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सियासत के रंग: लोअर हिमाचल और अप्पर हिमाचल के बाद अब ठेठ सिराजी बनाम ठेठ बुशहरी - Siraji and Bushehari

हिमाचल में चुनावी साल में सियासत दिन-प्रति-दिन नए रंग दिखा रही है. हिमाचल में क्षेत्रीय भावनाओं का उभार राजनीतिक हित के लिए किया जाने लगा है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शिमला के सुन्नी में एक जनसभा में खुद को ठेठ सिराजी (CM Jairam called himself Siraji )बताया. वे चार दिन पहले शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के तहत सुन्नी इलाके के जलोग गांव में सभा को संबोधित कर रहे थे.वहीं, सके बाद शिमला ग्रामीण के मौजूदा विधायक विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस के रामपुर में हुए आयोजन में खुद को ठेठ बुशहरी (Vikramaditya called himself Bushhari) कहा.

सियासत के रंग
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Published : Jun 9, 2022, 4:58 PM IST

शिमला: हिमाचल में चुनावी साल में सियासत दिन-प्रति-दिन नए रंग दिखा रही है. हिमाचल में क्षेत्रीय भावनाओं का उभार राजनीतिक हित के लिए किया जाने लगा है. विकास के वादे और दावे करने वाले नेता अब क्षेत्रवाद की बात करने लगे हैं और खुद को एक क्षेत्र विशेष का बताकर जनता की तालियां लूट रहे हैं. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शिमला के सुन्नी में एक जनसभा में खुद को ठेठ सिराजी (CM Jairam called himself Siraji) बताया. वे पहले शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के तहत सुन्नी इलाके के जलोग गांव में सभा को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने अपने करीब आधे घंटे के संबोधन में कई बार सिराज और सिराजी के बारे में बात की. लेकिन ये तो सिर्फ शुरुआत थी क्योंकि इसके बाद कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने भी खुद को एक क्षेत्र विशेष से जोड़ दिया. कहीं ऐसा ना हो कि चुनावी साल में जयराम ठाकुर बनाम विक्रमादित्य सिंह (jairam thakur vs vikramaditya singh) की इस जंग ने हिमाचल की सियासत में क्षेत्रवाद का नया मोड़ ना ला दे.

सिराजी बहुत आगे बढ़ गए: जयराम ठाकुर मंडी की सिराज सीट से चुनकार आते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि कैसे सिराज को कभी पिछड़ेपन का पर्याय माना जाता था, लेकिन अब सिराजी बहुत आगे बढ़ गए हैं. उन्होंने कहा कि मसां मसां (बड़ी मुश्किल से) एक सिराजी मुख्यमंत्री बना है. अब हिमाचल में डबल इंजन की सरकार पांच साल नहीं इससे भी अधिक लंबी चलनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में बार-बार सिराजी शब्द का प्रयोग किया. उन्होंने जलोग में शिमला ग्रामीण विधानसभा की जनता का आह्वान किया कि सिराजी की बात सुन लेना इस बार. खास बात ये है कि वो शिमला ग्रामीण के उस इलाके में बोल रहे थे जहां से कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह विधायक हैं.

विक्रमादित्य सिंह ने खुद को ठेठ बुशहरी बताया: जयराम ठाकुर के बयान के बाद विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस के रामपुर में हुए आयोजन में खुद को ठेठ बुशहरी बता दिया. उन्होंने कहा कि वे ठेठ बुशहरी और उससे ऊपर ठेठ हिमाचली हैं. इस तरह हिमाचल में एक बार फिर क्षेत्रीय अस्मिता और क्षेत्रीय भावनाओं का ज्वार उठाया जाने लगा है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी नवनीत शर्मा के अनुसार ये सही है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना हमारी पहचान होती है, लेकिन उसे हमारी सीमा नहीं होना चाहिए.

कभी आलू-सेब तो कभी टोपियों का दौर: हिमाचल में पहले लोअर और अप्पर हिमाचल का नारा चलता था. कभी आलू और सेब पर बयानों की तलवारें खिंचती थी. हालांकि .बाद में समाज को ये अहसास हुआ कि जितना जरूरी आलू है, उतना ही जरूरी सेब भी और आम के साथ ही अन्य सिट्रिक फ्रूट. खैर, इनके बाद दौर आया टोपियों का हिमाचल की सियासत में टोपियों से पहचान होने लगी. कांग्रेस की सरकार के समय सभी के सिर पर हरी टोपी सज जाती थी और भाजपा की सरकार आने पर टोपी का रंग मैरून हो जाता था. आलम ये है कि एक बार एक आयोजन में कांग्रेस के सीनियर लीडर कौल सिंह ठाकुर ने कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता स्व. वीरभद्र सिंह को मैरून रंग की टोपी भेंट की तो वीरभद्र सिंह ने उसे झटक दिया था.

मंडी को मिली सरदारी: वर्ष 2017 में जयराम ठाकुर हिमाचल के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने टोपियों की सियासत को करीब-करीब खत्म किया. उन्होंने सभी तरह की टोपियों को पहना. उन्होंने कहा भी टोपियों की सियासत खत्म होनी चाहिए, सभी टोपियां हमारी हैं, लेकिन अब चुनावी साल में एक नया सियासी रंग हिमाचल की राजनीति में चर्चा का विषय बन रहा है. ये पहली बार है कि मंडी जिले को प्रदेश की सरदारी मिली है. इससे पहले हिमाचल प्रदेश में सीएम या तो शिमला जिले से रहे या फिर लोअर हिमाचल से. हिमाचल निर्माता और प्रदेश के पहले सीएम सिरमौर जिले से थे. वीरभद्र सिंह व रामलाल ठाकुर अप्पर शिमला से संबंध रखते थे. वीरभद्र सिंह सर्वाधिक छह बार हिमाचल के सीएम रहे. शांता कुमार व प्रेम कुमार धूमल दो-दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने जो क्रमश: कांगड़ा और हमीरपुर जिले से संबंध रखते हैं.

मंडी से पंडित सुखराम व कौल सिंह की दावेदारी रही, लेकिन सीएम बनने का सौभाग्य जयराम ठाकुर को मिला. जयराम ठाकुर मंडी जिले के दुर्गम इलाके सिराज से आते हैं. सीएम जयराम ठाकुर ने सुन्नी के जलोग की जनसभा में खुद स्वीकार किया कि कभी सिराज शब्द पिछड़ेपन का पर्याय माना जाता था. अब सिराजी शब्द नेतृत्वकर्ता का प्रतीक है. जनसभा में सीएम जयराम ठाकुर ने सिराजी गौरव का बखान जमकर किया. वहीं, विक्रमादित्य सिंह ने खुद को बुशहर की रियासत और वहां की परंपरा से जोड़ा. लेकिन साथ में ये भी कहा कि वे ठेठ हिमाचली भी हैं.

चुनावी फिजा में सिराजी और बुशहरी की चर्चा: वरिष्ठ मीडियाकर्मी नवनीत शर्मा के अनुसार किसी भी क्षेत्र विशेष से संबंध और पहचान हमारी संभावना होनी चाहिए न कि सीमा. राजनीति में क्षेत्रीय भावनाओं का उभार किसी मकसद से नहीं होना चाहिए. ये समय प्रदेश के चप्पे-चप्पे के स्वाभिमान और पहचान का बनना चाहिए न कि किसी सीमा में कैद होना चाहिए. खैर, अब हिमाचल में चुनावी सरगर्मियां जोर पकड़ रही हैं. ऐसे में नए-नए नारे और क्षेत्रीय पहचान से जुड़े नए शब्द भी सुनने को मिलेंगे. भाजपा हाईकमान ने जयराम ठाकुर के रूप में सीएम फेस घोषित किया है. यदि कांग्रेस चुनावी रण में जीत हासिल करती है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि सीएम पद किस जिले के हिस्से आता है. फिलहाल तो चुनावी फिजा में सिराजी और बुशहरी (Siraji and Bushehari) की चर्चा चल रही है.

ये भी पढ़ें : BJP Mission Repeat 2022: पन्ना और पंच परमेश्वर सम्मेलनों पर रहेगा फोकस, 32 लाख लोगों तक पहुंचने का टारगेट तय

शिमला: हिमाचल में चुनावी साल में सियासत दिन-प्रति-दिन नए रंग दिखा रही है. हिमाचल में क्षेत्रीय भावनाओं का उभार राजनीतिक हित के लिए किया जाने लगा है. विकास के वादे और दावे करने वाले नेता अब क्षेत्रवाद की बात करने लगे हैं और खुद को एक क्षेत्र विशेष का बताकर जनता की तालियां लूट रहे हैं. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शिमला के सुन्नी में एक जनसभा में खुद को ठेठ सिराजी (CM Jairam called himself Siraji) बताया. वे पहले शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के तहत सुन्नी इलाके के जलोग गांव में सभा को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने अपने करीब आधे घंटे के संबोधन में कई बार सिराज और सिराजी के बारे में बात की. लेकिन ये तो सिर्फ शुरुआत थी क्योंकि इसके बाद कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने भी खुद को एक क्षेत्र विशेष से जोड़ दिया. कहीं ऐसा ना हो कि चुनावी साल में जयराम ठाकुर बनाम विक्रमादित्य सिंह (jairam thakur vs vikramaditya singh) की इस जंग ने हिमाचल की सियासत में क्षेत्रवाद का नया मोड़ ना ला दे.

सिराजी बहुत आगे बढ़ गए: जयराम ठाकुर मंडी की सिराज सीट से चुनकार आते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि कैसे सिराज को कभी पिछड़ेपन का पर्याय माना जाता था, लेकिन अब सिराजी बहुत आगे बढ़ गए हैं. उन्होंने कहा कि मसां मसां (बड़ी मुश्किल से) एक सिराजी मुख्यमंत्री बना है. अब हिमाचल में डबल इंजन की सरकार पांच साल नहीं इससे भी अधिक लंबी चलनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में बार-बार सिराजी शब्द का प्रयोग किया. उन्होंने जलोग में शिमला ग्रामीण विधानसभा की जनता का आह्वान किया कि सिराजी की बात सुन लेना इस बार. खास बात ये है कि वो शिमला ग्रामीण के उस इलाके में बोल रहे थे जहां से कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह विधायक हैं.

विक्रमादित्य सिंह ने खुद को ठेठ बुशहरी बताया: जयराम ठाकुर के बयान के बाद विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस के रामपुर में हुए आयोजन में खुद को ठेठ बुशहरी बता दिया. उन्होंने कहा कि वे ठेठ बुशहरी और उससे ऊपर ठेठ हिमाचली हैं. इस तरह हिमाचल में एक बार फिर क्षेत्रीय अस्मिता और क्षेत्रीय भावनाओं का ज्वार उठाया जाने लगा है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी नवनीत शर्मा के अनुसार ये सही है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना हमारी पहचान होती है, लेकिन उसे हमारी सीमा नहीं होना चाहिए.

कभी आलू-सेब तो कभी टोपियों का दौर: हिमाचल में पहले लोअर और अप्पर हिमाचल का नारा चलता था. कभी आलू और सेब पर बयानों की तलवारें खिंचती थी. हालांकि .बाद में समाज को ये अहसास हुआ कि जितना जरूरी आलू है, उतना ही जरूरी सेब भी और आम के साथ ही अन्य सिट्रिक फ्रूट. खैर, इनके बाद दौर आया टोपियों का हिमाचल की सियासत में टोपियों से पहचान होने लगी. कांग्रेस की सरकार के समय सभी के सिर पर हरी टोपी सज जाती थी और भाजपा की सरकार आने पर टोपी का रंग मैरून हो जाता था. आलम ये है कि एक बार एक आयोजन में कांग्रेस के सीनियर लीडर कौल सिंह ठाकुर ने कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता स्व. वीरभद्र सिंह को मैरून रंग की टोपी भेंट की तो वीरभद्र सिंह ने उसे झटक दिया था.

मंडी को मिली सरदारी: वर्ष 2017 में जयराम ठाकुर हिमाचल के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने टोपियों की सियासत को करीब-करीब खत्म किया. उन्होंने सभी तरह की टोपियों को पहना. उन्होंने कहा भी टोपियों की सियासत खत्म होनी चाहिए, सभी टोपियां हमारी हैं, लेकिन अब चुनावी साल में एक नया सियासी रंग हिमाचल की राजनीति में चर्चा का विषय बन रहा है. ये पहली बार है कि मंडी जिले को प्रदेश की सरदारी मिली है. इससे पहले हिमाचल प्रदेश में सीएम या तो शिमला जिले से रहे या फिर लोअर हिमाचल से. हिमाचल निर्माता और प्रदेश के पहले सीएम सिरमौर जिले से थे. वीरभद्र सिंह व रामलाल ठाकुर अप्पर शिमला से संबंध रखते थे. वीरभद्र सिंह सर्वाधिक छह बार हिमाचल के सीएम रहे. शांता कुमार व प्रेम कुमार धूमल दो-दो बार हिमाचल के मुख्यमंत्री बने जो क्रमश: कांगड़ा और हमीरपुर जिले से संबंध रखते हैं.

मंडी से पंडित सुखराम व कौल सिंह की दावेदारी रही, लेकिन सीएम बनने का सौभाग्य जयराम ठाकुर को मिला. जयराम ठाकुर मंडी जिले के दुर्गम इलाके सिराज से आते हैं. सीएम जयराम ठाकुर ने सुन्नी के जलोग की जनसभा में खुद स्वीकार किया कि कभी सिराज शब्द पिछड़ेपन का पर्याय माना जाता था. अब सिराजी शब्द नेतृत्वकर्ता का प्रतीक है. जनसभा में सीएम जयराम ठाकुर ने सिराजी गौरव का बखान जमकर किया. वहीं, विक्रमादित्य सिंह ने खुद को बुशहर की रियासत और वहां की परंपरा से जोड़ा. लेकिन साथ में ये भी कहा कि वे ठेठ हिमाचली भी हैं.

चुनावी फिजा में सिराजी और बुशहरी की चर्चा: वरिष्ठ मीडियाकर्मी नवनीत शर्मा के अनुसार किसी भी क्षेत्र विशेष से संबंध और पहचान हमारी संभावना होनी चाहिए न कि सीमा. राजनीति में क्षेत्रीय भावनाओं का उभार किसी मकसद से नहीं होना चाहिए. ये समय प्रदेश के चप्पे-चप्पे के स्वाभिमान और पहचान का बनना चाहिए न कि किसी सीमा में कैद होना चाहिए. खैर, अब हिमाचल में चुनावी सरगर्मियां जोर पकड़ रही हैं. ऐसे में नए-नए नारे और क्षेत्रीय पहचान से जुड़े नए शब्द भी सुनने को मिलेंगे. भाजपा हाईकमान ने जयराम ठाकुर के रूप में सीएम फेस घोषित किया है. यदि कांग्रेस चुनावी रण में जीत हासिल करती है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि सीएम पद किस जिले के हिस्से आता है. फिलहाल तो चुनावी फिजा में सिराजी और बुशहरी (Siraji and Bushehari) की चर्चा चल रही है.

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