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हिमाचल में हर साल बिकती है 1500 करोड़ की दारू, पांच साल पहले सरकार ने खुद संभाल लिया था शराब का थोक कारोबार 

हिमाचल में आबकारी एवं कराधान विभाग (Excise and Taxation Department in Himachal) शराब की बिक्री से करोड़ों रुपये का राजस्व कमाता है. एक सर्वे के मुताबिक हिमाचल में हर साल औसतन 1500 करोड़ रुपये की शराब खपती है. पूर्व में वीरभद्र सिंह के कार्यकाल के दौरान तो सरकार ने खुद शराब का कारोबार अपने हाथ में ले लिया था.

liquor business in himachal
हिमाचल में शराब कारोबार.
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Published : Sep 24, 2021, 6:44 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 7:31 PM IST

शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बागवानी और ऊर्जा के क्षेत्र में बेशक शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए मजबूरी में सरकार को शराब की बिक्री से राजस्व कमाना पड़ता है. हिमाचल में आबकारी एवं कराधान विभाग (Excise and Taxation Department in Himachal) शराब की बिक्री से करोड़ों रुपये का राजस्व कमाता है. देश के कुछ राज्यों ने शराबबंदी जैसे कदम उठाए लेकिन हिमाचल चाहकर भी शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व से मुंह नहीं मोड़ सकता. अब बात आंकड़ों की करें तो हिमाचल प्रदेश में हर साल 1500 करोड़ रुपये की शराब बिकती है.

एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि पूर्व में वीरभद्र सिंह के कार्यकाल के दौरान तो सरकार ने खुद शराब का कारोबार अपने हाथ में ले लिया था. एक चौंकाने वाले फैसले के अनुसार तब हिमाचल ने अपनी आबकारी नीति बदली और शराब की थोक बिक्री की बागडोर अपने हाथ में रख ली. तब शराब कारोबार के लिए सरकार ने हिमाचल बेवरेजेज लिमिटेड (Himachal Pradesh Beverages Limited) नाम से कंपनी का गठन किया था यही नहीं तब सरकार ने एक सीनियर आईएएस अफसर को इस कारोबार का जिम्मा सौंप दिया था. तय किया गया था कि सरकार शराब कारखानों से खुद अपने स्तर पर शराब खरीदेगी और आगे बेचेगी.

इससे पूर्व यानी वर्ष 2016 से पहले हिमाचल में शराब ठेके पहले पर्ची सिस्टम के जरिए ही नीलाम कर दिए जाते थे. इससे कुछ ही ठेकेदारों की मोनोपली बन रही थी. सरकार ने उस दौरान ठेके नीलाम किए. इससे सरकार को करीब 300 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी. बाद में सत्ता में आई जयराम सरकार ने पूर्व सरकार की आबकारी नीति को बदल दिया था. तब सरकार ने खुद को शराब के थोक कारोबार से अलग कर लिया था.

हिमाचल में हर साल औसतन 1500 करोड़ का कारोबार: अब चर्चा करते हैं हिमाचल में शराबनोशी की. कुछ समय पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) के संयुक्त सर्वे में यह सामने आया था कि हिमाचल में हर साल औसतन 1500 करोड़ रुपये की शराब खपती है. सर्वे के मुताबिक औसत के लिहाज से हिमाचल का प्रत्येक निवासी प्रति माह शराब के सेवन पर औसतन 178 रुपये खर्च करता है. यदि अंग्रेजी शराब के लिहाज से देखा जाए तो यह दर 98 रुपये और देशी शराब की औसत दर 57 रुपये है. बाकी बचे 23 रुपये अन्य तरह की लोकल दारू आदि पर खर्च होते हैं.

अंग्रेजी शराब पीने के मामले में देश में पांचवें नंबर पर हिमाचल: अंग्रेजी शराब पीने के मामले में हिमाचल पूरे भारत देश में पांचवें और देशी शराब पीने में तीसरे नंबर पर है. हैरानी की बात है कि भारत में इस मामले में छोटा राज्य अरुणाचल पहले और पंजाब दूसरे नंबर पर है. हिमाचल प्रदेश की शराब की सालाना खपत नौ करोड़ बोतलों की है. इस तरह से यदि एक महीने का हिसाब लगाएं तो हिमाचल में हर माह 75 लाख और प्रति दिन के नजरिए से देखें तो यहां लोग ढाई लाख बोतलें शराब की पी जाते हैं. सत्तर लाख की आबादी वाले हिमाचल में शराब पीने वालों की अनुमानित संख्या 15 लाख के आसपास है. शराब पीने का आदी एक इनसान महीने में पांच बोतलें शराब पीता है.

ये भी पढ़ें: जयराम कैबिनेट का बड़ा फैसला, 27 सितंबर से खुलेंगे 9वीं से 12वीं तक के स्कूल

हिमाचल में 1900 वाइन शॉप: एक बोतल का औसत मूल्य 166 रुपये के आस पास बैठता है (थोक मूल्य औसत ) इस तरह महीने में 830 और साल में 9960 रुपये की शराब एक व्यक्ति पी जाता है. राज्य में इस समय 1900 के करीब वाइन शॉप्स के जरिए शराब की बिक्री होती है. देशी शराब की सबसे अधिक दुकानें हैं. इनकी संख्या 1550 के करीब है. इसके अलावा 357 अंग्रेजी शराब की दुकानें हैं. हर शराब दुकान पर औसतन 135 शराब की बोतलें हर दिन बिकती हैं ये वो आंकड़े हैं, जो वैध माने जाते हैं. इसके अलावा स्थानीय स्तर पर ग्रामीण लोकल शराब निकालते हैं. इसे झोल व अंगूरी कहा जाता है. हिमाचल में हर साल अवैध शराब की भट्टियां पकड़ी जाती हैं. लाखों लीटर लाहन नष्ट की जाती है.

अक्सर मीडिया में ग्रामीण इलाकों में शराब ठेकों के खिलाफ महिलाओं के प्रदर्शन की खबरें सुर्खियां बनती हैं. पूर्व आईएएस ऑफिसर और वित्त विभाग संभाल चुके केआर भारती मानते हैं कि नशा किसी भी समाज के लिए घातक है, लेकिन सरकारों की यह मजबूरी रहती है कि उन्हें राजस्व भी अर्जित करना होता है. शराब की बिक्री रोकी जानी चाहिए, शराबबंदी होनी चाहिए या नहीं, यह एक सामाजिक बहस का मुद्दा है. देखा गया है कि जिन राज्यों में शराबबंदी लागू हुई वहां शराब का अवैध कारोबार फलने-फूलने लगा. सामाजिक कार्यकर्ता जीयानंद शर्मा का मानना है कि इस विषय में एक सर्वमान्य निर्णय लेकर कुछ ऐसा प्रावधान किया जाए ताकि शराब की बिक्री सीमित हो सके.

ये भी पढ़ें: पीयूष गोयल बोले- CM जयराम से है तीन दशक का रिश्ता, सुबाथू में रहती थीं मेरी दादी

शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बागवानी और ऊर्जा के क्षेत्र में बेशक शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए मजबूरी में सरकार को शराब की बिक्री से राजस्व कमाना पड़ता है. हिमाचल में आबकारी एवं कराधान विभाग (Excise and Taxation Department in Himachal) शराब की बिक्री से करोड़ों रुपये का राजस्व कमाता है. देश के कुछ राज्यों ने शराबबंदी जैसे कदम उठाए लेकिन हिमाचल चाहकर भी शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व से मुंह नहीं मोड़ सकता. अब बात आंकड़ों की करें तो हिमाचल प्रदेश में हर साल 1500 करोड़ रुपये की शराब बिकती है.

एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि पूर्व में वीरभद्र सिंह के कार्यकाल के दौरान तो सरकार ने खुद शराब का कारोबार अपने हाथ में ले लिया था. एक चौंकाने वाले फैसले के अनुसार तब हिमाचल ने अपनी आबकारी नीति बदली और शराब की थोक बिक्री की बागडोर अपने हाथ में रख ली. तब शराब कारोबार के लिए सरकार ने हिमाचल बेवरेजेज लिमिटेड (Himachal Pradesh Beverages Limited) नाम से कंपनी का गठन किया था यही नहीं तब सरकार ने एक सीनियर आईएएस अफसर को इस कारोबार का जिम्मा सौंप दिया था. तय किया गया था कि सरकार शराब कारखानों से खुद अपने स्तर पर शराब खरीदेगी और आगे बेचेगी.

इससे पूर्व यानी वर्ष 2016 से पहले हिमाचल में शराब ठेके पहले पर्ची सिस्टम के जरिए ही नीलाम कर दिए जाते थे. इससे कुछ ही ठेकेदारों की मोनोपली बन रही थी. सरकार ने उस दौरान ठेके नीलाम किए. इससे सरकार को करीब 300 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी. बाद में सत्ता में आई जयराम सरकार ने पूर्व सरकार की आबकारी नीति को बदल दिया था. तब सरकार ने खुद को शराब के थोक कारोबार से अलग कर लिया था.

हिमाचल में हर साल औसतन 1500 करोड़ का कारोबार: अब चर्चा करते हैं हिमाचल में शराबनोशी की. कुछ समय पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) के संयुक्त सर्वे में यह सामने आया था कि हिमाचल में हर साल औसतन 1500 करोड़ रुपये की शराब खपती है. सर्वे के मुताबिक औसत के लिहाज से हिमाचल का प्रत्येक निवासी प्रति माह शराब के सेवन पर औसतन 178 रुपये खर्च करता है. यदि अंग्रेजी शराब के लिहाज से देखा जाए तो यह दर 98 रुपये और देशी शराब की औसत दर 57 रुपये है. बाकी बचे 23 रुपये अन्य तरह की लोकल दारू आदि पर खर्च होते हैं.

अंग्रेजी शराब पीने के मामले में देश में पांचवें नंबर पर हिमाचल: अंग्रेजी शराब पीने के मामले में हिमाचल पूरे भारत देश में पांचवें और देशी शराब पीने में तीसरे नंबर पर है. हैरानी की बात है कि भारत में इस मामले में छोटा राज्य अरुणाचल पहले और पंजाब दूसरे नंबर पर है. हिमाचल प्रदेश की शराब की सालाना खपत नौ करोड़ बोतलों की है. इस तरह से यदि एक महीने का हिसाब लगाएं तो हिमाचल में हर माह 75 लाख और प्रति दिन के नजरिए से देखें तो यहां लोग ढाई लाख बोतलें शराब की पी जाते हैं. सत्तर लाख की आबादी वाले हिमाचल में शराब पीने वालों की अनुमानित संख्या 15 लाख के आसपास है. शराब पीने का आदी एक इनसान महीने में पांच बोतलें शराब पीता है.

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हिमाचल में 1900 वाइन शॉप: एक बोतल का औसत मूल्य 166 रुपये के आस पास बैठता है (थोक मूल्य औसत ) इस तरह महीने में 830 और साल में 9960 रुपये की शराब एक व्यक्ति पी जाता है. राज्य में इस समय 1900 के करीब वाइन शॉप्स के जरिए शराब की बिक्री होती है. देशी शराब की सबसे अधिक दुकानें हैं. इनकी संख्या 1550 के करीब है. इसके अलावा 357 अंग्रेजी शराब की दुकानें हैं. हर शराब दुकान पर औसतन 135 शराब की बोतलें हर दिन बिकती हैं ये वो आंकड़े हैं, जो वैध माने जाते हैं. इसके अलावा स्थानीय स्तर पर ग्रामीण लोकल शराब निकालते हैं. इसे झोल व अंगूरी कहा जाता है. हिमाचल में हर साल अवैध शराब की भट्टियां पकड़ी जाती हैं. लाखों लीटर लाहन नष्ट की जाती है.

अक्सर मीडिया में ग्रामीण इलाकों में शराब ठेकों के खिलाफ महिलाओं के प्रदर्शन की खबरें सुर्खियां बनती हैं. पूर्व आईएएस ऑफिसर और वित्त विभाग संभाल चुके केआर भारती मानते हैं कि नशा किसी भी समाज के लिए घातक है, लेकिन सरकारों की यह मजबूरी रहती है कि उन्हें राजस्व भी अर्जित करना होता है. शराब की बिक्री रोकी जानी चाहिए, शराबबंदी होनी चाहिए या नहीं, यह एक सामाजिक बहस का मुद्दा है. देखा गया है कि जिन राज्यों में शराबबंदी लागू हुई वहां शराब का अवैध कारोबार फलने-फूलने लगा. सामाजिक कार्यकर्ता जीयानंद शर्मा का मानना है कि इस विषय में एक सर्वमान्य निर्णय लेकर कुछ ऐसा प्रावधान किया जाए ताकि शराब की बिक्री सीमित हो सके.

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Last Updated : Jan 4, 2022, 7:31 PM IST
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