चंबा: सर्दियों की शुरुआत होते ही भरमौर के दयोल गांव में बांडा महोत्सव मनाया जाता है. तीन दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव को जुदाई से पहले मिलन का महोत्सव कहा जाता है. दरअसल, भारी बर्फबारी होने के कारण क्षेत्र के लोग व भेड़ पालक उत्सव के आखिरी दिन अपने पशुधन के साथ निचले इलाकों की ओर पलायन कर जाते हैं. महोत्सव की शुरुआत होते ही रिश्तेदार, बहू-बेटियां एक-दूसरे से मिलने आते हैं और उत्सव के आखिरी दिन सभी एक-दूसरे से जुदा हो जाते हैं.
बता दें कि चंबा जिला में भारी हिमपात को देखते हुए दयोल गांव के लोगों ने सुरक्षा के लिहाज से जिला कांगड़ा के निचले क्षेत्रों में भी घर बनाए हैं. दशकों से मनाए जाने वाला बांडा महोत्सव 25 सालों से बंद पड़ा था, लेकिन गांव के युवाओं की पहल ने अपने इस पारंपरिक उत्सव को फिर से शुरू कर दिया और वर्षों से चली आ रही परंपराओं को पुराने रीति-रिवाजों के साथ ही निभाया जा रहा है.
महोत्सव के दूसरे दिन तीन मशालें जलाई जाती हैं. मान्यता है कि ये मशालें ब्रह्मा, विष्णु व महेश का प्रतीक होती हैं. गांव की महिलाएं व पुरुष अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनकर मशाल के चारों तरफ घूमते हैं. मशाल के इर्द-गिर्द घूम कर डंडारस नृत्य किया जाता है और ये नृत्य तब तक किया जाता है जब तक मशालें बुझ नहीं जाती. डंडारस नृत्य के अगले दिन ही सभी एक दूसरे से जुदा हो जाते हैं.
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