शिमला: आज परशुराम जयंती है और पूरे देशभर में इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. हर साल अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं.
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रामपुर में भी ब्राह्मण सभा द्वारा अयोध्या नाथ मंदिर में परशुराम राम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई गई. इसी बीच ब्राह्मण सभा ने ब्लॉक स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें रामपुर क्षेत्र के लोगों ने भाग लिया.
भगवान परशुराम से जुड़ी पौराणिक कथाएं
पौराणिक कथाओं भगवान परशुराम को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि एक बार परशुराम ने क्रोध में आकर भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था. इसके अलावा भी कई ऐसी घटनाएं हैं जिनमें परशुराम के क्रोध की कहानियां मिलती हैं. कहा जाता है कि इनके क्रोध से सभी देवी-देवता भयभीत रहा करते थे.
मान्यता है कि पराक्रम के प्रतीक भगवान परशुराम का जन्म छह उच्च ग्रहों के योग में हुआ, इसलिए वह तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी महापुरुष बने. प्रतापी एवं माता-पिता भक्त परशुराम ने जहां पिता की आज्ञा से माता का गला काट दिया, वहीं, पिता से माता को जीवित करने का वरदान भी मांग लिया.
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कहा जाता है कि भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं, जिन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था. परशुराम ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था. उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि हैहय वंश के राजा सहस्त्रार्जुन ने अपने बल और घमंड की वजह से ब्राह्राणों और ऋषियों पर अत्याचार किया था.
एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना समेत भगवान परशुराम के पिता जमदग्रि मुनी के आश्रम पहुंच गया. मुनि ने कामधेनु गाय के दूध से पूरी सेना का आदर से स्वागत किया, लेकिन चमत्कारी कामधेनु की आलौकिकता को देखते हुए उसने अपने बल का प्रयोग कर छीन लिया.
उसके बाद जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन को मार डाला. उसके बाद सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए परशुराम के पिता का वध कर दिया और माता-पिता के वियोग में चिता पर सती हो गईं.
इसके बाद पिता के शरीर पर 21 घाव को देखते हुए परशुराम ने शपथ ली थी कि वह इस धरती से समस्त क्षत्रिय वंशों का संहार कर देंगे. इसके बाद पूरे 21 बार उन्होंने पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की.
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हिंदू धर्म शास्त्रों में लिखा है कि भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन हुआ था. देवराज इन्द्र ने भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि के पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर ऋषि की पत्नी रेणुका को परशुराम के जन्म का आशीर्वाद दिया था. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन ही परशुराम जयंती को मनाया जाता है.