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सफाई कर्मी को 19000, क्लर्क को 6600, एम्स प्रबंधन के दोहरे मापदंडों से खफा हुए रामलाल

एम्स प्रबंधन के दोहरे मापदंडों से खफा हुए पुर्व मंत्री रामलाल ठाकुर. उन्होने कोठीपुरा स्थित एम्स में सरकार द्वारा निर्धारित 70 फीसदी की शर्त के तहत स्थानीय लोगों को रोजगार न दिये जाने पर कड़ा ऐतराज जताया है. उन्होने कहा कि इस बारे मे जल्द ही मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और उद्योग मंत्री को पत्र लिखकर वास्तुस्थिति से अवगत करवाया जाएगा.

ram lal Thakur
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Published : Dec 16, 2020, 4:13 PM IST

बिलासपुरः कांग्रेस कमेटी के सदस्य एवं श्रीनयनादेवी के विधायक रामलाल ठाकुर ने कोठीपुरा स्थित एम्स में सरकार द्वारा निर्धारित 70 फीसदी की शर्त के तहत स्थानीय लोगों को रोजगार न देने पर कड़ा ऐतराज जताया है.

राम लाल ठाकुर ने इस बात पर हैरानी जताई कि लगभग पंद्रह दिन पहले एम्स प्रबंधन से सूचना मांगी गई थी की यहां कितने स्थानीय और कितने बाहरी लोगों को रोजगार दिया गया है लेकिन अभी तक कोई भी सुचना नहीं दी गई है. उन्होंने चेताया कि यदि एम्स प्रबंधन की ओर से सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया जाता है, तो प्रजातांत्रिक तरीके से आगामी कदम उठाए जाएंगे. हालांकि वह एम्स में ज्यादा दखल नहीं देना चाहते. लेकिन बहुत बड़ा स्वास्थ्य संस्थान प्रदेश को मिला है तो स्थानीय लोगों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा.

कामगारों का हो रहा शोषण

रामलाल ठाकुर ने कहा कि वह दो साल से एम्स परिसर नहीं गए और कुछ दिन पहले राउंड किया था. दूसरी बार हाल ही में स्थिति का जायजा लेने के लिए पहुंचे, तो वहां पर कार्यरत कर्मियों ने उन्हें अवगत करवाया कि 275 रुपए दिहाड़ी के हिसाब से सैलरी दी जा रही है. क्लेरिकल स्टाफ को 66 सौ रुपए वेतन दिया जा रहा है और बाकियों को 35 सौ से चार हजार रुपए. ईपीएफ 12 फीसदी कटता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वेतन केंद्रीय नियमों के अनुसार है. जब इस संदर्भ में वहां पर कार्यरत डिप्टी डायरेक्टर से पूछा गया तो उन्होंने प्रदेश के वित्त सचिव की ओर से जारी पत्र का हवाला दिया कि पत्र के आधार पर प्रदेश सरकार के नियमानुसार वेतन दिया जा रहा है.

ठेकेदार भर रहे अपनी जेबें

उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि निर्माता कंपनी एनसीसी एक सफाई कर्मी को 19 हजार रुपए मासिक वेतन दे रही है, जबकि एम्स जैसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान द्वारा चार से छह हजार रुपए तक मासिक वेतन देकर काम लिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि 275 रुपए दिहाड़ी के हिसाब से सैलरी 8200 रुपए बनती है, जबकि कर्मियों को 6600 रुपए दिए जा रहे हैं, तो बाकी के करीब अढ़ाई हजार सीधे ठेकेदार की जेब में जा रहे हैं. यह कहां का न्याय है, इस बारे जल्द ही मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और उद्योग मंत्री को पत्र लिखकर वास्तुस्थिति से अवगत करवाया जाएगा.

ये भी पढ़ें: 11,388 अपात्र लोगों ने हड़प लिए किसान सम्मान निधि के 11.95 करोड़, अब वसूली करेंगे डीसी

बिलासपुरः कांग्रेस कमेटी के सदस्य एवं श्रीनयनादेवी के विधायक रामलाल ठाकुर ने कोठीपुरा स्थित एम्स में सरकार द्वारा निर्धारित 70 फीसदी की शर्त के तहत स्थानीय लोगों को रोजगार न देने पर कड़ा ऐतराज जताया है.

राम लाल ठाकुर ने इस बात पर हैरानी जताई कि लगभग पंद्रह दिन पहले एम्स प्रबंधन से सूचना मांगी गई थी की यहां कितने स्थानीय और कितने बाहरी लोगों को रोजगार दिया गया है लेकिन अभी तक कोई भी सुचना नहीं दी गई है. उन्होंने चेताया कि यदि एम्स प्रबंधन की ओर से सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया जाता है, तो प्रजातांत्रिक तरीके से आगामी कदम उठाए जाएंगे. हालांकि वह एम्स में ज्यादा दखल नहीं देना चाहते. लेकिन बहुत बड़ा स्वास्थ्य संस्थान प्रदेश को मिला है तो स्थानीय लोगों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा.

कामगारों का हो रहा शोषण

रामलाल ठाकुर ने कहा कि वह दो साल से एम्स परिसर नहीं गए और कुछ दिन पहले राउंड किया था. दूसरी बार हाल ही में स्थिति का जायजा लेने के लिए पहुंचे, तो वहां पर कार्यरत कर्मियों ने उन्हें अवगत करवाया कि 275 रुपए दिहाड़ी के हिसाब से सैलरी दी जा रही है. क्लेरिकल स्टाफ को 66 सौ रुपए वेतन दिया जा रहा है और बाकियों को 35 सौ से चार हजार रुपए. ईपीएफ 12 फीसदी कटता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वेतन केंद्रीय नियमों के अनुसार है. जब इस संदर्भ में वहां पर कार्यरत डिप्टी डायरेक्टर से पूछा गया तो उन्होंने प्रदेश के वित्त सचिव की ओर से जारी पत्र का हवाला दिया कि पत्र के आधार पर प्रदेश सरकार के नियमानुसार वेतन दिया जा रहा है.

ठेकेदार भर रहे अपनी जेबें

उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि निर्माता कंपनी एनसीसी एक सफाई कर्मी को 19 हजार रुपए मासिक वेतन दे रही है, जबकि एम्स जैसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान द्वारा चार से छह हजार रुपए तक मासिक वेतन देकर काम लिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि 275 रुपए दिहाड़ी के हिसाब से सैलरी 8200 रुपए बनती है, जबकि कर्मियों को 6600 रुपए दिए जा रहे हैं, तो बाकी के करीब अढ़ाई हजार सीधे ठेकेदार की जेब में जा रहे हैं. यह कहां का न्याय है, इस बारे जल्द ही मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और उद्योग मंत्री को पत्र लिखकर वास्तुस्थिति से अवगत करवाया जाएगा.

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