सोलन: देश में लगातार किसान प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ते जा रहे हैं. सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती से प्रभावित होकर अब हिमाचल के किसान भी प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ते जा रहे (natural farming of capsicum in Solan) हैं. हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के रहने वाले जौनाजी पंचायत के प्रगतिशील किसान शैलेंद्र शर्मा बीते 20 से 22 सालों से खेती कर रहे हैं. लेकिन पिछले 04 सालों से शैलेंद्र शर्मा 'सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती' से जुड़कर लाखों की आय कमा रहे हैं. शैलेंद्र शर्मा द्वारा पॉलीहाउस में रेड और येलो कैप्सिकम की खेती की जा रही है.
पीएम मोदी हुए शैलेंद्र के खेतों में उगी शिमला मिर्च के कायल: वहीं शैलेंद्र शर्मा के खेतों में उगी शिमला मिर्च की तारीफ खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कर चुके हैं. मंडी में आयोजित कार्यक्रम में पीएम मोदी ने प्रदर्शनी के दौरान शैलेंद्र शर्मा की शिमला मिर्च को हाथों में लेकर जहां उसकी तारीफ की, वहीं किसान शैलेन्द्र शर्मा व उसके खेती के बारे में जानकारी भी हासिल की.
जहरमुक्त खेती कर स्वास्थ्य में भी सुधार: शैलेंद्र शर्मा ने बताया कि जबतक उन्होंने रासायनिक खेती की तब तक उन्हें कई प्रकार की बीमारियों से जूझना पड़ा. उन्हें एलर्जी की समस्या हो चुकी (farming of capsicum in Solan) थी. वहीं, खेती करते हुए स्प्रे का इस्तेमाल करने पर वे अपने बच्चों और परिवार के नजदीक भी नहीं जा पाते थे.
जहरमुक्त खेती कर शैलेन्द्र सालाना कमा रहे करीब 10 लाख: उन्होंने बताया कि पिछले चार सालों में प्राकृतिक खेती अपनाकर जहां वे जहरमुक्त खेती कर रहे हैं. वहीं उनकी आय में भी काफी बढ़ोतरी हो रही (RED AND YELLOW CAPSICUM FARMING IN SOLAN) हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने प्राकृतिक खेती करने से वे सालाना 9 से 10 लाख रुपए कमा रहे हैं. ऐसे में अब उनका सिर्फ 15 से 16 हजार रुपए का खर्च आता है. उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती करने के लिए उन्हें सिर्फ गुड़, बेसन और नीम के पत्तों का खर्च आता है.
![farming of capsicum in Solan](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14954216_farmer.jpg)
पंचायत के लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन रहे शैलेंद्र: शैलेंद्र ने बताया कि हिमाचल में काफी किसान प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं. वहीं उनकी जौनाजी पंचायत में भी लोग उनसे जानकारी लेकर इस खेती को करने के बारे में इसे करने की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन यहां सिर्फ किसान इस खेती के बारे में सोच रहे हैं, लेकिन खेती करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी शिमला मिर्च हिमाचल में कम बिकती है इनकी सिर्फ दिल्ली व चंडीगढ़ के बड़े होटलों में डिमांड है.
![farming of capsicum in Solan](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14954216_farming.jpg)
शैलेंद्र शर्मा जिला के प्रगतिशील किसान: वहीं, हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कार्यकारी निदेशक प्रों. राजेश्वर चंदेल ने बताया कि प्राकृतिक खेती की तरफ लगातार प्रदेश के किसानों के साथ जिला सोलन के किसान बागवानों का भी रुझान बढ़ता जा रहा है. उन्होंने बताया कि जिले में 9120 किसान प्राकृतिक खेती अपना रहे (Shailendra Sharma of solan) हैं. वहीं जिले के शैलेन्द्र शर्मा भी पिछ्ले 04 सालों से इस खेती को अपना कर अपनी आय को दोगुना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनसे अन्य किसान भी प्रेरणा लेकर खेती कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि शैलेन्द्र की खेती और उनकी उपज की तारीफ पीएम मोदी भी कर चुके हैं.
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![farming of capsicum in Solan](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14954216_capcisum.jpg)
प्राकृतिक खेती के लिए 1500 करोड़ रुपए का प्रावधान: केंद्र सरकार ने देशभर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 1500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है. इसी के चलते अब हिमाचल सरकार ने हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती के दायरे को बढ़ाने के लिए सभी पंचायतों में एक मॉडल खड़ा करने का लक्ष्य रखा है. इतना ही नहीं मुख्यमंत्री जयराम की ओर से पेश किए गए बजट में हिमाचल प्रदेश में 100 गांवों को प्राकृतिक खेती गांव के रूप में विकसित करने की भी घोषणा की गई है. बजट में पहले से प्राकृतिक खेती कर रहे 50,000 किसान-बागवानों के लिए निशुल्क प्रमाणीकरण की व्यवस्था की जाएगी. इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जाएगा जिसमें किसानों का पूरा ब्योरा रखा जाएगा.
![farming of capsicum in Solan](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/14954216_farmer.jpg)
प्रदेश में 1,71,063 किसान अपना रहे जहरमुक्त खेती: बता दें कि वर्तमान में प्रदेश की 3615 पंचायतों में 3590 में इस खेती विधि की पहुंच हो चुकी है और इससे अभी तक 1,71,063 किसान बागवान अपनी भूमि में कर रहे (capsicum in Solan Himachal Pradesh) हैं. प्रदेश में अभी तक 9388 हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती के तहत लाया जा चुका है.