तो देखते रह जाएं.

इस खास तरह के रुमाल की कीमत पचास हजार से पांच लाख रुपये तक होती है. चंबा रुमाल आज किसी पहचान का मौहताज नहीं है. तीन बार राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित हो चुकी हस्तशिल्प कलाकार ललिता वकील इस कला के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर रही है.

देश-विदेश में तारीफें बटोर रहा चंबा रुमाल

चंबा रुमाल में धागे से कढ़ाई कर विशेष नक्काशी की जाती है. रियासतकाल में विकसित हुए चंबा रूमाल को ब्राह्मण और मुस्लिम महिलाओं ने बनाना शुरू किया. शुरुआत में महिलाएं खादी के साधारण कपड़े पर धार्मिक चित्रों और फूलपत्ती के डिजाइन को उकेरती थीं. राजा उमेद सिंह के शासन काल से वर्चस्व में चंबा रुमाल को इस मुकाम तक पहुंचाने में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित माहेश्वरी देवी का अहम योगदान रहा है.

chamba rumal
चंबा रुमाल.

18वीं सदी में ब्रिटिश अधिकारियों और पड़ोसी रियासतों के राजाओं को उपहार में चंबा रूमाल को भेंट के तौर पर देने का दौर शुरू हुआ. इस रुमाल पर बनी कलाकृतियां और भी सुंदर दिखें. इसके लिए इग्लैंड, जर्मन सहित दूसरे देशों से रेशम के कपड़े और सिल्क की कढ़ाई के लिए प्रयोग होने वाले धागों को मंगवाया जाने लगा. इसके बाद इस कला को रियासतकाल में ही चंबा के अतिरिक्त विदेशी सरजमीं पर पहचान मिली.

जर्मन और इग्लैंड समेत देश-विदेश के दर्जनों संग्रहालयों में आज भी चंबा रुमाल के कई नायाब नमूने हैं. जो आज भी इस कला के स्वर्णिम दौर की गवाही दे रहे हैं.

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