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कोलडैम की लहरों पर तैरते हुए नजर आएगी ट्राउट, केज कल्चर प्रोजेक्ट के तहत लगाए गए 24 केज - केज कल्चर प्रोजेक्ट

मत्स्य विभाग ने केज कल्चर प्रोजेक्ट के तहत कसोल के पास कोलडैम में ट्राउट उत्पादन के लिए केज लगाए हैं. ट्रायलबेस पर शुरू किए जा रहे इस केज कल्चर के सफल रहने के बाद हरनोड़ा से लेकर तत्तापानी तक बड़े स्तर पर ट्राउट उत्पादन किया जाएगा. विभाग के अनुसार जलाशय का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस तक आने पर ट्राउट मछली का बीज केज में डाला जाएगा.

Koldam
कोलडैम
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Published : Aug 10, 2020, 1:57 PM IST

बिलासपुर: हिमाचल के ऊपरी ठंडे इलाकों में पलने वाली रेनबो ट्राउट अब कोलडैम की लहरों पर भी तैरते हुए नजर आएगी. ट्राउट पालन के लिए मत्स्य विभाग ने केज कल्चर प्रोजेक्ट का सहारा लिया है. इसके तहत कोलडैम में कसोल के पास 24 केज लगा दिए गए हैं.

ट्रायलबेस पर शुरू किए जा रहे इस केज कल्चर के सफल रहने के बाद हरनोड़ा से लेकर तत्तापानी तक बड़े स्तर पर ट्राउट उत्पादन किया जाएगा. विभाग के अनुसार जलाशय का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस तक आने पर ट्राउट मछली का बीज केज में डाला जाएगा.

अभी तक ट्राउट मछली की प्रजाति प्रदेश के ऊपरी इलाकों में ही पल रही है. शिमला, कुल्लू, किन्नौर व चंबा इत्यादि जिलों में ट्राउट पालन किया जा रहा है. मत्स्य विभाग के फार्मों के अलावा निजी क्षेत्र में भी अब बड़े स्तर पर ट्राउट मछली का उत्पादन किया जा रहा है.

कोलडैम के अस्तित्व में आने के बाद विभाग ने भी अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं. इसके तहत मत्स्य सहकारी सभाओं के गठन के साथ ही हर साल कार्प प्रजाति की मछली बीज भी जलाशय में डाला जा रहा है.

अब विभाग ने कोलडैम में ट्राउट पालन को लेकर भी एक योजना बनाई है, जिलके तहत केज कल्चर प्रोजेक्ट के तहत ट्राउट का ट्रायल किया जाएगा. इसके लिए विभाग ने कोलडैम में कसोल के पास दो दर्जन केज लगा भी दिए हैं.

हालांकि, इस समय ट्राउट के लिए मौसम अनुकूल नहीं है, लेकिन तापमान के 18 डिग्री तक पहुंचने के बाद विभाग केज में ट्राउट बीज डालेगा. बता दें कि कोलडैम से लेकर तत्तापानी तक 30 किलोमीटर से ज्यादा एक लंबी झील बन चुकी है, जहां बड़े स्तर पर मछली पालन की संभावनाएं हैं.

इसके लिए भी विभाग अलग से योजनाओं पर काम कर रहा है. कार्प प्रजाति के अलावा विभाग ने कोलडैम में ट्राउट पालन को भी अनुकूल पाया है, जिसके तहत ट्रायलबेस पर केज में ट्राउट मछली तैयार करने के लिए कवायद शुरू की जा रही है.

मत्स्य निदेशक सतपाल मैहता ने बताया कि ट्रायल के सफल रहने पर कोलडैम में हरनोड़ा से लेकर तत्तापानी तक बड़े पैमाने पर ट्राउट मछली का उत्पादन किया जा सकेगा. इससे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे.

उन्होंने बताया कि सरकार मत्स्य पालन के जरिए बेरोजगार युवाओं के लिए घरद्वार के पास ही रोजगार के विकल्प खोल रही है. सतपाल मैहता ने बताया कि विभाग की ऐसी कई योजनाएं हैं जिनके जरिए बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवाया जाएगा.

कोलडैम में अब ट्रायलबेस पर ट्राउट उत्पादन शुरू किया जा रहा है. केज कल्चर प्रोजेक्ट के तहत यह ट्रायल किया जाएगा और सफल रहने पर कोलडैम में हरनोड़ा से लेकर तत्तापानी तक बड़े स्तर पर ट्राउट उत्पादन की योजना है. अभी कसोल के पास 24 केज लगाए गए हैं.

भाखड़ा डैम में केज में पल रही पंगेशियस प्रजाति की मछली

भाखड़ा डैम में भी विभाग ने केज कल्चर प्रोजेक्ट चलाया है. इसके तहत पंगेशियस प्रजाति की मछली का बीज तैयार किया जा रहा है. मछली का आकार 70 एमएम तक होने के बाद मछली को डैम में डाल दिया जाता है.

भाखड़ा डैम में विभाग ने 24 केज लगाए हैं, जहां छोटी-छोटी मछलियों को रखा जाता है और आकार बड़ा होने के बाद जलाशय में डाल दिया जाता है. विभाग के अनुसार बड़े आकार की मछली जलाशय में डालने से उत्पादन में बढ़ोतरी होगी.

इस बार राज्य के जलाशयों में डाला जाएगा 65 लाख बीज

विभाग के निदेशक सतपाल मैहता ने बताया कि इस बार 65 लाख मछली का बीज राज्य के छोटे बड़े सभी जलाशयों में डाला जाएगा. गोबिंदसागर और चमेरा डैम में सिल्बर कार्प और पौंग डैम रोहू, मृगल व कतला प्रजाति की मछली का बीज डाला जाएगा. सभी जलाशयों में 70 से लेकर 100 एमएम साइज का बीज डाला जाएगा.

बिलासपुर: हिमाचल के ऊपरी ठंडे इलाकों में पलने वाली रेनबो ट्राउट अब कोलडैम की लहरों पर भी तैरते हुए नजर आएगी. ट्राउट पालन के लिए मत्स्य विभाग ने केज कल्चर प्रोजेक्ट का सहारा लिया है. इसके तहत कोलडैम में कसोल के पास 24 केज लगा दिए गए हैं.

ट्रायलबेस पर शुरू किए जा रहे इस केज कल्चर के सफल रहने के बाद हरनोड़ा से लेकर तत्तापानी तक बड़े स्तर पर ट्राउट उत्पादन किया जाएगा. विभाग के अनुसार जलाशय का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस तक आने पर ट्राउट मछली का बीज केज में डाला जाएगा.

अभी तक ट्राउट मछली की प्रजाति प्रदेश के ऊपरी इलाकों में ही पल रही है. शिमला, कुल्लू, किन्नौर व चंबा इत्यादि जिलों में ट्राउट पालन किया जा रहा है. मत्स्य विभाग के फार्मों के अलावा निजी क्षेत्र में भी अब बड़े स्तर पर ट्राउट मछली का उत्पादन किया जा रहा है.

कोलडैम के अस्तित्व में आने के बाद विभाग ने भी अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं. इसके तहत मत्स्य सहकारी सभाओं के गठन के साथ ही हर साल कार्प प्रजाति की मछली बीज भी जलाशय में डाला जा रहा है.

अब विभाग ने कोलडैम में ट्राउट पालन को लेकर भी एक योजना बनाई है, जिलके तहत केज कल्चर प्रोजेक्ट के तहत ट्राउट का ट्रायल किया जाएगा. इसके लिए विभाग ने कोलडैम में कसोल के पास दो दर्जन केज लगा भी दिए हैं.

हालांकि, इस समय ट्राउट के लिए मौसम अनुकूल नहीं है, लेकिन तापमान के 18 डिग्री तक पहुंचने के बाद विभाग केज में ट्राउट बीज डालेगा. बता दें कि कोलडैम से लेकर तत्तापानी तक 30 किलोमीटर से ज्यादा एक लंबी झील बन चुकी है, जहां बड़े स्तर पर मछली पालन की संभावनाएं हैं.

इसके लिए भी विभाग अलग से योजनाओं पर काम कर रहा है. कार्प प्रजाति के अलावा विभाग ने कोलडैम में ट्राउट पालन को भी अनुकूल पाया है, जिसके तहत ट्रायलबेस पर केज में ट्राउट मछली तैयार करने के लिए कवायद शुरू की जा रही है.

मत्स्य निदेशक सतपाल मैहता ने बताया कि ट्रायल के सफल रहने पर कोलडैम में हरनोड़ा से लेकर तत्तापानी तक बड़े पैमाने पर ट्राउट मछली का उत्पादन किया जा सकेगा. इससे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे.

उन्होंने बताया कि सरकार मत्स्य पालन के जरिए बेरोजगार युवाओं के लिए घरद्वार के पास ही रोजगार के विकल्प खोल रही है. सतपाल मैहता ने बताया कि विभाग की ऐसी कई योजनाएं हैं जिनके जरिए बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवाया जाएगा.

कोलडैम में अब ट्रायलबेस पर ट्राउट उत्पादन शुरू किया जा रहा है. केज कल्चर प्रोजेक्ट के तहत यह ट्रायल किया जाएगा और सफल रहने पर कोलडैम में हरनोड़ा से लेकर तत्तापानी तक बड़े स्तर पर ट्राउट उत्पादन की योजना है. अभी कसोल के पास 24 केज लगाए गए हैं.

भाखड़ा डैम में केज में पल रही पंगेशियस प्रजाति की मछली

भाखड़ा डैम में भी विभाग ने केज कल्चर प्रोजेक्ट चलाया है. इसके तहत पंगेशियस प्रजाति की मछली का बीज तैयार किया जा रहा है. मछली का आकार 70 एमएम तक होने के बाद मछली को डैम में डाल दिया जाता है.

भाखड़ा डैम में विभाग ने 24 केज लगाए हैं, जहां छोटी-छोटी मछलियों को रखा जाता है और आकार बड़ा होने के बाद जलाशय में डाल दिया जाता है. विभाग के अनुसार बड़े आकार की मछली जलाशय में डालने से उत्पादन में बढ़ोतरी होगी.

इस बार राज्य के जलाशयों में डाला जाएगा 65 लाख बीज

विभाग के निदेशक सतपाल मैहता ने बताया कि इस बार 65 लाख मछली का बीज राज्य के छोटे बड़े सभी जलाशयों में डाला जाएगा. गोबिंदसागर और चमेरा डैम में सिल्बर कार्प और पौंग डैम रोहू, मृगल व कतला प्रजाति की मछली का बीज डाला जाएगा. सभी जलाशयों में 70 से लेकर 100 एमएम साइज का बीज डाला जाएगा.

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