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सोम प्रदोष व्रत : भोलेनाथ करेंगे बेड़ा पार, जानिये मुहूर्त और पूजा विधि

भगवान शिव को रिझाने के लिए प्रदोष व्रत किया (Pradosh Vrat 2022 ) जाता है. प्रदोष काल (Pradosh Kaal Time) का समय इस व्रत में अहम माना जाता और यह अनादि काल से चला आ रहा है. आपकी कोई मनोकामना जो काफी समय से पूरी नहीं हो रही हो या फिर शादी, सुख शांति और वैभव के लिए इसे किया जाता है. माना जाता है कि प्रदोष व्रत करने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर मनोवांछित फल अपने भक्त को जल्द देते हैं.

Pradosh Vrat 2022
प्रदोष व्रत 2022
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Published : Feb 13, 2022, 5:01 AM IST

Updated : Feb 13, 2022, 6:26 AM IST

शिमला: हर महीने दो प्रदोष व्रत पड़ते है. इस दिन भगवान शंकर की पूजा-अर्चना की जाती है. हर माह दो त्रयोदशी आती है. एक शुक्ल और दूसरी कृष्ण पक्ष की. मान्यता है कि प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनका गुणगान करते हैं. मध्य प्रदेश के मनासा के पंडित शिव रतन जोशी ने बताया कि प्रदोष काल का समय रोज रहता है. इस समय भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. प्रदोष के दिन इस समय का महत्व बढ़ जाता है. इसलिए प्रदोष काल में विशेष पूजा-अर्चना भी मंदिरों में की जाती है. उनके मुताबिक सूर्यास्त से ठीक पहले डेढ़ घंटे का समय प्रदोष काल कहलाता है.

जब शिवजी ने पिया विष: ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय विष पीने की घटना त्रयोदशी तिथि के प्रदोष काल के समय हुई थी. प्रदोष व्रत शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. प्रदोष काल के समय स्नान करके मौन रहने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि शिवकर्म सदैव मौन रहकर ही पूर्णता को प्राप्त करता है. कहते हैं कि इसी दिन सोम (चंद्र) को, भगवान भोलेनाथ ने अपने मस्तक पर धारण किया था. जिसके चलते इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है.

भगवान शिव की पूजा: सांय काल भगवान शंकर की पूजा करके घी का दीपक जलाकर भगवान शिव की पूजा करके फिर भगवान शंकर को भोग लगाकर भोजन करना चाहिए. प्रदोष का व्रत करने से धन, वैभव और वंश दोनों ही चलते हैं. वंश की वृद्धि भी भगवान शंकर ही करते हैं, जिसका विवाह नहीं हो रहा है, उसे प्रदोष व्रत करना चाहिए.

13-14 फरवरी को रहेगा प्रदोष व्रत: माघ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 13 फरवरी को हो रहा है. शाम 6 बजकर 42 मिनट पर शुरू होकर इसका समय 14 फरवरी को रात 8 बजकर 28 मिनट तक (Pradosh fast on 14th February) रहेगा. इस कारण प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat)14 फरवरी यानी सोमवार को रखा जाएगा. व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा का समय शाम को 6 बजकर 10 मिनट से शुरू होगा और रात में 8 बजकर 28 मिनट तक रहेगा.

इस समय भगवान शंकर और माता पार्वती (Lord Shiva Parvati) की पूजा-अर्चना की जाती है. त्रयोदशी तिथि को सिद्धि योग 11.53 मिनट से शुरू होकर 15 फरवरी को सुबह 7 बजे तक रहेगा. रवि योग 14 फरवरी को सुबह 11.53 मिनट पर शुरू होगा. 15 फरवरी को सुबह 7 बजे तक रहेगा. वहीं, आयुष्मान योग रात 9.29 बजे समाप्त होगा.

सात दिन, सात नाम: प्रदोष के दिन भगवान शिव और मां-पार्वती की पूजा-अर्चना करने की पंरपरा चली आ रही है. सातों दिनों को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को नाम से भी पुकारा जाता है. इस बार प्रदोष व्रत सोमवार को होने के कारण सोम प्रदोष व्रत कहलाएगा. सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना का दिन होता है. मान्यता है कि सोम प्रदोष व्रत करने से दो गुना फल प्राप्त होता है.

तामसिक भोजन ना करें: व्रत नियम के अनुसार द्वादशी से व्रत नियमों का पालन करना आवश्यक माना गया है. साधकों को द्वादशी तिथि के दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए. त्रयोदशी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान शिव को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करनी चाहिए. नित्य कर्मों से निवृत होकर श्वेत और स्वच्छ वस्त्र धारण कर सबसे पहले भगवान सूर्य को जल का अर्घ्य देना चाहिए.

फिर भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, भांग, धतूरा, दूध, दही और पंचामृत से करनी चाहिए. पूजा करते समय शिव चालीसा का पाठ, मंत्रों का जाप अवश्य करें. अंत में आरती अर्चना कर भगवान शिव और माता पार्वती से अन्न, जल और धन की कामना करें. दिनभर उपवास रखें और शाम में आरती के बाद फलाहार करें. अगले दिन पूजा-पाठ कर व्रत खोल सकते हैं.

मनोकामना पूरी करता है प्रदोष व्रत: माना जाता है कि जो भक्त रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करता है. उसे अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. सर्वकार्य सिद्धि के लिए शास्त्रों में कहा गया है कि यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है.

कितने प्रदोष व्रत रखें: अगर आप चाहें तो भगवान शिव की आराधना के लिए हमेशा प्रदोष व्रत रख सकते हैं, लेकिन माना जाता है कि प्रदोष व्रत 11 या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद उद्यापन त्रयोदशी तिथि में करना उत्तम माना जाता है. उद्यापन से एक दिन पहले गणेश का पूजन करना चाहिए. वहीं, पूर्व रात्रि में जागरण भजन, कीर्तन किया जाता है.

प्रदोष व्रत फरवरी-मार्च 2022

28 फरवरी सोमवार- प्रारंभ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि संध्या काल में 5 बजकर 42 मिनट पर शुरु होगा. 1 मार्च को दोपहर 3 बजकर 16 मिनट पर समाप्त होगी.

15 मार्च, मंगलवार- प्रारंभ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि को दोपहर में 1 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगा. 16 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी.

मार्च 29 मार्च मंगलवार- चैत्र, कृष्ण त्रयोदशी प्रारंभ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि 29 मार्च को दोपहर में 2 बजकर 38 मिनट पर शुरु होगी. 30 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी.

14 अप्रैल गुरुवार- चैत्र, शुक्ल त्रयोदशी प्रारंभ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि सुबह में 4 बजकर 49 मिनट पर शुरु. 15 अप्रैल को देर रात 3 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी.

28 अप्रैल बृहस्पतिवार- वैशाख, कृष्ण त्रयोदशी प्रारंभ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि 28 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 23 मिनट पर शुरु. 29 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी.

13 मई, शुक्रवार- वैशाख, शुक्ल त्रयोदशी प्रारंभ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि 13 मई को संध्या काल 5 बजकर 27 मिनट पर शुरु. 14 मई को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी.

27 मई, शुक्रवार- ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी प्रारंभ- ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 27 मई को दिन में 11 बजकर 47 मिनट पर शुरु 28 मई को दोपहर 1 बजकर 9 मिनट पर समाप्त होगी.

12 जून, रविवार- ज्येष्ठ, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ- ज्येष्ठ, शुक्ल त्रयोदशी 12 जून को देर रात 3 बजकर 23 मिनट पर शुरु. 13 जून को देर रात 12 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी.

26 जून , रविवार- आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी- प्रारंभ आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 26 जून को देर रात 1 बजकर 9 मिनट पर शुरु.27 जून को देर रात 3 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी.

11 जुलाई, सोमवार-आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ- आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 11 जुलाई को देर रात 11 बजकर 13 मिनट पर शुरु.12 जुलाई को सुबह में 7 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी.

25 जुलाई, सोमवार- श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 25 जुलाई को शाम में 4 बजकर 15 मिनट पर शुरु होगी. वहीं, 26 जुलाई को शाम में 6 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी.

9 अगस्त, मंगलवार- श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 9 अगस्त को शाम में 5 बजकर 45 मिनट पर शुरु होगी. वहीं, 10 अगस्त को दिन में 2 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी.

24 अगस्त, बुधवार- भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 24 अगस्त को सुबह में 8 बजकर 30 मिनट पर शुरू होगी. 25 अगस्त को सुबह में 10 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी.

8 सिंतबर, बृहस्पतिवार- भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 8 सितंबर को देर रात 12 बजकर 4 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, 8 सितंबर को रात में 9 बजकर 2 मिनट पर समाप्त होगी.

23 सिंतबर शुक्रवार- आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 23 सितंबर को देर रात 1 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी. 24 सितंबर को देर रात 2 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी.

7 अक्टूबर , शुक्रवार- आश्विन, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 7 अक्टूबर को सुबह में 7 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, 8 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी.

22 अक्टूबर शनिवार- कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी.प्रारंभ कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी शाम में 6 बजकर 2 मिनट पर शुरू होगी. 23 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 3 मिनट पर समाप्त होगी.

5 नवंबर, शनिवार- कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी रहेगी. प्रारंभ कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी तिथि शाम को 5 बजकर 66 मिनट पर शुरू होगी और 6 नवंबर को शाम को 4 बजकर 28 मिनट तक रहेगी.

21 नवंबर, सोमवार- मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 21 नवंबर को सुबह में 10 बजकर 7 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, 22 नवंबर को सुबह में 8 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी.

5 दिसंबर सोमवार- मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 5 दिसंबर को सुबह में 5 बजकर 57 मिनट पर शुरू होगी. 6 दिसंबर को सुबह 6 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी.

21 दिसंबर, बुधवार- पौष, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ पौष, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 21 दिसंबर को देर रात 12 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, 21 दिसंबर को रात में 10 बजकर 16 मिनट पर समाप्त होगी.

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शिमला: हर महीने दो प्रदोष व्रत पड़ते है. इस दिन भगवान शंकर की पूजा-अर्चना की जाती है. हर माह दो त्रयोदशी आती है. एक शुक्ल और दूसरी कृष्ण पक्ष की. मान्यता है कि प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनका गुणगान करते हैं. मध्य प्रदेश के मनासा के पंडित शिव रतन जोशी ने बताया कि प्रदोष काल का समय रोज रहता है. इस समय भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. प्रदोष के दिन इस समय का महत्व बढ़ जाता है. इसलिए प्रदोष काल में विशेष पूजा-अर्चना भी मंदिरों में की जाती है. उनके मुताबिक सूर्यास्त से ठीक पहले डेढ़ घंटे का समय प्रदोष काल कहलाता है.

जब शिवजी ने पिया विष: ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय विष पीने की घटना त्रयोदशी तिथि के प्रदोष काल के समय हुई थी. प्रदोष व्रत शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. प्रदोष काल के समय स्नान करके मौन रहने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि शिवकर्म सदैव मौन रहकर ही पूर्णता को प्राप्त करता है. कहते हैं कि इसी दिन सोम (चंद्र) को, भगवान भोलेनाथ ने अपने मस्तक पर धारण किया था. जिसके चलते इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है.

भगवान शिव की पूजा: सांय काल भगवान शंकर की पूजा करके घी का दीपक जलाकर भगवान शिव की पूजा करके फिर भगवान शंकर को भोग लगाकर भोजन करना चाहिए. प्रदोष का व्रत करने से धन, वैभव और वंश दोनों ही चलते हैं. वंश की वृद्धि भी भगवान शंकर ही करते हैं, जिसका विवाह नहीं हो रहा है, उसे प्रदोष व्रत करना चाहिए.

13-14 फरवरी को रहेगा प्रदोष व्रत: माघ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 13 फरवरी को हो रहा है. शाम 6 बजकर 42 मिनट पर शुरू होकर इसका समय 14 फरवरी को रात 8 बजकर 28 मिनट तक (Pradosh fast on 14th February) रहेगा. इस कारण प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat)14 फरवरी यानी सोमवार को रखा जाएगा. व्रत के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा का समय शाम को 6 बजकर 10 मिनट से शुरू होगा और रात में 8 बजकर 28 मिनट तक रहेगा.

इस समय भगवान शंकर और माता पार्वती (Lord Shiva Parvati) की पूजा-अर्चना की जाती है. त्रयोदशी तिथि को सिद्धि योग 11.53 मिनट से शुरू होकर 15 फरवरी को सुबह 7 बजे तक रहेगा. रवि योग 14 फरवरी को सुबह 11.53 मिनट पर शुरू होगा. 15 फरवरी को सुबह 7 बजे तक रहेगा. वहीं, आयुष्मान योग रात 9.29 बजे समाप्त होगा.

सात दिन, सात नाम: प्रदोष के दिन भगवान शिव और मां-पार्वती की पूजा-अर्चना करने की पंरपरा चली आ रही है. सातों दिनों को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को नाम से भी पुकारा जाता है. इस बार प्रदोष व्रत सोमवार को होने के कारण सोम प्रदोष व्रत कहलाएगा. सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना का दिन होता है. मान्यता है कि सोम प्रदोष व्रत करने से दो गुना फल प्राप्त होता है.

तामसिक भोजन ना करें: व्रत नियम के अनुसार द्वादशी से व्रत नियमों का पालन करना आवश्यक माना गया है. साधकों को द्वादशी तिथि के दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए. त्रयोदशी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान शिव को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करनी चाहिए. नित्य कर्मों से निवृत होकर श्वेत और स्वच्छ वस्त्र धारण कर सबसे पहले भगवान सूर्य को जल का अर्घ्य देना चाहिए.

फिर भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, भांग, धतूरा, दूध, दही और पंचामृत से करनी चाहिए. पूजा करते समय शिव चालीसा का पाठ, मंत्रों का जाप अवश्य करें. अंत में आरती अर्चना कर भगवान शिव और माता पार्वती से अन्न, जल और धन की कामना करें. दिनभर उपवास रखें और शाम में आरती के बाद फलाहार करें. अगले दिन पूजा-पाठ कर व्रत खोल सकते हैं.

मनोकामना पूरी करता है प्रदोष व्रत: माना जाता है कि जो भक्त रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करता है. उसे अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. सर्वकार्य सिद्धि के लिए शास्त्रों में कहा गया है कि यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है.

कितने प्रदोष व्रत रखें: अगर आप चाहें तो भगवान शिव की आराधना के लिए हमेशा प्रदोष व्रत रख सकते हैं, लेकिन माना जाता है कि प्रदोष व्रत 11 या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद उद्यापन त्रयोदशी तिथि में करना उत्तम माना जाता है. उद्यापन से एक दिन पहले गणेश का पूजन करना चाहिए. वहीं, पूर्व रात्रि में जागरण भजन, कीर्तन किया जाता है.

प्रदोष व्रत फरवरी-मार्च 2022

28 फरवरी सोमवार- प्रारंभ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि संध्या काल में 5 बजकर 42 मिनट पर शुरु होगा. 1 मार्च को दोपहर 3 बजकर 16 मिनट पर समाप्त होगी.

15 मार्च, मंगलवार- प्रारंभ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि को दोपहर में 1 बजकर 12 मिनट पर शुरू होगा. 16 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी.

मार्च 29 मार्च मंगलवार- चैत्र, कृष्ण त्रयोदशी प्रारंभ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि 29 मार्च को दोपहर में 2 बजकर 38 मिनट पर शुरु होगी. 30 मार्च को दोपहर में 1 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी.

14 अप्रैल गुरुवार- चैत्र, शुक्ल त्रयोदशी प्रारंभ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि सुबह में 4 बजकर 49 मिनट पर शुरु. 15 अप्रैल को देर रात 3 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी.

28 अप्रैल बृहस्पतिवार- वैशाख, कृष्ण त्रयोदशी प्रारंभ- कृष्ण त्रयोदशी तिथि 28 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 23 मिनट पर शुरु. 29 अप्रैल को देर रात 12 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी.

13 मई, शुक्रवार- वैशाख, शुक्ल त्रयोदशी प्रारंभ- शुक्ल त्रयोदशी तिथि 13 मई को संध्या काल 5 बजकर 27 मिनट पर शुरु. 14 मई को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी.

27 मई, शुक्रवार- ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी प्रारंभ- ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 27 मई को दिन में 11 बजकर 47 मिनट पर शुरु 28 मई को दोपहर 1 बजकर 9 मिनट पर समाप्त होगी.

12 जून, रविवार- ज्येष्ठ, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ- ज्येष्ठ, शुक्ल त्रयोदशी 12 जून को देर रात 3 बजकर 23 मिनट पर शुरु. 13 जून को देर रात 12 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी.

26 जून , रविवार- आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी- प्रारंभ आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 26 जून को देर रात 1 बजकर 9 मिनट पर शुरु.27 जून को देर रात 3 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी.

11 जुलाई, सोमवार-आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ- आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 11 जुलाई को देर रात 11 बजकर 13 मिनट पर शुरु.12 जुलाई को सुबह में 7 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी.

25 जुलाई, सोमवार- श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 25 जुलाई को शाम में 4 बजकर 15 मिनट पर शुरु होगी. वहीं, 26 जुलाई को शाम में 6 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी.

9 अगस्त, मंगलवार- श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 9 अगस्त को शाम में 5 बजकर 45 मिनट पर शुरु होगी. वहीं, 10 अगस्त को दिन में 2 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी.

24 अगस्त, बुधवार- भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 24 अगस्त को सुबह में 8 बजकर 30 मिनट पर शुरू होगी. 25 अगस्त को सुबह में 10 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी.

8 सिंतबर, बृहस्पतिवार- भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 8 सितंबर को देर रात 12 बजकर 4 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, 8 सितंबर को रात में 9 बजकर 2 मिनट पर समाप्त होगी.

23 सिंतबर शुक्रवार- आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 23 सितंबर को देर रात 1 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी. 24 सितंबर को देर रात 2 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी.

7 अक्टूबर , शुक्रवार- आश्विन, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 7 अक्टूबर को सुबह में 7 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, 8 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी.

22 अक्टूबर शनिवार- कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी.प्रारंभ कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी शाम में 6 बजकर 2 मिनट पर शुरू होगी. 23 अक्टूबर को शाम में 6 बजकर 3 मिनट पर समाप्त होगी.

5 नवंबर, शनिवार- कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी रहेगी. प्रारंभ कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी तिथि शाम को 5 बजकर 66 मिनट पर शुरू होगी और 6 नवंबर को शाम को 4 बजकर 28 मिनट तक रहेगी.

21 नवंबर, सोमवार- मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 21 नवंबर को सुबह में 10 बजकर 7 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, 22 नवंबर को सुबह में 8 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी.

5 दिसंबर सोमवार- मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी. प्रारंभ मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी तिथि 5 दिसंबर को सुबह में 5 बजकर 57 मिनट पर शुरू होगी. 6 दिसंबर को सुबह 6 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी.

21 दिसंबर, बुधवार- पौष, कृष्ण त्रयोदशी. प्रारंभ पौष, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 21 दिसंबर को देर रात 12 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, 21 दिसंबर को रात में 10 बजकर 16 मिनट पर समाप्त होगी.

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Last Updated : Feb 13, 2022, 6:26 AM IST
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