बिलासपुर: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव एवं घुमारवीं के पूर्व विधायक राजेश धर्माणी ने कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के प्रति केंद्र सरकार के रवैये की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि किसान को सम्मान निधि के नाम से मासिक 500 रुपए का झुनझुना थमा देने से उसका भला नहीं होने वाला है.
राजेश धर्माणी ने कहा कि किसान तथ्यों के आधार पर कृषि बिलों का विरोध कर रहे हैं, लेकिन अडाणी और अंबानी के इशारे पर यह कानून बनाने वाली केंद्र सरकार ने अब कानों में अंगुलियां डाल ली हैं. राजेश धर्माणी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास अंबानी के बेटे की शादी में शामिल होने के लिए मुंबई जाने का समय है, लेकिन उन्हें अन्नदाताओं से बातचीत करने की फुर्सत नहीं है.
धर्माणी ने कहा कि किसानों से बात करना तो दूर, सर्दी के इस मौसम में उन पर पानी की बौछारें की रही हैं. धर्माणी ने कहा कि देश भर के किसान नए कृषि कानूनों का गहराई से मंथन करने के बाद ही उनका विरोध कर रहे हैं. नए आवश्यक वस्तु कानून में अनाज, दलहन, आलू, प्याज, तिलहन व तेल आदि की जमाखोरी पर लगाया गया प्रतिबंध हटा दिया गया है. इसी तरह मंडी की अनिवार्यता खत्म करने का भी किसान विरोध कर रहे हैं.
धर्माणी ने कहा कि सरकार तर्क दे रही है कि फसलों की खरीद फरोख्त पूरे देश में कहीं भी की जा सकेगी और वह मंडियों में होने वाली सरकारी खरीद में न्यूनतम समर्थन मूल्य देना जारी रखेगी. यदि सरकार की मंशा साफ होती तो वह निजी क्षेत्र में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य अनिवार्य करती, लेकिन चहेते धन्नासेठों को लाभ पहुंचाने के लिए उसने ऐसा नहीं किया.
धर्माणी ने कहा कि तीसरे कानून में सरकार ने कांट्रेक्ट फॉर्मिंग को वैधता प्रदान कर दी है. इससे संबंधित किसी भी तरह के विवाद को लेकर किसान पहले थाने या कोर्ट में कहीं भी शिकायत कर सकते थे, लेकिन नए कानून में एसडीएम, कलेक्टर और उसके बाद कोर्ट में शिकायत की जा सकेगी. ऐसे में बड़ी-बड़ी कंपनियों के आगे किसानों को देर-सवेर हाथ खड़े करने पड़ सकते हैं.
धर्माणी ने कहा कि देश भर के किसान नए कृषि कानूनों का एक सुर में विरोध कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी बात सुनने को तैयार ही नहीं है. सरकार अडाणी और अंबानी जैसे पूंजीपतियों की जेब में है और कृषि कानून भी उन्हीं के इशारे पर बनाए गए हैं, लेकिन ऐसा अधिक समय तक नहीं चलेगा. देर-सवेर अन्नदाता के आगे उसे झुकना ही पड़ेगा.