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Sawan 2022: देवभूमि हिमाचल में भगवान शिव के कई प्रसिद्ध मंदिर, सावन में यहां भोलेनाथ के दर पर लगता है भक्तों का तांता - छोटी काशी मंडी में भगवान शिव

सावन माह शिव, शंभु भगवान भोलेनाथ को सबसे अधिक प्रिय है. इस माह में शिव की पूजा के पीछे एक विशेष महत्व छिपा (Worship of Shiva in Sawan) हुआ है. वहीं, देवभूमि हिमाचल में भगवान शिव के कई प्रसिद्ध मंदिर (Sawan 2022 Famous Shiv temple of himachal pradesh) हैं, जहां सावन के महीने में भक्तों का तांता लग रहता है. ऐसे में सावन के पवित्र माह पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं देवभूमि स्थित कुछ प्रसिद्ध शिव मंदिर के बारे में और इन मंदिरों को लेकर क्या मान्यता है...

Famous Shiv temple of himachal pradesh
हिमाचल में प्रसिद्ध शिव मंदिर.
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Published : Jul 14, 2022, 1:00 AM IST

शिमला: हिंदू धर्म में सावन के माह का विशेष महत्व होता है. इस दौरान भगवान शिव का पूजन किया जाता (Worship of Shiva in Sawan) है. इस बार सावन गुरुवार, 14 जुलाई से शुरू हो रही हैं. सावन में कांवड़ यात्रा भी शुरू होती है. जिसमें शिव भक्त कांवड़ में गंगाजल भरकर लाते हैं और भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं. सावन माह में भगवान शिव का पूजन किया जाता है. इसके पीछे कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार सावन के महीने में ही भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया था. इस विष का ताप इतना तेज था कि इंद्र देवता ने बारिश करके उन्हें शीतलता प्रदान की थी.

पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव सावन के महीने में अपने ससुराल गए थे, जहां उनका धूमधाम से स्वागत कर अभिषेक किया गया था. मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव और माता पार्वती भू लोक पर निवास करते हैं. यदि विधि​-विधान से सावन में भगवान शिव का अभिषेक किया जाए तो हर मनोकामना पूरी होती है. हिमाचल में भगवान शिव के कई प्रसिद्ध मंदिर (Famous Shiv temple of himachal pradesh) है, जिसको लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. सावन के महीने पर देवभूमि हिमाचल के शिवालयों में भक्तों का तांता लगा रहता है.

छोटी काशी मंडी में भगवान शिव के कई मंदिर: छोटी काशी मंडी के एकादश रुद्र, अर्धनारीश्वर, बाबा भूतनाथ, शिव रुद्र मंदिर, ताम्रप्रति महादेव, नीलकंठ, सिद्ध शम्भू समेत प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं. बाबा भूतनाथ महादेव मठ मंदिर मंडी के महंत ने बताया कि सनातन धर्म के अनुसार श्रावण मास में भोलेनाथ मात्र जल चढ़ाने से भी प्रसन्न हो जाते हैं. इस मास में भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए ज्यादा पूजा पाठ करने की भी जरूरत नहीं रहती.

भूतनाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस स्थान पर शिव की तपस्या की थी. पांडवों ने ही इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की है, लेकिन कुछ साल के बाद यह शिवलिंग विलुप्त हो गया था. कहते हैं वर्षों बीतने के बाद जब गसोता में एक किसान इस स्थान पर हल चला रहा था उस दौरान हल जमीन के नीचे शिवलिंग से टकराया, जिससे यहां पर पानी की धारा फूट पड़ी. इसके बाद हल चलाते समय यहां पर खून भी निकलने लगा था.

lord shiva  temple in mandi
भूतनाथ मंदिर.

मान्यता के अनुसार किसान को सपने में महादेव ने दर्शन देकर यहां पर शिवलिंग होने की बात कही थी. जिस पर किसान ने खोदाई कर शिवलिंग खोज निकाली. शिवलिंग के ऊपरी हिस्से पर पर किसान के हल की चोट का निशान आज भी देखा जा सकता है. शिवलिंग पर अनजाने में चोट लगने क के दोष से मुक्त होने के लिए किसान ने इसी स्थान पर शिव का मंदिर बनवाया था.

यहां 12 साल बाद भोलेनाथ पर बिजली गिराते हैं इंद्र: कुल्लू के पहाड़ों पर आज भी एक ऐसी पहाड़ी है जहां भगवान शिव की आज्ञा का देवराज इंद्र पालन कर रहे हैं. पहाड़ी पर बने मंदिर में आज भी आसमानी बिजली गिरती है, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता. कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है. खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मान्यता है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके, इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग को स्थापित किया गया है और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं.

bijli mahadev temple
बिजली महादेव मंदिर.

मान्यता के अनुसार कुलांत दैत्य को मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वह 12 साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें. हर बारहवें साल में यहां आसमानी बिजली गिरती है. इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है. इसके बाद पुजारी शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है. कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है.

इसलिए कहा जाता है बिजली महादेव: आकाशीय बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन-धन को इससे नुक्सान पहुंचे. भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं. इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है.

द्रविड़ शैली में बना है एशिया का ये सबसे ऊंचा शिव मंदिर: अब बात करते हैं एशिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर की. हिमाचल के जिला सोलन से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर जटोली शिव मंदिर स्थित है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यह एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है. दक्षिण-द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर को बनने में करीब 39 साल का समय लगा था. मंदिर परिसर में दाईं ओर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है. इसके 200 मीटर की दूरी पर शिवलिंग भी है. मंदिर का गुंबद 111 फीट ऊंचा है जिसके कारण ये एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है. वहीं, इस मंदिर के ऊपर 11 फुट ऊंचे स्वर्ण कलश की स्थापना भी की गई है, जिस कारण अब इसकी ऊंचाई 122 फीट भी आंकी जाती है.

jatoli shiv temple
जटोली शिव मंदिर.

आज भी मौजूद है चमत्कारी पानी का कुंड: मान्यता है कि सोलन के लोगों को पानी की समस्या से जुझना पड़ा था. जिस देखते हुए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और त्रिशूल के प्रहार से जमीन से पानी निकाला. तब से लेकर आज तक जटोली में पानी की समस्या नहीं है. लोग इस पानी को चमत्कारी मानते हैं. मान्यता है कि इस जल में किसी भी बीमारी को ठीक करने के गुण हैं.

इस शिवलिंग का नहीं है कोई अंत: हिमाचल सिर्फ देव भूमि ही नहीं बल्कि भगवान शिव शंकर का ससुराल भी है. भगवान शिव को समर्पित बैजनाथ मंदिर पालमपुर शहर से 16 किलोमीटर दूर स्थित है. कई प्राकृतिक आपदाओं, आक्रमणों और बदलावों को देख चुका यह मंदिर आज भी अपने मूल रुप में बना हुआ है. बैजनाथ मंदिर के बारे में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं, ऐसा कहा जाता है कि रावण ने कई वर्षों तक कठिन तपस्या करने के बाद शिव से उनके शिवलिंग को लंका ले जाने का वरदान मांगा था. इसके बाद भगवान शिव ने भी एक शर्त, रावण के सामने रख दी थी, जिसे रावण पूरा नहीं कर सका और शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया.

लोक मान्यताओं के अनुसार मंडी के किसी राजा ने इस शिवलिंग को अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन काफी खुदाई के बाद भी शिवलिंग का अंत नहीं मिल पाया. खुदाई के दौरान मजदूरों को जमीन के अंदर से निकली मधुमक्खियों ने बुरी तरह घायल कर दिया था. इस घटना के बाद राजा को अपनी गलती का आभास हुआ और राजा ने शिवलिंग के ऊपर मक्खन से भोले बाबा का श्रृंगार किया.

ऐसा मंदिर जहां जमीन से प्रकट हुए शिवलिंग: देशभर में बहुत से शिव के ऐसे मंदिर है जिनके रहस्यों के बारे में आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है. राजधानी शिमला के मशोबरा के समीप बलदेया में एक ऐसा ऐतिहासिक शिव मंदिर है जहां शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए थे, शिवलिंग पर शेष नाग भी विराजमान थे. हर साल शिवरात्रि पर इस मंदिर में लोग दूर-दूर से आकर विशेष पूजा अर्चना करते है.

मान्यता है कि करीब 17 साल पहले यहां सड़क की चौड़ाई के लिए खुदाई का काम चला हुआ था. डाइनामाइट बम लगाकर पत्थर तोड़ने का काम किया जा रहा था, इस दौरान एक जगह ऐसी आई जहां डाइनामाइट बम भी पत्थर को नहीं तोड़ सका, मजदूरों ने पत्थर तोड़ने का प्रयास किया तो वहां पर स्वयं जमीन से एक शिवलिंग प्रकट हो गया.

शिव-पार्वती ने क्वागधार से देखा था महाभारत का युद्ध: सिरमौर जिले में क्वागधार स्थित शिव मंदिर को लोग भूरेश्वर महादेव के मंदिर के नाम से जानते हैं. यह मंदिर सिरमौर जिले के नाहन-शिमला हाइवे पर पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के सराहां कस्बे से महज 12 किलोमीटर दूर है. समुद्र तल से करीब 6800 फीट ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर काफी प्राचीन है. इसका इतिहास द्वापर युग से जुड़ा है. कहते हैं भगवान शिव और मां पार्वती ने महाभारत का युद्ध यहीं से देखा था.

Shiv temple.
क्वागधार स्थित शिव मंदिर.

मंदिर के पुजारी, स्थानीय लोगों सहित मंदिर की दीवार पर लिखी गई कहानी के अनुसार द्वापर युग में क्वागधार पर्वत के शिखर पर बैठकर भगवान शिव और मां पार्वती ने कुरूक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया महाभारत का युद्ध देखा था. तभी से यहां पर स्वयंभू शिवलिंग की उत्पत्ति मानी जाती है.

यहां हिंदू और बौध करते हैं भोलेनाथ की आराधना: लाहौल स्पीति के उदयपुर उपमंडल में बसा त्रिलोकीनाथ गांव में भगवान शिव का मंदिर देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है. खास बात यह है कि यहां बौद्ध और हिन्दू धर्म के अनुयायी भगवान शिव की आराधना करते हैं. दुनिया में शायद यह इकलौता मंदिर है, जहां एक ही मूर्ति की पूजा दोनों धर्मों के लोग एक साथ करते हैं. हिंदुओं में त्रिलोकीनाथ देवता को भगवान शिव का रूप माना जाता है, जबकि बौद्ध इनकी पूजा आर्य अवलोकीतेश्वर के रूप में करते हैं. हिंदुओं के बीच मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था. वहीं, बौद्धों के अनुसार पद्मसंभव 8वीं शताब्दी में यहां पर आए थे और उन्होंने इसी जगह पर पूजा की थी.

trilokinath temple
त्रिलोकीनाथ मंदिर.

मान्यता है कि जिस व्यक्ति को अपने पाप और पुण्य के बारे में जानना हो वह इन संकरे शिला स्तंभों के मध्य से गुजर सकता है. यदि मनुष्य ने पाप किया होगा तो भले ही वह दुबला-पतला ही क्यों न हो वह इनके पार नहीं जा पाता. वहीं, यदि किसी मनुष्य ने पुण्य कमाया हो तो भले ही उसका शरीर विशालकाय क्यों न हो वह इन स्तंभों के पार चला जाता है. यहां एक ही छत के नीचे शिव और बुद्ध के लिए समर्पित दीप जलाए जाते हैं. लाहौल घाटी में हिंदू और बुद्ध दोनों ही धर्मों के लोग रहते हैं और सबका आपस में भाईचारे का रिश्ता है.

12 अगस्त तक चलेगा सावन: शास्त्र के अनुसार जो भक्त सावन के पावन महीने में भगवान भोलेनाथ की विधि -विधान से पूजा करते हैं, उनकी सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं. सावन महीने के सोमवार को पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करके अगर व्रत रखा जाए तो भगवान शिव प्रसन्न होते हैं. इस बार श्रावण का पवित्र महीना 14 जुलाई से आरंभ होकर 12 अगस्त तक चलेगा. इस बार सावन में कुल 4 सोमवार आएंगे.

ये भी पढ़ें: शुभ संयोग में शुरू हो रहा सावन का महीना, ऐसे करें भगवान शिव की पूजा

शिमला: हिंदू धर्म में सावन के माह का विशेष महत्व होता है. इस दौरान भगवान शिव का पूजन किया जाता (Worship of Shiva in Sawan) है. इस बार सावन गुरुवार, 14 जुलाई से शुरू हो रही हैं. सावन में कांवड़ यात्रा भी शुरू होती है. जिसमें शिव भक्त कांवड़ में गंगाजल भरकर लाते हैं और भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं. सावन माह में भगवान शिव का पूजन किया जाता है. इसके पीछे कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार सावन के महीने में ही भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया था. इस विष का ताप इतना तेज था कि इंद्र देवता ने बारिश करके उन्हें शीतलता प्रदान की थी.

पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव सावन के महीने में अपने ससुराल गए थे, जहां उनका धूमधाम से स्वागत कर अभिषेक किया गया था. मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव और माता पार्वती भू लोक पर निवास करते हैं. यदि विधि​-विधान से सावन में भगवान शिव का अभिषेक किया जाए तो हर मनोकामना पूरी होती है. हिमाचल में भगवान शिव के कई प्रसिद्ध मंदिर (Famous Shiv temple of himachal pradesh) है, जिसको लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. सावन के महीने पर देवभूमि हिमाचल के शिवालयों में भक्तों का तांता लगा रहता है.

छोटी काशी मंडी में भगवान शिव के कई मंदिर: छोटी काशी मंडी के एकादश रुद्र, अर्धनारीश्वर, बाबा भूतनाथ, शिव रुद्र मंदिर, ताम्रप्रति महादेव, नीलकंठ, सिद्ध शम्भू समेत प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं. बाबा भूतनाथ महादेव मठ मंदिर मंडी के महंत ने बताया कि सनातन धर्म के अनुसार श्रावण मास में भोलेनाथ मात्र जल चढ़ाने से भी प्रसन्न हो जाते हैं. इस मास में भोले बाबा को प्रसन्न करने के लिए ज्यादा पूजा पाठ करने की भी जरूरत नहीं रहती.

भूतनाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस स्थान पर शिव की तपस्या की थी. पांडवों ने ही इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की है, लेकिन कुछ साल के बाद यह शिवलिंग विलुप्त हो गया था. कहते हैं वर्षों बीतने के बाद जब गसोता में एक किसान इस स्थान पर हल चला रहा था उस दौरान हल जमीन के नीचे शिवलिंग से टकराया, जिससे यहां पर पानी की धारा फूट पड़ी. इसके बाद हल चलाते समय यहां पर खून भी निकलने लगा था.

lord shiva  temple in mandi
भूतनाथ मंदिर.

मान्यता के अनुसार किसान को सपने में महादेव ने दर्शन देकर यहां पर शिवलिंग होने की बात कही थी. जिस पर किसान ने खोदाई कर शिवलिंग खोज निकाली. शिवलिंग के ऊपरी हिस्से पर पर किसान के हल की चोट का निशान आज भी देखा जा सकता है. शिवलिंग पर अनजाने में चोट लगने क के दोष से मुक्त होने के लिए किसान ने इसी स्थान पर शिव का मंदिर बनवाया था.

यहां 12 साल बाद भोलेनाथ पर बिजली गिराते हैं इंद्र: कुल्लू के पहाड़ों पर आज भी एक ऐसी पहाड़ी है जहां भगवान शिव की आज्ञा का देवराज इंद्र पालन कर रहे हैं. पहाड़ी पर बने मंदिर में आज भी आसमानी बिजली गिरती है, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता. कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है. खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मान्यता है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके, इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग को स्थापित किया गया है और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं.

bijli mahadev temple
बिजली महादेव मंदिर.

मान्यता के अनुसार कुलांत दैत्य को मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वह 12 साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें. हर बारहवें साल में यहां आसमानी बिजली गिरती है. इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है. इसके बाद पुजारी शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है. कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है.

इसलिए कहा जाता है बिजली महादेव: आकाशीय बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन-धन को इससे नुक्सान पहुंचे. भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं. इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है.

द्रविड़ शैली में बना है एशिया का ये सबसे ऊंचा शिव मंदिर: अब बात करते हैं एशिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर की. हिमाचल के जिला सोलन से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर जटोली शिव मंदिर स्थित है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यह एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है. दक्षिण-द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर को बनने में करीब 39 साल का समय लगा था. मंदिर परिसर में दाईं ओर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है. इसके 200 मीटर की दूरी पर शिवलिंग भी है. मंदिर का गुंबद 111 फीट ऊंचा है जिसके कारण ये एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है. वहीं, इस मंदिर के ऊपर 11 फुट ऊंचे स्वर्ण कलश की स्थापना भी की गई है, जिस कारण अब इसकी ऊंचाई 122 फीट भी आंकी जाती है.

jatoli shiv temple
जटोली शिव मंदिर.

आज भी मौजूद है चमत्कारी पानी का कुंड: मान्यता है कि सोलन के लोगों को पानी की समस्या से जुझना पड़ा था. जिस देखते हुए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और त्रिशूल के प्रहार से जमीन से पानी निकाला. तब से लेकर आज तक जटोली में पानी की समस्या नहीं है. लोग इस पानी को चमत्कारी मानते हैं. मान्यता है कि इस जल में किसी भी बीमारी को ठीक करने के गुण हैं.

इस शिवलिंग का नहीं है कोई अंत: हिमाचल सिर्फ देव भूमि ही नहीं बल्कि भगवान शिव शंकर का ससुराल भी है. भगवान शिव को समर्पित बैजनाथ मंदिर पालमपुर शहर से 16 किलोमीटर दूर स्थित है. कई प्राकृतिक आपदाओं, आक्रमणों और बदलावों को देख चुका यह मंदिर आज भी अपने मूल रुप में बना हुआ है. बैजनाथ मंदिर के बारे में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं, ऐसा कहा जाता है कि रावण ने कई वर्षों तक कठिन तपस्या करने के बाद शिव से उनके शिवलिंग को लंका ले जाने का वरदान मांगा था. इसके बाद भगवान शिव ने भी एक शर्त, रावण के सामने रख दी थी, जिसे रावण पूरा नहीं कर सका और शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया.

लोक मान्यताओं के अनुसार मंडी के किसी राजा ने इस शिवलिंग को अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन काफी खुदाई के बाद भी शिवलिंग का अंत नहीं मिल पाया. खुदाई के दौरान मजदूरों को जमीन के अंदर से निकली मधुमक्खियों ने बुरी तरह घायल कर दिया था. इस घटना के बाद राजा को अपनी गलती का आभास हुआ और राजा ने शिवलिंग के ऊपर मक्खन से भोले बाबा का श्रृंगार किया.

ऐसा मंदिर जहां जमीन से प्रकट हुए शिवलिंग: देशभर में बहुत से शिव के ऐसे मंदिर है जिनके रहस्यों के बारे में आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है. राजधानी शिमला के मशोबरा के समीप बलदेया में एक ऐसा ऐतिहासिक शिव मंदिर है जहां शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए थे, शिवलिंग पर शेष नाग भी विराजमान थे. हर साल शिवरात्रि पर इस मंदिर में लोग दूर-दूर से आकर विशेष पूजा अर्चना करते है.

मान्यता है कि करीब 17 साल पहले यहां सड़क की चौड़ाई के लिए खुदाई का काम चला हुआ था. डाइनामाइट बम लगाकर पत्थर तोड़ने का काम किया जा रहा था, इस दौरान एक जगह ऐसी आई जहां डाइनामाइट बम भी पत्थर को नहीं तोड़ सका, मजदूरों ने पत्थर तोड़ने का प्रयास किया तो वहां पर स्वयं जमीन से एक शिवलिंग प्रकट हो गया.

शिव-पार्वती ने क्वागधार से देखा था महाभारत का युद्ध: सिरमौर जिले में क्वागधार स्थित शिव मंदिर को लोग भूरेश्वर महादेव के मंदिर के नाम से जानते हैं. यह मंदिर सिरमौर जिले के नाहन-शिमला हाइवे पर पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के सराहां कस्बे से महज 12 किलोमीटर दूर है. समुद्र तल से करीब 6800 फीट ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर काफी प्राचीन है. इसका इतिहास द्वापर युग से जुड़ा है. कहते हैं भगवान शिव और मां पार्वती ने महाभारत का युद्ध यहीं से देखा था.

Shiv temple.
क्वागधार स्थित शिव मंदिर.

मंदिर के पुजारी, स्थानीय लोगों सहित मंदिर की दीवार पर लिखी गई कहानी के अनुसार द्वापर युग में क्वागधार पर्वत के शिखर पर बैठकर भगवान शिव और मां पार्वती ने कुरूक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया महाभारत का युद्ध देखा था. तभी से यहां पर स्वयंभू शिवलिंग की उत्पत्ति मानी जाती है.

यहां हिंदू और बौध करते हैं भोलेनाथ की आराधना: लाहौल स्पीति के उदयपुर उपमंडल में बसा त्रिलोकीनाथ गांव में भगवान शिव का मंदिर देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है. खास बात यह है कि यहां बौद्ध और हिन्दू धर्म के अनुयायी भगवान शिव की आराधना करते हैं. दुनिया में शायद यह इकलौता मंदिर है, जहां एक ही मूर्ति की पूजा दोनों धर्मों के लोग एक साथ करते हैं. हिंदुओं में त्रिलोकीनाथ देवता को भगवान शिव का रूप माना जाता है, जबकि बौद्ध इनकी पूजा आर्य अवलोकीतेश्वर के रूप में करते हैं. हिंदुओं के बीच मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने किया था. वहीं, बौद्धों के अनुसार पद्मसंभव 8वीं शताब्दी में यहां पर आए थे और उन्होंने इसी जगह पर पूजा की थी.

trilokinath temple
त्रिलोकीनाथ मंदिर.

मान्यता है कि जिस व्यक्ति को अपने पाप और पुण्य के बारे में जानना हो वह इन संकरे शिला स्तंभों के मध्य से गुजर सकता है. यदि मनुष्य ने पाप किया होगा तो भले ही वह दुबला-पतला ही क्यों न हो वह इनके पार नहीं जा पाता. वहीं, यदि किसी मनुष्य ने पुण्य कमाया हो तो भले ही उसका शरीर विशालकाय क्यों न हो वह इन स्तंभों के पार चला जाता है. यहां एक ही छत के नीचे शिव और बुद्ध के लिए समर्पित दीप जलाए जाते हैं. लाहौल घाटी में हिंदू और बुद्ध दोनों ही धर्मों के लोग रहते हैं और सबका आपस में भाईचारे का रिश्ता है.

12 अगस्त तक चलेगा सावन: शास्त्र के अनुसार जो भक्त सावन के पावन महीने में भगवान भोलेनाथ की विधि -विधान से पूजा करते हैं, उनकी सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं. सावन महीने के सोमवार को पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करके अगर व्रत रखा जाए तो भगवान शिव प्रसन्न होते हैं. इस बार श्रावण का पवित्र महीना 14 जुलाई से आरंभ होकर 12 अगस्त तक चलेगा. इस बार सावन में कुल 4 सोमवार आएंगे.

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