चिंतपूर्णीः तीन वर्ष पहले जब कोई व्यक्ति आम या जामुन के पेड़ की कुछ टहनियां भी काट लेता था तो वन विभाग उसके खिलाफ मामला दर्ज करवा देता था. इतना ही नहीं फल देने वाले जामुन व आम के पेड़ों का कटान पिछले दो दशक से ज्यादा के समय से बंद था, लेकिन अब दशकों पुराने इन पेड़ों पर लालच का साया मंडरा रहा है और सैंकड़ों की संख्या में आंशिक फायदे के लिए इन फलदार पेड़ों की बलि दी जा रही है.
इन पेड़ों को काटकर हर रोज सैंकड़ों टन लकड़ी बाहरी राज्यों में भेजी जा रही है, लेकिन कोई पूछने वाला तक नहीं है. कारण यह है कि इन पेड़ों के कटान पर अब पाबंदी नहीं रही है. ऐसे में चिंतपूर्णी का धार क्षेत्र जिसमें बहुतायत में आम और जामुन के पेड़ बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. बता दें कि कई वृक्ष तो सैकड़ों साल पुराने हैं, उन्हें भी किसान अपने आर्थिक फायदे के लिए ठेकेदारों को बेच रहे हैं और निरंतर तीन वर्ष से ज्यादा के समय से इन पेड़ों का कटान जारी है.
दरअसल आम व जामुन सहित पेड़ों की कई अन्य प्रजातियों पर सरकार ने 20 अप्रैल, 2017 के कटान पर लगी रोक हटा ली थी. उसके बाद से किसानों ने अपनी जमीन पर आम व जामुन के पेड़ों का कटान करवाना शुरू कर दिया. वन विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले तीन वर्षों में अकेले भरवाईं रेंज में ही 746 जामुन व आम के पेड़ों को काटने की इजाजत किसानों ने विभाग से ली और यह सिलसिला इस वर्ष भी निरतंर जारी है.
इन पेड़ों को काटने से क्षेत्र में पर्यावरण संतुलन को खतरा पैदा हो गया है. लंबे-चौड़े आम व जामुन के प्राचीन वृक्षों पर पक्षियों की प्रजातियां प्रवास करती हैं, लेकिन जब ये पेड़ कट जाएंगे तो पक्षियों को कहीं भी ठिकाना नहीं मिलेगा. इतना नहीं बरसात के तीन महीनों में वन्य जीवों की प्रजातियां जामुन व आम के फलों पर निर्भर थी. उनका भोजन भी इसी वजह से छिन रहा है.
वहीं, स्थानीय निवासियों का कहना है कि सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए. वैसे भी लंबे समय से इन प्रजाति के पेड़ों का कटान चल रहा है और अगर ऐसे ही हाल रहा तो क्षेत्र में प्राचीन पेड़ न के बराबर बचेंगे.
वहीं, भरवाई रेंज के वन अधिकारी प्यार सिंह ने बताया कि आम व जामुन के पेड़ सहित तुणी, जापानी शहतूत, पॉपुलर, कचनार सागवान, अर्जुन और सफेदा आदि प्रजातियों को कटान के लिए सरकार ने वर्ष 2017 में ओपन किया था. अब कोई भी किसान अपनी जमीन से यह पेड़ कटवा सकता है.
वर्ष | आम | जामुन |
2017 | 144 | 0 |
2018 | 347 | 12 |
2019 | 181 | 62 |
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