शिमला: संविधान किसी भी लोकतांत्रिक देश की आत्मा है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के संविधान की पवित्रता से जुड़ी छोटी से छोटी बात भी बड़े महत्व की है. ब्रिटिश काल में भारत (India during the British period) की समर कैपिटल शिमला (Summer Capital Shimla) में भारतीय संविधान से जुड़ा एक अनमोल खजाना है. यहां अंग्रेजी हुकूमत के समय की प्रिंटिंग प्रेस में संविधान की पहली मुद्रित प्रति यानी फर्स्ट प्रिंटेड कॉपी (First Printed copy of constitution) सहेज कर रखी गई है. भले ही इस प्रेस का पुराना गौरव समय की मार झेल रहा है, लेकिन संविधान की पहली मुद्रित प्रति पूरी शान के साथ यहां मौजूद है. इसे एक शो केस में रखा गया है और किसी को भी इसे देखने की अनुमति नहीं है. ईटीवी भारत के पास इस प्रति की कुछ एक्सक्लूसिव तस्वीरें हैं. यहां संविधान दिवस पर शिमला के इस गौरव की जानकारी साझा की जा रही है.
आज देश में 73वां गणतंत्र दिवस धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. गणतंत्र दिवस के दिन ही देश का संविधान पेश किया गया था. देश की आम जनता को शायद ही यह मालूम होगा कि संविधान तैयार होने के बाद इसके मुद्रित होने का काम शिमला में किया गया और यह जानकारी तो बहुत ही कम (Republic Day 2022) लोगों को होगी कि शिमला में संविधान की फर्स्ट प्रिंटेड कॉपी मौजूद है. जी हां, आजादी के बाद वर्ष 1949 में संविधान के मुद्रण का कार्य पूरा हुआ. यह काम (first copy of Constitution in himachal) शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस (Government of India Press) में पूरा हुआ. पुरानी दुर्लभ मशीनों के जरिए संविधान की प्रतियां मुद्रित (प्रिंट) की गईं. बाद में संविधान की पहली प्रति इसी प्रेस में रखी गई. तब से लेकर यह प्रति शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस में सलीके से सहेज कर रखी गई है.
ब्रिटिश काल में देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला की पहचान यूं तो कई ऐतिहासिक ईमारतों से की जाती है, लेकिन वर्ष 1872 में यहां स्थापित प्रिंटिग प्रेस की ईमारत का अलग ही महत्व है. शिमला में टूटीकंडी में यह प्रेस स्थापित की गई. यहां ब्रिटिशकाल में महत्वपूर्ण दस्तावेज प्रिंट होकर देश भर में पहुंचते थे. भारत की आजादी के बाद संविधान सभा का गठन किया गया. संविधान लेखन का कार्य पूरा होने के बाद इसे प्रिंट करने का महत्वपूर्ण काम था. तब सभी ने इसके मुद्रण के लिए शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस को उपयुक्त पाया. कारण यह था कि इस प्रेस में उस जमाने के हिसाब से आधुनिक प्रिंटिंग मशीनें मौजूद थीं.
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शिमला में संविधान की पहली प्रिंटेड कॉपी रखी गई. उसके लिए एक एंटीक शोकेस तैयार किया गया. पहली मुद्रित प्रति काले रंग के बेहद मजबूत व शानदार आवरण वाली है. अंग्रेजी में मुद्रित इस प्रति में कुल 289 पृष्ठ हैं. चार किलो से अधिक वजनी इस प्रति के मोटे और चमकदार कागज के पन्नों पर अंग्रेजी में प्रिंट हुए शब्द इतने साल बीत जाने के बाद भी नए लगते हैं. इसके कवर पेज पर दि कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया लिखा है. अंतिम पन्ने पर दर्ज है-प्रिंटेड इन इंडिया बाई दि मैनेजर गवर्नमेंट (INDIAN CONSTITUTION FIRST PRINTED COPY) ऑफ इंडिया प्रेस न्यू देल्ही. तब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस के मैनेजर दिल्ली में बैठकर काम करते थे.
वर्ष 2014 में शिमला में इस प्रेस में डिप्टी मैनेजर के तौर पर सेवाएं दे चुके अनुपम सक्सेना कहते थे कि यह केवल एक किताब ही नहीं है, बल्कि भारतीय जनमानस की सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब है और इसकी पहली प्रति को सहेजे रखने का गौरव शिमला को हासिल है. उल्लेखनीय है कि शिमला में वर्ष 1872 में इस प्रेस की स्थापना की गई थी. यहां विदेशों से बड़ी और भारी मशीनों को मंगवाया गया. देश में स्थापित प्रिंटिंग प्रेस में यह सबसे पुरानी है. इसी कड़ी की एक प्रेस मिंटो रोड दिल्ली में है. संविधान की इस प्रति का पहली प्रिंटेड कॉपी होने के कारण ऐतिहासिक महत्व है. प्रेस में इसे बड़े जतन से रखा गया है.
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शिमला को सपनों का शहर पुकारने वाले कवि-लेखक कुलराजीव पंत (Poet writer kulrajiv pant) का कहना है कि बेशक यह समय संचार क्रांति का है और सारी दुनिया एक छोटे से मोबाइल में कैद हो गई है, लेकिन मुद्रित शब्द का अपना ही महत्व है. डॉ. पंत का (Government of India Press in shimla) कहना है कि और जब-जब मुद्रित शब्द की बात आएगी, प्रिंटिंग प्रेस का जिक्र होगा ही होगा. शिमला में स्थित इस प्रेस में दुर्लभ किस्म की पुरानी प्रिंटिंग मशीनें हैं. इसके विशाल परिसर में घूमते हुए पुराने समय की भव्यता के दर्शन होते हैं. हिमाचल प्रदेश के लेखन संसार के अनमोल रत्न कहे जाने वाले लेखक-संपादक स्वर्गीय मधुकर भारती कहा करते थे कि संविधान की पहली मुद्रित प्रति शिमला में मौजूद है, यह इस ऐतिहासिक शहर के लिए गौरव की बात है उनके अनुसार संविधान भारतीय लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है. इसमें दर्ज शब्द अर्थवान और प्राणवान हैं.
वहीं, संविधान को लेकर एक रोचक बात और भी है. शिमला स्थित राज्य संग्रहालय (constitution copy in Shimla Museum) में लोगों की संविधान को लेकर जिज्ञासा शांत करने के लिए संविधान की एक हस्तलिखित प्रति रखी गई है. हिंदी में लिखी गई यह प्रति संविधान की मूल प्रति का सुलेख है. इसे नासिक के वसंत कृष्ण वैद्य ने हाथ से लिखा है. मिलबोर्न लोन कागज पर 500 पन्नों में यह वर्ष 1954 में पूरी हुई. शांति निकेतन से जुड़े मशहूर चित्रकार नंदलाल बोस ने इसे चार साल का समय लगाकर सजाया. इसमें संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं. लोकसभा सचिवालय ने वर्ष 1999 में मूल प्रति की 1200 ऑफसेट प्रतियां छपवाईं. ऐसी ही एक प्रति सैलानियों व आम जनता की जिज्ञासा के लिए शिमला के राज्य संग्रहालय में रखी गई है.
इटैलिक स्टाइल में लिखा गया था संविधान: दिल्ली निवासी प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने इसे इटैलिक स्टाइल में बेहद खूबसूरती से लिखा था, जबकि शांति निकेतन के कलाकारों ने इस दस्तावेज के प्रत्येक पृष्ठ को बहुत ही दक्षता से सजाया-संवारा था. नंदलाल रायजादा ने इसके विभिन्न पृष्ठों पर भारतीय उपहाद्वीप प्रागैतिहासिक मोहनजोदड़ो से लेकर सिन्धु घाटी की सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का चित्रण किया है. रायजादा ने सुलेख के लिए अपने होल्डर और 303 नंबर की निब का प्रयोग किया है. सुलेख में गोल्डी लीफ और स्टोन कलर का प्रयोग किया गया है. पांडुलिपि एक हजार साल की मियाद वाले सूक्ष्मीजीवी रोधक 45.7 सेमी × 58.4 सेमी आकार के चर्मपत्र शीट पर लिखा गया था. तैयार पांडुलिपि में 234 पृष्ठ शामिल थे, जिनका वजन 13 किलो था.
70 सालों तक संभाली गई थी मशीनें: सर्वे ऑफ इंडिया ने 70 सालों तक उन प्रिंटिंग मशीनों को संभालकर रखा, जिन्होंने संविधान के अनमोल अक्षरों को पेज पर उतारा था. समय के साथ संविधान की कॉपी प्रिंट करने वाली यह मशीनें बूढ़ी हो चुकी हैं. जिसके कारण सर्वे ऑफ इंडिया को यह मशीनें यहां से हटानी पड़ीं. इन मशीनों की जगह हाईटेक नई तकनीक वाली मशीनों ने ले ली है.
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