शिमला: शिमला-चंडीगढ़ नेशनल हाइवे पर सती जलेल पंचायत में कभी हरी भरी फसल लहलाती थी, लेकिन अब यहां कुछ ही खेतों में थोड़ी-थोड़ी फसल ही देखने को मिलती है. शिमला शहर से सिर्फ 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जलेल पंचायत में अब लगभग हर किसान परिवार खेतीबाड़ी छोड़ दी है.
किसानों की खती छोड़ने की वजह इलाके में जंगली जानवरों का आतंक है. जलेल पंचायत के खेतों में कभी बंपर फसल की पैदावार हुआ करती थी और उस समय ये इलाका अपने आप में मिसाल कायम किया करता था, लेकिन आज यहां बंदरों, जंगली सुअरों, नील गाय और लंगूरों जैसे जंगली जानवरों का आतंक है, जिससे यहां के किसानों ने खेतीबाड़ी को छोड़ने का फैसला किया है. अब यहां के खेतों में फसलों की बजाए हजारों वाहन खड़े हैं, जो एक कार कंपनी ने इन किसानों से सस्ती दरों पर मासिक किराए के रूप में लिए हैं.
किसानों को नई गाड़ियों को पार्क करने की एवज में कार बिक्री कंपनी तीन हजार रुपये प्रति माह से लेकर 20 हजार रुपये प्रतिमाह देती है. ये गाड़ियां शिमला, सिरमौर और सोलन में कार बिक्री कंपनी के शो रूम ले जाई जाती हैं. किसानों को ये सौदा घाटे का नहीं लगता. किसानों का कहना है कि जहां उन्हें एक पैसे की आमदन नहीं हो पा रही थी. वहीं, अपने खेत किराए पर देने से वो कम से कम अपने परिवार का गुजर बसर तो कर रहे हैं.
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किसानो का कहना है की साल भर की कड़ी मेहनत और फसलों पर पैसा खर्च करने के बाद भी उनके हाथ खाली के खाली रह जाते हैं. ऐसे में खाली खेतों में वाहनों के लिए किराया आना उनके लिए एक बहुत बड़ी राहत है. किसानों ने बताया कि भले ही उनकी मजबूरी हो, लेकिन अपने परिवार का जिम्मा उठाने के लिए उनके पास कोई और विकल्प था ही नहीं. सरकार विकास की सिर्फ बातें करती हैं, लेकिन सरकार वादों को भूल जाती है. किसानों की शिकायत है कि जानवरों से निजात दिलवाने के लिए कई बार सरकार के सामने गुहार लगाई, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई.
वहीं, कार कंपनी को अपनी गाड़ियों को खड़ी करने के लिए शहर में पार्किंग नहीं मिल रही थी और जब किसानों ने कंपनी को अपने खेत देने की बात कही, तो कंपनी इन किसानों को खेतो में गाड़ी खड़ी करने के बदले 100 गाड़ियों पर दस हजार प्रति माह दे रही है, जिससे इन किसानों को काफी अच्छी आमदनी मिल रही है.