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किन्नौर के कल्पा में रौलाने मेले का आगाज, बहरूपिये बनकर ग्रामीण करते हैं नृत्य

किन्नौर के कल्पा गांव में रौलाने मेले की शुरुआत हो (ROULANE FAIR STARTS IN KALPA) गई है. इस मेले की खास बात ये है कि ग्रामीणों द्वारा बहरूपिये बनकर नृत्य किया जाता है और उन्हें अपनी पहचान छुपानी पड़ती है.

ROULANE FAIR STARTS IN KALPA
किन्नौर के कल्पा में रौलाने मेले का आगाज
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Published : Mar 25, 2022, 7:25 PM IST

किन्नौर: किन्नौर के कल्पा में रौलाने मेले का आगाज हो गया है. इस मेले में स्थानीय ग्रामीण अपने चेहरे पर मुखौटे लगाकर बहरूपिये बनकर (ROULANE FAIR STARTS IN KALPA) मंदिर प्रांगण में नाचते हुए आते हैं. स्थानीय देवता नारायण के आदेश से यह मेला करीब तीन से चार दिन चलता है. इस मेले को चीने कायनग भी कहा जाता है.

रौलाने मेले में स्थानीय ग्रामीण अपने चेहरे पर मुखौटे लगाकर बहरूपिये बनकर नारायाण देवता मंदिर प्रांगण में नाचते हुए आते हैं. लोग देवता नारायण का आशीर्वाद लेकर पारंपरिक वेशभूषा में मंदिर में नाचते हैं. इस दौरान गांव के लोग भी इस मेले का आनंद लेने के लिए चारों तरफ बैठे होते हैं. मेले में जो मुखौटे लगाकर नृत्य करने वाले ग्रामीण होते हैं उन्हें अपनी पहचान छुपानी पड़ती है.

किन्नौर के कल्पा में रौलाने मेले का आगाज
बता दें कि इसके पीछे की मान्यता है कि (ROULANE FAIR STARTS IN KALPA) यदि किसी मुखौटे वाले व्यक्ति को कोई पहचान लेता है, तो उसे अशुभ माना जाता है. हालांकि आजतक किसी ने मुखौटे के पीछे छुपे व्यक्ति को नहीं पहचाना है. इस मेले में बहरूपिये, ग्रामीणों के साथ मेले के दौरान खूब मजाक भी करते हैं जिसका बुरा नहीं मानना होता है.कल्पा के इस मेले को चीने कायनग और रौलाने नाम से बुलाया जाता है. रौलाने का अर्थ बहरूपिया होता है और चीने कायनग का मतलब कल्पा का मेला है जिसे हर (culture of himachal) वर्ष मनाना अनिवार्य रहता है. इस मेले को गांव की फसल व दूसरी चीजों की बरकत का प्रतीक भी माना जाता है.

ये भी पढ़ें : विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी के सौंदर्यीकरण और विकास के लिए जिला प्रशासन का मास्टर प्लान तैयार

किन्नौर: किन्नौर के कल्पा में रौलाने मेले का आगाज हो गया है. इस मेले में स्थानीय ग्रामीण अपने चेहरे पर मुखौटे लगाकर बहरूपिये बनकर (ROULANE FAIR STARTS IN KALPA) मंदिर प्रांगण में नाचते हुए आते हैं. स्थानीय देवता नारायण के आदेश से यह मेला करीब तीन से चार दिन चलता है. इस मेले को चीने कायनग भी कहा जाता है.

रौलाने मेले में स्थानीय ग्रामीण अपने चेहरे पर मुखौटे लगाकर बहरूपिये बनकर नारायाण देवता मंदिर प्रांगण में नाचते हुए आते हैं. लोग देवता नारायण का आशीर्वाद लेकर पारंपरिक वेशभूषा में मंदिर में नाचते हैं. इस दौरान गांव के लोग भी इस मेले का आनंद लेने के लिए चारों तरफ बैठे होते हैं. मेले में जो मुखौटे लगाकर नृत्य करने वाले ग्रामीण होते हैं उन्हें अपनी पहचान छुपानी पड़ती है.

किन्नौर के कल्पा में रौलाने मेले का आगाज
बता दें कि इसके पीछे की मान्यता है कि (ROULANE FAIR STARTS IN KALPA) यदि किसी मुखौटे वाले व्यक्ति को कोई पहचान लेता है, तो उसे अशुभ माना जाता है. हालांकि आजतक किसी ने मुखौटे के पीछे छुपे व्यक्ति को नहीं पहचाना है. इस मेले में बहरूपिये, ग्रामीणों के साथ मेले के दौरान खूब मजाक भी करते हैं जिसका बुरा नहीं मानना होता है.कल्पा के इस मेले को चीने कायनग और रौलाने नाम से बुलाया जाता है. रौलाने का अर्थ बहरूपिया होता है और चीने कायनग का मतलब कल्पा का मेला है जिसे हर (culture of himachal) वर्ष मनाना अनिवार्य रहता है. इस मेले को गांव की फसल व दूसरी चीजों की बरकत का प्रतीक भी माना जाता है.

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