शिमला : कोरोना के चलते जहां प्रदेश भर में मेले और त्योहारों पर पूर्ण प्रतिबंध था वहीं सरकार ने कोरोना के मामले कम होने पर कुछ ढील भी दी और यही वजह रही की इस साल कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा भी मनाया गया, लेकिन दिवाली के दूसरे दिन धामी में मनाया जाने वाला पत्थर मेला इस बार भी नहीं मनाया जाएगा. मात्र परंपराओं का निर्वहन कर रस्म अदायगी की जाएगी, लेकिन एक दूसरे पर पत्थर नहीं बरसाए जाएंगे.
लगभग 150 साल में दूसरी बार ऐसा हो रहा है कि इस वर्ष 5 नवंबर को धामी में पत्थर मेले का आयोजन नहीं किया जाएगा. शिमला शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर धामी के हलोग में पत्थरों का एक ऐसा मेला होता है, जिसे देखकर हर कोई दंग रह जाता है. वर्षों से ये परंपरा दीपावाली के दूसरे दिन होती है. जबकि, काेराेना संक्रमण के चलते आयाेजक कमेटी ने निर्णय लिया है कि इस बार भी महज कारा (रस्म अदायगी) ही निभाई जाएगी. जिसमें राज वंशज भद्रकाली मां काे अपना रक्त चढ़ाएंगे. इस बार एक दूसरे पर पत्थर नहीं बरसाए जाएंगे हालांकि, पूजा पाठ पहले की तरह ही हाेगा.
इस बार रस्म अदायगी में राज परिवार सहित कटेड़ू, जमोगी, धगोई, जठोती, तुंसु व खुण्ड परिवार के लोग ही शामिल हाे पाएंगे. इसके अलावा किसी काे भी आने की अनुमति नहीं हाेगी. बता दें कि पहले यहां नर बलि दी जाती थी. कहा जाता है कि धामी की रानी पति की मृत्यु पर यहां सती हो गई थी. रानी ने इस दाैरान कहा था कि नरबलि बंद हाेनी चाहिए, इसके बाद से नरबलि को बंद कर दिया और फिर यहां पर पशु बलि शुरू की गई.
कई दशक पहले इसे भी बंद कर दिया इसके बाद पत्थर का मेला शुरू किया गया. मेले में पत्थर से लगी चोट के बाद जब किसी व्यक्ति का खून निकलता है तो उसका तिलक मंदिर में लगाया जाता है. हर साल दिवाली से अगले दिन ही इस मेले का आयोजन धामी के हलोग में किया जाता है. जबकि, इस बार काेराेना के चलते पत्थराें का खेल भी बंद कर दिया गया है और मेले का आयोजन भी नहीं होगा.
धामी रियासत के टीका जगदीप सिंह का कहना है कि लगभग 150 वर्षों में यह दूसरी बार हाे रहा है कि इस बार पत्थराें का मेला नहीं हाेगा. कोरोना काल के चलते इस वर्ष भी मेले का आयोजन नहीं किया जाएगा. इस वर्ष भी कारा (रस्में) निभाएंगें, पूजा पाठ भी हाेगा, लेकिन पत्थराें का मेला नहीं हाेगा. माता भद्रकाली के आदेशानुसार ही ये सब हाे रहा है.
कटेड़ू और जमोगी घरानों के लोग बरसाते हैं एक दूसरे पर पत्थरः परंपरा के मुताबिक एक ओर राज परिवार की तरफ से जठोली, तुनड़ू और धगोई और कटेड़ू खानदान की टोली और दूसरी तरफ से जमोगी खानदान की टोली के सदस्य ही पत्थर बरसाने के मेले में भाग ले सकते हैं. बाकी लोग पत्थर मेले को सिर्फ देख सकते हैं, लेकिन वह पत्थर नहीं मार सकते हैं. 'खेल का चौरा' गांव में बने सती स्मारक के एक तरफ से जमोगी दूसरी तरफ से कटेड़ू समुदाय पथराव करता है. मेले की शुरुआत राज परिवार की ओर से नरसिंह के पूजन के साथ होती है.
मान्यता है कि माता भद्रकाली वर्ष भर जहां लाेगाें काे बेहतर स्वास्थ्य का वरदान देती है, वहीं सुख-समृद्धि भी लाती हैं इसलिए इस मेले काे शुरू किया गया था. खास बात ये है कि आजकल के युवा भी इस रीति-रिवाज में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं.
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