बिलासपुर: 107 वर्षों से बिलासपुर में हर साल बड़े ही उत्साह से रामलीला का मंचन होता है. खास बात ये है कि इस रामलीला के मंचन में हिंदू, मुस्लिम, सिख, और ईसाई धर्म के लोग शामिल होते हैं. दर्शक दीर्घा में भी एक चौथाई मुस्लिम बिरादरी के लोग होते हैं. रामलीला का दृश्य खत्म होने पर सभी मिलकर जय श्रीराम के नारे लगाते हैं.
रामलीला के इस मंच को बिलासपुर के अमजद हुसैन जिनेश शाह के नाम से भी जाना जाता रहा है. अमजद हुसैन काफी समय तक रामलीला से जुड़े रहे. बिलासपुर के मोहम्मद यूनुस 2 वर्षों तक रामलीला में भरत का किरदार निभा चुके हैं. महबूब खान ने वेदवती, केकेई, नइम ने महोदर, अहिरावण, कुबेर और अंगद का किरदार, हुसैन अली ने कुंभकरण, साजिद खान ने मेघनाद और यम, इमरान ताड़का का किरदार रामलीला के मंच पर कर चुके हैं.
उस्मान शेख इस रामलीला कमेटी की शान हैं. ये हर छोटे किरदार में फिट बैठे जाते हैं. उस्मान श्रवण की माता ज्ञानवती, मंत्रा, शबरी, सरूपनखा और सुलोचना के किरदार निभा चुके हैं. वहीं, देवगन शब्बीर कुरैशी सहित अन्य कई ऐसे नाम हैं जिन्हें आपसी प्रेम और भाईचारे की मिसाल पेश करने के लिए जाना जाता है. सिख समुदाय से सुरजीत सिंह को रावण और तेजपाल नत्था को राम के किरदार के लिए आज भी याद किया जाता है. पर्दे पर काम करने वालों के अलावा शकील मोहम्मद के साथ अन्य मुस्लिम सदस्य एक महीना पहले री रामलीला की तैयारियों में जुट जाते हैं.
रामलीला की लिखित स्क्रिप्ट में पूर्णतया शुद्ध हिंदी का प्रयोग होता है. सादृश्य में विभाजित इस कला संग्रह में स्वयं लिखित 20 भजन हैं जो अत्यंत धार्मिक और दर्शकों को प्रभावित करने वाले हैं. राम नाटक समिति मंच के सज्जा प्रभारी संजय कंडेरा ने बताया कि इस बार रामलीला का मंचन 29 अक्टूबर से शुरू होगा. रामलीला में सभी धर्मों के लोग एक साथ मिलकर काम करते हैं.