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शारदीय नवरात्रि: मां नैना देवी मंदिर के चमत्कार जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

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Published : Oct 22, 2020, 1:18 PM IST

शारदीय नवरात्रों के चलते मां नैना देवी के दर में हर रोज सैकड़ों श्रद्वालुओं का तांता लगा रहता है. ऐसे में कोविड-19 की गाइडलाइन को पूरा करते हुए श्रद्वालुओं को माता के दर्शन करवाए जा रहे हैं. यहां नवरात्रि के दौरान हजारों लोगों ने माता के दर्शन किए हैं.

Naina Devi temple
नैना देवी मंदिर

बिलासपुर: शारदीय नवरात्रों के चलते मां नैना देवी के दर में हर रोज सैकड़ों श्रद्वालुओं का तांता लगा रहता है. ऐसे में कोविड-19 की गाइडलाइन को पूरा करते हुए श्रद्वालुओं को माता के दर्शन करवाए जा रहे हैं. यहां नवरात्रि के दौरान हजारों लोगों ने माता के दर्शन किए हैं.

नैना देवी मंदिर में हवन कुंड और पवित्र ज्योतियां यहां की खासियत मानी जाती है. आंधी, तूफान, बारिश के दौरान अकसर मंदिर में दिव्य ज्योतियां प्रज्ज्वलित होती हैं. यह ज्योतियां पीपल के पत्तों, झंडों यहां तक की भक्तों की हथेलियों तक आ जाती हैं.

वीडियो रिपोर्ट.

हवन कुंड को साफ नहीं किया जाता

वहीं, आज भी नैना देवी मंदिर में एक ऐसा हवन कुंड है जिससे हवन एवं यज्ञ से उत्पन्न होने वाली विभूति को बाहर नहीं निकाला जाता. हवन इसी कुंड में समाहित हो जाता है और अपने आप ही साफ हो जाता है. कहा जाता है कि किसी भी श्रद्वालु के इस हवन कुंड में माथा न टेकने पर उसकी यात्रा सफल नहीं मानी जाती है.

गुरु गोबिंद सिंह ने की थी तपस्या

सिक्खों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने भी यहां तपस्या व हवन किया था. उनकी तपस्या से खुश होकर मां भवानी ने गुरू गोबिंद सिंह को दर्शन दिए और उन्हें तलवार भेंट की. साथ ही उन्हें विजयी होने का वरदान दिया था. मां का आशीर्वाद पाकर उन्होंने मुगलों को पराजित किया था. कहा जाता है कि आनंदपुर साहिब की ओर जाने से पहले गुरु गोबिंद सिंह ने अपने तीर की नोक से तांबे की एक प्लेट पर अपने पुरोहित को हुक्मनामा लिखकर दिया, जो आज भी नैना देवी के पंडित के पास सुरक्षित है.

Naina Devi Temple
नैना देवी मंदिर

महिषासुर का किया था वध

ऐसी भी मान्यता है कि जिस समय महिषासुर राक्षस और नैना देवी के बीच युद्ध होने पर मां ने उसे वरदान दिया कि मेरे हाथों मृत्यु होने के कारण तू एक क्षण के लिए भी मेरे चरणों से अलग नहीं होगा. जहां मेरा पूजन होगा वहां पर तुम भी पूजे जाओगे. तब से यहां माता जगदंबा भी विरामजान है. यह स्थान एक सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है.

क्यों पड़ा नाम नैना देवी

कथाओं के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए. उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया. इससे स्वर्ग में सभी देवता भयभीत हो गए. इस पर उन्होंने भगवान विष्णु से अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काटने का आग्रह किया. भगवान विष्णु के सती के शरीर को काटने पर उनकी आंखे इस जगह पर गिरी थी, जिसके बाद से ही यहां का नाम नैना देवी पड़ा.

Naina Devi Temple
नैना देवी मंदिर

बिलासपुर के महाराजा वीरचंद ने करवाया निर्माण

पुजारी वर्ग के मुताबिक नैना देवी मंदिर का निर्माण पांडवों ने द्वापर युग में किया था.उसी आधार पर वर्तमान स्वरूप का निर्माण बिलासपुर के महाराजा वीरचंद ने लगभग 1400 साल पहले करवाया था. भगवती माता के अन्य स्थानों की अपेक्षा नैनादेवी का अधिक महत्व है क्योंकि अन्य स्थान या तो सिद्धपीठ है या शक्ति पीठ, लेकिन यह स्थान दोनों तरह से महत्व रखता है.

बिलासपुर के महाराजा वीरचंद ने राजस्थान के चंदेरी में सपने में यह स्थान देखा. सपने में राजा को आदेश हुए कि इस स्थान का उद्धार और पूजन करने पर वह इस राज्य का शासक बनेगा. इस पर महाराजा वीरचंद ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया. यहां से लगभग तीन किलोमीटर दूरी पर राजा ने कोट कहलूर किला बनाया जो बिलासपुर के राजाओं की प्रथम राजधानी मानी जाती है.

बिलासपुर: शारदीय नवरात्रों के चलते मां नैना देवी के दर में हर रोज सैकड़ों श्रद्वालुओं का तांता लगा रहता है. ऐसे में कोविड-19 की गाइडलाइन को पूरा करते हुए श्रद्वालुओं को माता के दर्शन करवाए जा रहे हैं. यहां नवरात्रि के दौरान हजारों लोगों ने माता के दर्शन किए हैं.

नैना देवी मंदिर में हवन कुंड और पवित्र ज्योतियां यहां की खासियत मानी जाती है. आंधी, तूफान, बारिश के दौरान अकसर मंदिर में दिव्य ज्योतियां प्रज्ज्वलित होती हैं. यह ज्योतियां पीपल के पत्तों, झंडों यहां तक की भक्तों की हथेलियों तक आ जाती हैं.

वीडियो रिपोर्ट.

हवन कुंड को साफ नहीं किया जाता

वहीं, आज भी नैना देवी मंदिर में एक ऐसा हवन कुंड है जिससे हवन एवं यज्ञ से उत्पन्न होने वाली विभूति को बाहर नहीं निकाला जाता. हवन इसी कुंड में समाहित हो जाता है और अपने आप ही साफ हो जाता है. कहा जाता है कि किसी भी श्रद्वालु के इस हवन कुंड में माथा न टेकने पर उसकी यात्रा सफल नहीं मानी जाती है.

गुरु गोबिंद सिंह ने की थी तपस्या

सिक्खों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने भी यहां तपस्या व हवन किया था. उनकी तपस्या से खुश होकर मां भवानी ने गुरू गोबिंद सिंह को दर्शन दिए और उन्हें तलवार भेंट की. साथ ही उन्हें विजयी होने का वरदान दिया था. मां का आशीर्वाद पाकर उन्होंने मुगलों को पराजित किया था. कहा जाता है कि आनंदपुर साहिब की ओर जाने से पहले गुरु गोबिंद सिंह ने अपने तीर की नोक से तांबे की एक प्लेट पर अपने पुरोहित को हुक्मनामा लिखकर दिया, जो आज भी नैना देवी के पंडित के पास सुरक्षित है.

Naina Devi Temple
नैना देवी मंदिर

महिषासुर का किया था वध

ऐसी भी मान्यता है कि जिस समय महिषासुर राक्षस और नैना देवी के बीच युद्ध होने पर मां ने उसे वरदान दिया कि मेरे हाथों मृत्यु होने के कारण तू एक क्षण के लिए भी मेरे चरणों से अलग नहीं होगा. जहां मेरा पूजन होगा वहां पर तुम भी पूजे जाओगे. तब से यहां माता जगदंबा भी विरामजान है. यह स्थान एक सिद्ध पीठ के नाम से भी जाना जाता है.

क्यों पड़ा नाम नैना देवी

कथाओं के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए. उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया. इससे स्वर्ग में सभी देवता भयभीत हो गए. इस पर उन्होंने भगवान विष्णु से अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काटने का आग्रह किया. भगवान विष्णु के सती के शरीर को काटने पर उनकी आंखे इस जगह पर गिरी थी, जिसके बाद से ही यहां का नाम नैना देवी पड़ा.

Naina Devi Temple
नैना देवी मंदिर

बिलासपुर के महाराजा वीरचंद ने करवाया निर्माण

पुजारी वर्ग के मुताबिक नैना देवी मंदिर का निर्माण पांडवों ने द्वापर युग में किया था.उसी आधार पर वर्तमान स्वरूप का निर्माण बिलासपुर के महाराजा वीरचंद ने लगभग 1400 साल पहले करवाया था. भगवती माता के अन्य स्थानों की अपेक्षा नैनादेवी का अधिक महत्व है क्योंकि अन्य स्थान या तो सिद्धपीठ है या शक्ति पीठ, लेकिन यह स्थान दोनों तरह से महत्व रखता है.

बिलासपुर के महाराजा वीरचंद ने राजस्थान के चंदेरी में सपने में यह स्थान देखा. सपने में राजा को आदेश हुए कि इस स्थान का उद्धार और पूजन करने पर वह इस राज्य का शासक बनेगा. इस पर महाराजा वीरचंद ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया. यहां से लगभग तीन किलोमीटर दूरी पर राजा ने कोट कहलूर किला बनाया जो बिलासपुर के राजाओं की प्रथम राजधानी मानी जाती है.

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