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अनदेखी का शिकार बिलासपुर! स्पोर्ट्स हब होने के बावजूद पर्यटन की दृष्टि से आज भी पिछड़ा

स्पोर्ट्स हब के नाम से पूरे प्रदेश में प्रचलित बिलासपुर जिला पर्यटन की दष्टि से विकसित नहीं हो पाया है. हालांकि यहां पर पयर्टन को लेकर अपार संभावनाएं हैं. पर्यटन संबंधित सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं. बावजूद इसके सरकार की ओर से कदम नहीं उठाया गया.

डिजाइन फोटो
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Published : Sep 27, 2020, 10:41 AM IST

बिलासपुर: हर साल 27 सितंबर को पूरी दुनिया में विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है. इसकी शुरुआत यूनाइटेड नेशंस ने की थी. इसके महासचिव हर साल जनता को इस दिन खास संदेश भेजते हैं. ये विकासशील देशों के लिए आय का मुख्य स्त्रोत है. दुनिया भर में संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में पर्यटन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वहीं, बात हिमाचल की करें तो प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज देवभूमि में धार्मिक व साहसिक पर्यटन की भरपूर संभावना हैं.

प्रदेश में हर साल करोड़ों की संख्या में सैलानी घूमने आते हैं. इसमें विदेशी सैलानियों के साथ ही बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक शामिल रहते हैं. यही वजह भी है कि राज्य सरकार की ओर से हर वर्ष प्रदेश में दो करोड़ सैलानियों को लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन बड़ी बात यह है इस बार कोविड-19 के चलते सबसे बड़ी मार पर्यटन कारोबार पर पड़ी है.

बात अगर जिला बिलासपुर की करें तो यहां सरकार चाहे भाजपा की हो या फिर कांग्रेस की बिलासपुर जिला हमेशा अनदेखी का शिकार हुआ है. स्पोर्ट्स हब के नाम से पूरे प्रदेश में प्रचलित बिलासपुर जिला पर्यटन की दष्टि से विकसित नहीं हो पाया है. हालांकि यहां पर पयर्टन को लेकर अपार संभावनाएं हैं.

पर्यटन संबंधित सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं. बावजूद इसके सरकार की ओर से कदम नहीं उठाया गया. राजनीतिक पार्टियों के नेता एवं सत्तासीन सरकारों के नुमाइंदे बिलासपुर को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने को लेकर कई मंचों से घोषणाएं कर चुके हैं, लेकिन घोषणाओं को आज तक अमलीजामा नहीं पहनाया गया.

बिलासपुर की गोबिंद सागर झील पर्यटन की दृष्टि से एक ऐसा जरिया है जिसके माध्यम से पर्यटन को आकर्षित भी किया जा चुका है. झील में जलस्तर बढ़ने पर यहां वाटर स्पो‌र्ट्स की गतिविधियां शुरू हो जाती हैं. कई वाटर स्पो‌र्ट्स से जुड़े खेल संगठन यहां पर ऐसी गतिविधियों का आयोजन करवाते हैं.

हालांकि, लुहणू मैदान में जिला जल क्रीड़ा केंद्र भी स्थापित किया गया है, लेकिन सही व्यवस्था न होने पर यह केंद्र एक मैरिज पैलेस बनकर रह गया है. जल क्रीड़ा केंद्र मात्र सहयोगी के रूप में ही खेल संगठनों के साथ अपनी भागीदारी निभाने का कार्य करता है.

वहीं, पैराग्लाइडिंग को लेकर भी बिलासपुर में गतिविधियां होती हैं. स्थानीय पायलटों के साथ-साथ अन्य राज्यों व देशों के नामी पायलट यहां पैराग्लाइडिंग करने व अभ्यास के लिए पहुंचते हैं, लेकिन व्यवस्था न होने के चलते उन्हें निराश होकर लौटना पड़ता है.

बिलासपुर के साथ लगती बंदला धार पर पैराग्लाइडिंग साइट को विकसित करने को लेकर कई बार मांग उठाई जा चुकी है, लेकिन आज तक मात्र आश्वासन ही मिले. जबकि, बैजनाथ स्थित बीड के बाद यह प्रदेश का दूसरा ऐसा स्थान है जो पैराग्लाइडिंग के लिए उपयुक्त है.

वहीं, बहादुरपुरधार भी पर्यटन की दृष्टि से विकसित हो सकती है. यह जिला बिलासपुर का एक मात्र ऐसा स्थान है, जहां पर बर्फ गिरती है. यहां की खूबसूरती वादियां राजधानी शिमला की वादियों के मुकाबले अधिक आकर्षक है. साथ ही प्राचीन मंदिर भी यहां अलग पहचान रखते हैं. लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि पर्यटन की दृष्टि से अहम स्थान रखने वाले बिलासपुर को आज तक विकसित करने को लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए.

झील में होती है बोटिंग

गोबिंद सागर झील में जैसे ही जलस्तर बढ़ता है तो यहां मोटर बोट चलना शुरू हो जाते हैं. इससे झील के दोनों ओर के लोगों को इस पार से उस पार जाने के लिए सुविधा मिलती है. साथ ही स्थानीय लोगों सहित दूसरे जिलों के लोग मोटर बोट के माध्यम से झील में घूमते हैं. मनोरंजन के लिए यहां लोग आते हैं और बोटिंग का लुत्फ उठाते हैं, लेकिन, जलस्तर घटते ही यह सुविधा बंद हो जाती है.

कागजों तक सीमित रही कृत्रिम झील

हालांकि, कुछ समय पहले गोबिंद सागर झील के साथ कृत्रिम झील बनाने की योजना तैयार की गई थी, लेकिन यह योजना कागजों तक ही सीमित रह गई. इसे लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया.

डल झील की तर्ज पर यहां पर तैरने थे शिकारे सहित वाटर रेस्तरां

प्राप्त जानकारी के अनुसार बिलासपुर की गोबिंदसागर झील कश्मीर की डल झील की तर्ज पर विकसित करने का प्लान पर्यटन विभाग ने बनाया था. उनका कहना था कि यहां की गोबिंदसागर झील में तैरते हुए रेस्तरां सहित शिकारे नजर आएंगे, लेकिन यह योजना भी सिर्फ कागजों मे सिमट कर रह गई.

बिलासपुर के ऐतिहासिक मंदिर

बिलासपुर में कई ऐसे ऐतिहासिक मंदिर हैं, जिनका इतिहास काफी रोचक है. गोबिंद सागर झील के किनारे ब्यास ऋषि की गुफा व बाबा नाहर सिंह का मंदिर है, झील के उस पार मां बड़ोली देवी का मंदिर व रूकमणी कुंड है.

पहाड़ों व झील के बीच क्रिकेट मैदान

बिलासपुर में गोबिंद सागर झील के किनारे खूबसूरत क्रिकेट मैदान है. यहां राज्य व नेशनल स्तर की प्रतियोगिताएं हो चुकी हैं. इंडिया टीम के कई नामी क्रिकेटर इस मैदान में खेल चुके हैं. यह मैदान बंदला व बड़ोली देवीधार के बीच झील के किनारे स्थित है. इसकी खूबसूरती की प्रशंसा कई क्रिकेट व कोच मंचों के माध्यम से कर चुके हैं.

बिलासपुर: हर साल 27 सितंबर को पूरी दुनिया में विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है. इसकी शुरुआत यूनाइटेड नेशंस ने की थी. इसके महासचिव हर साल जनता को इस दिन खास संदेश भेजते हैं. ये विकासशील देशों के लिए आय का मुख्य स्त्रोत है. दुनिया भर में संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में पर्यटन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वहीं, बात हिमाचल की करें तो प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज देवभूमि में धार्मिक व साहसिक पर्यटन की भरपूर संभावना हैं.

प्रदेश में हर साल करोड़ों की संख्या में सैलानी घूमने आते हैं. इसमें विदेशी सैलानियों के साथ ही बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक शामिल रहते हैं. यही वजह भी है कि राज्य सरकार की ओर से हर वर्ष प्रदेश में दो करोड़ सैलानियों को लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन बड़ी बात यह है इस बार कोविड-19 के चलते सबसे बड़ी मार पर्यटन कारोबार पर पड़ी है.

बात अगर जिला बिलासपुर की करें तो यहां सरकार चाहे भाजपा की हो या फिर कांग्रेस की बिलासपुर जिला हमेशा अनदेखी का शिकार हुआ है. स्पोर्ट्स हब के नाम से पूरे प्रदेश में प्रचलित बिलासपुर जिला पर्यटन की दष्टि से विकसित नहीं हो पाया है. हालांकि यहां पर पयर्टन को लेकर अपार संभावनाएं हैं.

पर्यटन संबंधित सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं. बावजूद इसके सरकार की ओर से कदम नहीं उठाया गया. राजनीतिक पार्टियों के नेता एवं सत्तासीन सरकारों के नुमाइंदे बिलासपुर को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने को लेकर कई मंचों से घोषणाएं कर चुके हैं, लेकिन घोषणाओं को आज तक अमलीजामा नहीं पहनाया गया.

बिलासपुर की गोबिंद सागर झील पर्यटन की दृष्टि से एक ऐसा जरिया है जिसके माध्यम से पर्यटन को आकर्षित भी किया जा चुका है. झील में जलस्तर बढ़ने पर यहां वाटर स्पो‌र्ट्स की गतिविधियां शुरू हो जाती हैं. कई वाटर स्पो‌र्ट्स से जुड़े खेल संगठन यहां पर ऐसी गतिविधियों का आयोजन करवाते हैं.

हालांकि, लुहणू मैदान में जिला जल क्रीड़ा केंद्र भी स्थापित किया गया है, लेकिन सही व्यवस्था न होने पर यह केंद्र एक मैरिज पैलेस बनकर रह गया है. जल क्रीड़ा केंद्र मात्र सहयोगी के रूप में ही खेल संगठनों के साथ अपनी भागीदारी निभाने का कार्य करता है.

वहीं, पैराग्लाइडिंग को लेकर भी बिलासपुर में गतिविधियां होती हैं. स्थानीय पायलटों के साथ-साथ अन्य राज्यों व देशों के नामी पायलट यहां पैराग्लाइडिंग करने व अभ्यास के लिए पहुंचते हैं, लेकिन व्यवस्था न होने के चलते उन्हें निराश होकर लौटना पड़ता है.

बिलासपुर के साथ लगती बंदला धार पर पैराग्लाइडिंग साइट को विकसित करने को लेकर कई बार मांग उठाई जा चुकी है, लेकिन आज तक मात्र आश्वासन ही मिले. जबकि, बैजनाथ स्थित बीड के बाद यह प्रदेश का दूसरा ऐसा स्थान है जो पैराग्लाइडिंग के लिए उपयुक्त है.

वहीं, बहादुरपुरधार भी पर्यटन की दृष्टि से विकसित हो सकती है. यह जिला बिलासपुर का एक मात्र ऐसा स्थान है, जहां पर बर्फ गिरती है. यहां की खूबसूरती वादियां राजधानी शिमला की वादियों के मुकाबले अधिक आकर्षक है. साथ ही प्राचीन मंदिर भी यहां अलग पहचान रखते हैं. लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि पर्यटन की दृष्टि से अहम स्थान रखने वाले बिलासपुर को आज तक विकसित करने को लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए.

झील में होती है बोटिंग

गोबिंद सागर झील में जैसे ही जलस्तर बढ़ता है तो यहां मोटर बोट चलना शुरू हो जाते हैं. इससे झील के दोनों ओर के लोगों को इस पार से उस पार जाने के लिए सुविधा मिलती है. साथ ही स्थानीय लोगों सहित दूसरे जिलों के लोग मोटर बोट के माध्यम से झील में घूमते हैं. मनोरंजन के लिए यहां लोग आते हैं और बोटिंग का लुत्फ उठाते हैं, लेकिन, जलस्तर घटते ही यह सुविधा बंद हो जाती है.

कागजों तक सीमित रही कृत्रिम झील

हालांकि, कुछ समय पहले गोबिंद सागर झील के साथ कृत्रिम झील बनाने की योजना तैयार की गई थी, लेकिन यह योजना कागजों तक ही सीमित रह गई. इसे लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया.

डल झील की तर्ज पर यहां पर तैरने थे शिकारे सहित वाटर रेस्तरां

प्राप्त जानकारी के अनुसार बिलासपुर की गोबिंदसागर झील कश्मीर की डल झील की तर्ज पर विकसित करने का प्लान पर्यटन विभाग ने बनाया था. उनका कहना था कि यहां की गोबिंदसागर झील में तैरते हुए रेस्तरां सहित शिकारे नजर आएंगे, लेकिन यह योजना भी सिर्फ कागजों मे सिमट कर रह गई.

बिलासपुर के ऐतिहासिक मंदिर

बिलासपुर में कई ऐसे ऐतिहासिक मंदिर हैं, जिनका इतिहास काफी रोचक है. गोबिंद सागर झील के किनारे ब्यास ऋषि की गुफा व बाबा नाहर सिंह का मंदिर है, झील के उस पार मां बड़ोली देवी का मंदिर व रूकमणी कुंड है.

पहाड़ों व झील के बीच क्रिकेट मैदान

बिलासपुर में गोबिंद सागर झील के किनारे खूबसूरत क्रिकेट मैदान है. यहां राज्य व नेशनल स्तर की प्रतियोगिताएं हो चुकी हैं. इंडिया टीम के कई नामी क्रिकेटर इस मैदान में खेल चुके हैं. यह मैदान बंदला व बड़ोली देवीधार के बीच झील के किनारे स्थित है. इसकी खूबसूरती की प्रशंसा कई क्रिकेट व कोच मंचों के माध्यम से कर चुके हैं.

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