ETV Bharat / city

हिमाचल में कई वर्षों से अटके पड़े हैं रोपवे प्रोजेक्ट, वित्तीय संसाधनों का आभाव और पर्यावरण मंजूरी है मुख्य कारण

author img

By

Published : Oct 8, 2021, 7:17 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 3:26 PM IST

हिमाचल प्रदेश के चंबा, किन्नौर, शिमला, कुल्लू, मंडी व सिरमौर जिलों में कई ऐसे गांव हैं जहां पहुंचने के लिए कोई सुविधा नहीं है. सड़क बनाना संभव नहीं है. अब भी कुल्लू जिले में एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर रहने वाले लोगों के रोपवे ही साधन है. प्रदेश सरकार द्वारा रोपवे निर्माण को लेकर योजनाएं फिलहाल फाइलों में ही उलझी पड़ी हैं.

Ropeway project did not start in Himachal
हिमाचल में रोपवे का काम बाधित.

शिमला: प्रदेश सरकार द्वारा रोपवे निर्माण को लेकर योजनाएं फिलहाल फाइलों में ही उलझी पड़ी हैं. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति, ग्रीन ट्रिब्यूनल का सख्त रुख और प्रदेश सरकार के पास वित्तीय संसाधनों का आभाव होने के कारण प्रदेश के अधिकांश रोपवे परियोजनाओं का निर्माण कार्य शुरू ही नहीं हो पाया है. पहाड़ी प्रदेश होने के कारण यात्रियों और सामान के परिवहन के लिए रोपवे का उपयोग किया जा सकता है.

इसके अलावा उन छूटी हुई बस्तियों को जोड़ना है जहां सड़कों का निर्माण पर्यावरण और आर्थिक दृष्टि से संभव नहीं है. उन स्थानों को भी रोपवे से जोड़कर ग्रामीणों के जीवन को आसान बनाया जा सकता है. साथ ही पर्यटकों के आकर्षण के नए स्थानों को जोड़ना और रोजगार सृजन व आर्थिक विकास के लिए भी रोपवे को प्रयोग में लाया जा सकता है.

श्री नैना देवी से श्री आनंदपुर साहिब में रोप-वे निर्माण नहीं हो पाया शुरू: कई वर्ष बीत जाने के कारण भी श्री नैना देवी-श्री आनंदपुर साहिब पंजाब के बीच रोप-वे निर्माण का कार्य शुरू ही नहीं हो पाया है. हिमाचल और पंजाब सरकार के बीच हुए समझौता के बाद यहां पर रोप-वे बनाया जाना है, लेकिन अभी तक निर्माण कार्य आरंभ नहीं हो पाई है. इस रोपवे के निर्माण से प्रमुख शक्तिपीठ श्री नैना देवी तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को चढ़ाई नहीं चढ़नी पड़ेगी.

इस रोप-वे के तीन जगह टर्मिनल बनेंगे. रोप-वे के टर्मिनल प्रोजेक्ट का लोअर टर्मिनल पंजाब में श्री आनंदपुर साहिब के निकट रामपुर में, इंटरमीडिएट स्टेशन हिमाचल के टोबा में और अपर टर्मिनल प्वाइंट श्री नैना देवी में होगा. आनंदपुर साहिब और श्री नैना देवी के बीच रोपवे निर्माण की पहल 2012-13 में की गई थी. इसके लिए 14 एकड़ जमीन अधिकृत की गई थी, लेकिन किन्हीं परिस्थितियों में इसका निर्माण नहीं हो पाया.

इसके बाद साल 2018 में चंडीगढ़ में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति में इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे. पर्यटन विभाग ने दोनों धार्मिक स्थलों के बीच बनने वाले रोप-वे के लिए टेंडर आमंत्रित किए है. वहीं, प्रोजेक्ट का आवंटन होने के बाद इसे तीन साल में बनाने की शर्त रखी जाएगी. इस रोप-वे का निर्माण करने वाली कंपनी के पास यह 40 साल तक लीज पर रहेगा. इस 3,850 मीटर लंबे रोप-वे का निर्माण हिमाचल प्रदेश सरकार और पंजाब सरकार मिलकर करेगी. इसके निर्माण में 250 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. इस रोप-वे का निर्माण कॉमन यूरोपियन नॉर्मस के तहत किया जाएगा.



धर्मशाला-मैक्लोडगंज रोपवे का काम अभी भी अधूरा: धर्मशाला और मैक्लोडगंज को जोड़ने वाले रोपवे के पूरा होने की तारीख 4 बार आगे बढ़ने के बावजूद इसका काम अधर में ही लटका हुआ है. अधिकारियों का कहना है कि पहले कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन और अब कोरोना की दूसरी लहर के दौरान निर्माण कार्य में जुटे स्टाफ के कोरोना संक्रमित होने के चलते इसका निर्माण कार्य लटका हुआ है. धर्मशाला-मैकलोडगंज रोपवे बनाने के लिए शुरुआत वर्ष 2013 में शुरू हुई थी. 13 फरवरी 2015 को सरकार की अंतिम मंजूरी मिल गई थी.

सरकार द्वारा 8 जून 2015 को टीआरआईएल के पक्ष में एक पत्र जारी किया गया था. 16 जनवरी 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा परियोजना की आधारशिला रखी थी. परियोजना को 2018 के अंत तक पूरा किया जाना था, लेकिन फॉरेस्ट क्लीयरेंस में देरी के कारण स्थगित कर दिया गया था. बाद में इसे जून 2019 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया लेकिन निर्माण कार्य में हुई देरी के चलते इसे जून 2020 तक पूरा करना निर्धारित किया गया. इसके बाद प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य जून 2021 किया गया. तब भी कार्य पूरा नहीं हुआ इसके बाद प्रोजेक्ट की कंप्लीशन डेट 11 दिसंबर 2021 तक बढ़ाने का आग्रह किया गया है.



शिमला-हाटू पीक रोपवे के लिए 2019 से कोशिशें जारी: शिमला के समीप पहाड़ी की चोटी पर स्थित प्रसिद्ध हाटू मंदिर के लिए नारकंडा से रोपवे का निर्माण करने के लिए वैसे तो काफी पहले से कोशिशें जारी थी मगर वर्ष 2019 में सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी होने के बाद इसके टेंडर तक आमंत्रित कर दिए गए थे. 3.10 किमी लंबे इस रोपवे के निर्माण में करीब 173 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 20-21 के बजट में शिमला-हाटू पीक रोपवे को पीपीपी मोड में चलाने की बात कही है. जिसके बाद 10 फरवरी 2020 को टेंडर आमंत्रित किए गए हैं. लेकिन अभी तक टेंडर की जांच प्रक्रिया ही जारी है. इसके बाद भी अगर टेंडर प्रक्रिया सही पाई जाती है तो इसकी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी जाएगी. इसके बाद ही निर्माण स्थल पर कार्य शुरू किया जा सकेगा.


फॉरेस्ट क्लीयरेंस के कारण अटका पंडोह-बगलामुखी रोपवे निर्माण कार्य: पंडोह डैम से बगलामुखी माता मंदिर तक 750 मीटर लंबे रोपवे को धरातल पर उतारने के लिए रोपवे कारपोरेशन लिमिटेड कागजी कार्यों में ही उलझा है. वन विभाग ने रोपवे के निर्माण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली आधा हेक्टेयर वन भूमि को कारपोरेशन के नाम हस्तांतरित करने के लिए एफसीए केस पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय देहरादून भेज दिया है.

रोपवे निर्माण के लिए प्रदेश सरकार ने 44.23 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया है. वन विभाग ने हालांकि एक बार पहले फारेस्ट क्लीयरेंस के लिए केस बना कर देहरादून भेजा था. लेकिन कुछ आपत्तियों के कारण इसे सैद्धांतिक मंजूरी नहीं मिल पाई थी, जिसके बाद इन आपत्तियों को दूर कर दोबारा केस को फाइनल अप्रूवल के लिए भेजा गया. रोपवे बन जाने से एक घंटे में 500 लोगों को लाने ले जाने की सुविधा मिलेगी.

दरअसल मंडी शहर से करीब 15 किमी दूर चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर रोपवे का निर्माण पंडोह डैम से बगलामुखी मंदिर तक बनाया जाएगा. यह रोपवे 700 मीटर रोपवे पंडोह डैम बैक वाटर के ऊपर से होकर गुजरेगा. इसका रूट तैयार कर लिया गया है. रोपवे के बनने से मंदिर जाने के लिए 8.5 किलोमीटर सड़क मार्ग का सफर तय नहीं करना पड़ेगा. रोपवे न होने के कारण वर्तमान में पंडोह डैम से वाया कुकलाह होकर बगलामुखी माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को जाना पड़ता है.

मंदिर में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. मनाली-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे होने के कारण भी अधिकतर पर्यटक इस मंदिर तक नहीं पहुंच पाते हैं. रोपवे के तैयार हो जाने के बाद कुछ ही मिनट में श्रद्धालु राष्ट्रीय राजमार्ग से मंदिर में पहुंच पाएंगे. इस रोपवे की क्षमता प्रति घंटा 600 यात्रियों के लाने-पहुंचाने की होगी. इस परियोजना की लागत 44.23 करोड़ रुपये है. रोपवे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों पर एरियल ट्राम वे तकनीक से बनाया जाएगा. 21 अगस्त डापलमेर रोपवे इंडिया लिमिटेड को कार्य अवार्ड किया गया है.



धन के आभाव में सिरे नहीं चढ़ पा रहा आईएसबीटी चंबा-चौगान रोपवे: आईएसबीटी चंबा से चौगान को सीधे जोड़ने के लिए प्रदेश सरकार ने 250 मीटर लंबे रोपवे निर्माण की योजना बनाई है. वर्तमान में यह दूरी तय करने के लिए स्थानीय लोगों को सड़क मार्ग से 4.50 किमी का सफर तय करना पड़ता है. लेकिन अभी तक इस रोपवे निर्माण के लिए धन का प्रावधान ही नहीं हो पाया है. इसके लिए रोपवे कॉर्पोरेशन ने 20 करोड़ रुपये की पीपीआर तैयर करके बीबीएसएम एंड डीए को भेजने की योजना है ताकि 50:55 की भागेदारी से प्रोजेक्ट तैयार किया जा सके. लेकिन इसके लिए अभी विभाग की बीओडी की तरफ से मंजूरी नहीं मिली है. जिस कारण यह प्रोजेक्ट धन के आभाव के कारण फाइलों में ही अटका हुआ है.

दरअसल चंबा जिले में रोप-वे की योजना सिरे नहीं चढ़ सकी. बेशक रोप-वे की संभावना तलाशने के लिए एक साल से विभाग द्वारा सर्वे करवाया जा रहा है. इसके लिए चंबा पहुंची संयुक्त टीम ने मंगला और तडग़्रां साइट का निरीक्षण भी कर चुकी है. करीब आठ से दस साल पहले मंगला के लिए भी रोप-वे को लेकर सर्वे शुरू हुआ था लेकिन वर्तमान में भी यह योजना धरातल तक नहीं पहुंच पाई है. साथ ही तड़ग्रां को भी रोप-वे से जोड़ने के लिए एक साल पहले प्रयास शुरू हुए थे लेकिन निरीक्षण के बाद मामला ठंडे बस्ते में है.


एफसीए क्लीयरेंस के इंतजार में शुरू नहीं हो पाया रोहतांग रोपवे का निर्माण: रोहतांग रोपवे निर्माण के लिए भी लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा. रोहतांग रोपवे निर्माण कार्य की फाइल पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय देहरादून में लंबित चल रही थी. अब मंत्रालय ने 8.9899 हेक्टेयर भूमि पर प्रोजेक्ट लगाने की मंजूरी देने के साथ 16 शर्तें भी लगाई हैं जिनका निर्माता कंपनी को पालन करना होगा. लेकिन साथ ही मंत्रालय के अनुमति पत्र में साफ किया है कि अगर 16 शर्तों में एक भी शर्त का कार्यान्वयन न किए जाने पर मंत्रालय इस स्वीकृति को तत्काल निरस्त कर सकता है. इस रोपवे का निर्माण 584 करोड़ रुपये से किया जाना है. करीब दो करोड़ रुपये की राशि सरकार को जमा करवाई जा चुकी है. रोहतांग रोप-वे की कोठी से रोहतांग तक की लंबाई 7.1 किमी की होगी

ये भी पढ़ें: भारत के लिए खतरा बन रही हिमालय में ग्लेशियर से बनी झीलें, शोध में हुआ खुलासा

प्रदेश सरकार ने तैयार किया है 300 गांवों को रोपवे से जोड़ने का प्रस्ताव: हिमाचल सरकार प्रदेश में रोपवे को बढ़ावा देने के लिए सरकार रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम के तहत भूतल एवं परिवहन मंत्रालय को प्रदेश में रोपवे निर्माण के लिए शीघ्र ही प्रस्ताव भेजने की योजना बना रही है. केंद्र द्वारा बनाए इस सिस्टम का उद्देश्य कठिन एवं दुर्गम क्षेत्रों के लोगों के लिए आवागमन की व्यवस्था करना है. राज्य सचिवालय में तैयार किए जा रहे प्रस्ताव में केंद्र से बजट के प्रवधान का मामला उठाया जाएगा. इन क्षेत्रों को आज तक सड़क सुविधा से नहीं जोड़ा जा सका है. इनकी भौगोलिक परिस्थितियां भी इसका बड़ा कारण है.

प्रदेश के चंबा, किन्नौर, शिमला, कुल्लू, मंडी व सिरमौर जिलों में कई ऐसे गांव हैं जहां पहुंचने के लिए कोई सुविधा नहीं है. सड़क बनाना संभव नहीं है. अब भी कुल्लू जिले में एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर रहने वाले लोगों के रोप-वे ही साधन है. इससे कृषि व बागवानी उत्पाद सड़क तक पहुंचते हैं. यदि केंद्र सरकार सस्ती रोपवे प्रणाली को विकसित करने की हामी भरती है तो प्रदेश के छह जिलों के कई गांव में कृषि उत्पादों के साथ-साथ लोगों के आवागमन की भी सुविधा मिलेगी. रोप-वे बनानी वाली कंपनियां 10 करोड़ रुपये में एक किलोमीटर रोप-वे बनाकर दे देती हैं. यह सबसे सस्ता रोप-वे निर्माण माना जाता है. इसके अतिरिक्त अधिक सुविधाजनक और सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने वाली कंपनियां 40 से 50 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर में रोप-वे निर्माण करती हैं.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस ने जारी की स्टार प्रचारकों की सूची, छत्तीसगढ़-पंजाब के CM समेत ये बड़े नेता करेंगे प्रचार

शिमला: प्रदेश सरकार द्वारा रोपवे निर्माण को लेकर योजनाएं फिलहाल फाइलों में ही उलझी पड़ी हैं. केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति, ग्रीन ट्रिब्यूनल का सख्त रुख और प्रदेश सरकार के पास वित्तीय संसाधनों का आभाव होने के कारण प्रदेश के अधिकांश रोपवे परियोजनाओं का निर्माण कार्य शुरू ही नहीं हो पाया है. पहाड़ी प्रदेश होने के कारण यात्रियों और सामान के परिवहन के लिए रोपवे का उपयोग किया जा सकता है.

इसके अलावा उन छूटी हुई बस्तियों को जोड़ना है जहां सड़कों का निर्माण पर्यावरण और आर्थिक दृष्टि से संभव नहीं है. उन स्थानों को भी रोपवे से जोड़कर ग्रामीणों के जीवन को आसान बनाया जा सकता है. साथ ही पर्यटकों के आकर्षण के नए स्थानों को जोड़ना और रोजगार सृजन व आर्थिक विकास के लिए भी रोपवे को प्रयोग में लाया जा सकता है.

श्री नैना देवी से श्री आनंदपुर साहिब में रोप-वे निर्माण नहीं हो पाया शुरू: कई वर्ष बीत जाने के कारण भी श्री नैना देवी-श्री आनंदपुर साहिब पंजाब के बीच रोप-वे निर्माण का कार्य शुरू ही नहीं हो पाया है. हिमाचल और पंजाब सरकार के बीच हुए समझौता के बाद यहां पर रोप-वे बनाया जाना है, लेकिन अभी तक निर्माण कार्य आरंभ नहीं हो पाई है. इस रोपवे के निर्माण से प्रमुख शक्तिपीठ श्री नैना देवी तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को चढ़ाई नहीं चढ़नी पड़ेगी.

इस रोप-वे के तीन जगह टर्मिनल बनेंगे. रोप-वे के टर्मिनल प्रोजेक्ट का लोअर टर्मिनल पंजाब में श्री आनंदपुर साहिब के निकट रामपुर में, इंटरमीडिएट स्टेशन हिमाचल के टोबा में और अपर टर्मिनल प्वाइंट श्री नैना देवी में होगा. आनंदपुर साहिब और श्री नैना देवी के बीच रोपवे निर्माण की पहल 2012-13 में की गई थी. इसके लिए 14 एकड़ जमीन अधिकृत की गई थी, लेकिन किन्हीं परिस्थितियों में इसका निर्माण नहीं हो पाया.

इसके बाद साल 2018 में चंडीगढ़ में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति में इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे. पर्यटन विभाग ने दोनों धार्मिक स्थलों के बीच बनने वाले रोप-वे के लिए टेंडर आमंत्रित किए है. वहीं, प्रोजेक्ट का आवंटन होने के बाद इसे तीन साल में बनाने की शर्त रखी जाएगी. इस रोप-वे का निर्माण करने वाली कंपनी के पास यह 40 साल तक लीज पर रहेगा. इस 3,850 मीटर लंबे रोप-वे का निर्माण हिमाचल प्रदेश सरकार और पंजाब सरकार मिलकर करेगी. इसके निर्माण में 250 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. इस रोप-वे का निर्माण कॉमन यूरोपियन नॉर्मस के तहत किया जाएगा.



धर्मशाला-मैक्लोडगंज रोपवे का काम अभी भी अधूरा: धर्मशाला और मैक्लोडगंज को जोड़ने वाले रोपवे के पूरा होने की तारीख 4 बार आगे बढ़ने के बावजूद इसका काम अधर में ही लटका हुआ है. अधिकारियों का कहना है कि पहले कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन और अब कोरोना की दूसरी लहर के दौरान निर्माण कार्य में जुटे स्टाफ के कोरोना संक्रमित होने के चलते इसका निर्माण कार्य लटका हुआ है. धर्मशाला-मैकलोडगंज रोपवे बनाने के लिए शुरुआत वर्ष 2013 में शुरू हुई थी. 13 फरवरी 2015 को सरकार की अंतिम मंजूरी मिल गई थी.

सरकार द्वारा 8 जून 2015 को टीआरआईएल के पक्ष में एक पत्र जारी किया गया था. 16 जनवरी 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा परियोजना की आधारशिला रखी थी. परियोजना को 2018 के अंत तक पूरा किया जाना था, लेकिन फॉरेस्ट क्लीयरेंस में देरी के कारण स्थगित कर दिया गया था. बाद में इसे जून 2019 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया लेकिन निर्माण कार्य में हुई देरी के चलते इसे जून 2020 तक पूरा करना निर्धारित किया गया. इसके बाद प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य जून 2021 किया गया. तब भी कार्य पूरा नहीं हुआ इसके बाद प्रोजेक्ट की कंप्लीशन डेट 11 दिसंबर 2021 तक बढ़ाने का आग्रह किया गया है.



शिमला-हाटू पीक रोपवे के लिए 2019 से कोशिशें जारी: शिमला के समीप पहाड़ी की चोटी पर स्थित प्रसिद्ध हाटू मंदिर के लिए नारकंडा से रोपवे का निर्माण करने के लिए वैसे तो काफी पहले से कोशिशें जारी थी मगर वर्ष 2019 में सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी होने के बाद इसके टेंडर तक आमंत्रित कर दिए गए थे. 3.10 किमी लंबे इस रोपवे के निर्माण में करीब 173 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 20-21 के बजट में शिमला-हाटू पीक रोपवे को पीपीपी मोड में चलाने की बात कही है. जिसके बाद 10 फरवरी 2020 को टेंडर आमंत्रित किए गए हैं. लेकिन अभी तक टेंडर की जांच प्रक्रिया ही जारी है. इसके बाद भी अगर टेंडर प्रक्रिया सही पाई जाती है तो इसकी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी जाएगी. इसके बाद ही निर्माण स्थल पर कार्य शुरू किया जा सकेगा.


फॉरेस्ट क्लीयरेंस के कारण अटका पंडोह-बगलामुखी रोपवे निर्माण कार्य: पंडोह डैम से बगलामुखी माता मंदिर तक 750 मीटर लंबे रोपवे को धरातल पर उतारने के लिए रोपवे कारपोरेशन लिमिटेड कागजी कार्यों में ही उलझा है. वन विभाग ने रोपवे के निर्माण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली आधा हेक्टेयर वन भूमि को कारपोरेशन के नाम हस्तांतरित करने के लिए एफसीए केस पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय देहरादून भेज दिया है.

रोपवे निर्माण के लिए प्रदेश सरकार ने 44.23 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया है. वन विभाग ने हालांकि एक बार पहले फारेस्ट क्लीयरेंस के लिए केस बना कर देहरादून भेजा था. लेकिन कुछ आपत्तियों के कारण इसे सैद्धांतिक मंजूरी नहीं मिल पाई थी, जिसके बाद इन आपत्तियों को दूर कर दोबारा केस को फाइनल अप्रूवल के लिए भेजा गया. रोपवे बन जाने से एक घंटे में 500 लोगों को लाने ले जाने की सुविधा मिलेगी.

दरअसल मंडी शहर से करीब 15 किमी दूर चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर रोपवे का निर्माण पंडोह डैम से बगलामुखी मंदिर तक बनाया जाएगा. यह रोपवे 700 मीटर रोपवे पंडोह डैम बैक वाटर के ऊपर से होकर गुजरेगा. इसका रूट तैयार कर लिया गया है. रोपवे के बनने से मंदिर जाने के लिए 8.5 किलोमीटर सड़क मार्ग का सफर तय नहीं करना पड़ेगा. रोपवे न होने के कारण वर्तमान में पंडोह डैम से वाया कुकलाह होकर बगलामुखी माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को जाना पड़ता है.

मंदिर में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. मनाली-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे होने के कारण भी अधिकतर पर्यटक इस मंदिर तक नहीं पहुंच पाते हैं. रोपवे के तैयार हो जाने के बाद कुछ ही मिनट में श्रद्धालु राष्ट्रीय राजमार्ग से मंदिर में पहुंच पाएंगे. इस रोपवे की क्षमता प्रति घंटा 600 यात्रियों के लाने-पहुंचाने की होगी. इस परियोजना की लागत 44.23 करोड़ रुपये है. रोपवे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों पर एरियल ट्राम वे तकनीक से बनाया जाएगा. 21 अगस्त डापलमेर रोपवे इंडिया लिमिटेड को कार्य अवार्ड किया गया है.



धन के आभाव में सिरे नहीं चढ़ पा रहा आईएसबीटी चंबा-चौगान रोपवे: आईएसबीटी चंबा से चौगान को सीधे जोड़ने के लिए प्रदेश सरकार ने 250 मीटर लंबे रोपवे निर्माण की योजना बनाई है. वर्तमान में यह दूरी तय करने के लिए स्थानीय लोगों को सड़क मार्ग से 4.50 किमी का सफर तय करना पड़ता है. लेकिन अभी तक इस रोपवे निर्माण के लिए धन का प्रावधान ही नहीं हो पाया है. इसके लिए रोपवे कॉर्पोरेशन ने 20 करोड़ रुपये की पीपीआर तैयर करके बीबीएसएम एंड डीए को भेजने की योजना है ताकि 50:55 की भागेदारी से प्रोजेक्ट तैयार किया जा सके. लेकिन इसके लिए अभी विभाग की बीओडी की तरफ से मंजूरी नहीं मिली है. जिस कारण यह प्रोजेक्ट धन के आभाव के कारण फाइलों में ही अटका हुआ है.

दरअसल चंबा जिले में रोप-वे की योजना सिरे नहीं चढ़ सकी. बेशक रोप-वे की संभावना तलाशने के लिए एक साल से विभाग द्वारा सर्वे करवाया जा रहा है. इसके लिए चंबा पहुंची संयुक्त टीम ने मंगला और तडग़्रां साइट का निरीक्षण भी कर चुकी है. करीब आठ से दस साल पहले मंगला के लिए भी रोप-वे को लेकर सर्वे शुरू हुआ था लेकिन वर्तमान में भी यह योजना धरातल तक नहीं पहुंच पाई है. साथ ही तड़ग्रां को भी रोप-वे से जोड़ने के लिए एक साल पहले प्रयास शुरू हुए थे लेकिन निरीक्षण के बाद मामला ठंडे बस्ते में है.


एफसीए क्लीयरेंस के इंतजार में शुरू नहीं हो पाया रोहतांग रोपवे का निर्माण: रोहतांग रोपवे निर्माण के लिए भी लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा. रोहतांग रोपवे निर्माण कार्य की फाइल पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय देहरादून में लंबित चल रही थी. अब मंत्रालय ने 8.9899 हेक्टेयर भूमि पर प्रोजेक्ट लगाने की मंजूरी देने के साथ 16 शर्तें भी लगाई हैं जिनका निर्माता कंपनी को पालन करना होगा. लेकिन साथ ही मंत्रालय के अनुमति पत्र में साफ किया है कि अगर 16 शर्तों में एक भी शर्त का कार्यान्वयन न किए जाने पर मंत्रालय इस स्वीकृति को तत्काल निरस्त कर सकता है. इस रोपवे का निर्माण 584 करोड़ रुपये से किया जाना है. करीब दो करोड़ रुपये की राशि सरकार को जमा करवाई जा चुकी है. रोहतांग रोप-वे की कोठी से रोहतांग तक की लंबाई 7.1 किमी की होगी

ये भी पढ़ें: भारत के लिए खतरा बन रही हिमालय में ग्लेशियर से बनी झीलें, शोध में हुआ खुलासा

प्रदेश सरकार ने तैयार किया है 300 गांवों को रोपवे से जोड़ने का प्रस्ताव: हिमाचल सरकार प्रदेश में रोपवे को बढ़ावा देने के लिए सरकार रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम के तहत भूतल एवं परिवहन मंत्रालय को प्रदेश में रोपवे निर्माण के लिए शीघ्र ही प्रस्ताव भेजने की योजना बना रही है. केंद्र द्वारा बनाए इस सिस्टम का उद्देश्य कठिन एवं दुर्गम क्षेत्रों के लोगों के लिए आवागमन की व्यवस्था करना है. राज्य सचिवालय में तैयार किए जा रहे प्रस्ताव में केंद्र से बजट के प्रवधान का मामला उठाया जाएगा. इन क्षेत्रों को आज तक सड़क सुविधा से नहीं जोड़ा जा सका है. इनकी भौगोलिक परिस्थितियां भी इसका बड़ा कारण है.

प्रदेश के चंबा, किन्नौर, शिमला, कुल्लू, मंडी व सिरमौर जिलों में कई ऐसे गांव हैं जहां पहुंचने के लिए कोई सुविधा नहीं है. सड़क बनाना संभव नहीं है. अब भी कुल्लू जिले में एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर रहने वाले लोगों के रोप-वे ही साधन है. इससे कृषि व बागवानी उत्पाद सड़क तक पहुंचते हैं. यदि केंद्र सरकार सस्ती रोपवे प्रणाली को विकसित करने की हामी भरती है तो प्रदेश के छह जिलों के कई गांव में कृषि उत्पादों के साथ-साथ लोगों के आवागमन की भी सुविधा मिलेगी. रोप-वे बनानी वाली कंपनियां 10 करोड़ रुपये में एक किलोमीटर रोप-वे बनाकर दे देती हैं. यह सबसे सस्ता रोप-वे निर्माण माना जाता है. इसके अतिरिक्त अधिक सुविधाजनक और सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने वाली कंपनियां 40 से 50 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर में रोप-वे निर्माण करती हैं.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस ने जारी की स्टार प्रचारकों की सूची, छत्तीसगढ़-पंजाब के CM समेत ये बड़े नेता करेंगे प्रचार

Last Updated : Jan 4, 2022, 3:26 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.