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एनीमिया के खिलाफ लड़ाई में हिमाचल अग्रणी राज्यों में शामिल, सोलन और चंबा जिला में सुधार

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Published : Oct 12, 2021, 2:18 PM IST

हिमाचल प्रदेश एनीमिया नियंत्रण में देश भर में अग्रणी राज्यों में शामिल है. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सोलन जिला सबसे अधिक एनीमिया ग्रसित था, यहां 21.4 प्रतिशत के सुधार के साथ 50.4 प्रतिशत तक पहुंच गया है. पहले सोलन 71.8 प्रतिशत था. इसके अलावा प्रदेश के चंबा जिला में भी 19.8 प्रतिशत के सुधार के साथ 46.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है. नीति आयोग द्वारा जारी यह आंकड़े हिमाचल प्रदेश के लिए राहत की खबर है.

एनीमिया के खिलाफ लड़ाई
एनीमिया के खिलाफ लड़ाई

शिमला: हिमाचल प्रदेश एनीमिया नियंत्रण में देशभर में अग्रणी राज्यों में शामिल है. राज्य सरकार के निरंतर प्रयासों और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक 2020-21 की राष्ट्रीय रैंकिंग में प्रदेश ने 57.1 स्कोर के साथ तीसरा स्थान हासिल किया है. अब सोलन और चंबा जिला में सुधार हुआ है.

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सोलन जिला सबसे अधिक एनीमिया ग्रसित था, यहां 21.4 प्रतिशत के सुधार के साथ 50.4 प्रतिशत तक पहुंच गया है. पहले सोलन 71.8 प्रतिशत था. इसके अलावा प्रदेश के चंबा जिला में भी 19.8 प्रतिशत के सुधार के साथ 46.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है. नीति आयोग द्वारा जारी यह आंकड़े हिमाचल प्रदेश के लिए राहत की खबर है.

बच्चों को एनीमिया मुक्त करने के लिए रोग निरोधी आयरन और फोलिक एसिड की खुराक प्रदान की जा रही है. स्कूल जाने वाले बच्चों की नियमित रूप से डीवर्मिंग की जा रही है. मृदा संचारित कृमि का प्रसार 3 वर्षों में 29 प्रतिशत से घटकर 0.3 प्रतिशत हो गया है, जो कार्यक्रम की प्रभावशीलता और कार्यान्वयन को दर्शाता है.

एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक के स्कोर कार्ड में हिमाचल प्रदेश वर्ष 2018-19 में 18वें स्थान पर था, लेकिन सरकार के निरंतर प्रयासों से इस रैंकिंग में सुधार हुआ है. हिमाचल अब देश भर में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है. देश की लगभग 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं, 5 वर्ष से कम उम्र के 59 प्रतिशत बच्चे, 54 प्रतिशत किशोरियां और 53 प्रतिशत गैर-गर्भवती गैर-स्तनपान करवाने वाली महिलाएं एनीमिक हैं. एनीमिया की व्यापकता में कमी से मातृ एवं शिशु जीवित रहने की दर में सुधार लाया जा सकता है.

प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने के उद्देश्य से विभिन्न स्थानों पर जागरूकता अभियान चला कर भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है. प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने में राज्य सरकार के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं.

वर्ष 2019 से ही प्रदेश सरकार ने हिमाचल को एनीमिया मुक्त करने की कवायद शुरू कर दी थी. लोगों को इस बीमारी से मुक्त कराने के लिए सरकार ने अलग-अलग चरणों में योजना को धरातल तक पहुंचाने की तैयारी शुरू दी थी. इसमें स्वास्थ्य कार्यकर्ता पंचायतों में जाकर लोगों का इलाज कर रहे हैं. अगर बीमारी किसी मरीज में ज्यादा पनप रही हो तो उन्हें अस्पताल में उपचार के लिए बुलाया जाएगा. प्रदेश को एनीमिया मुक्त कराने के लिए सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को गांव-गांव जाने के निर्देश दिए हैं.

दरअसल यह बीमारी खून की कमी से होती है. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह बीमारी ज्यादा पाई जाती है. बच्चों को यह बीमारी जल्द अपनी गिरफ्त में लेती है. अगर व्यक्ति का खानपान सही हो तो इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है. स्वास्थ्य विभाग की मानें तो महिलाओं का एचबी (हिमोग्लोबिन)12 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए, जबकि पुरुषों का एचबी भी इससे ज्यादा होना चाहिए.

शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा गांव में महिलाओं और लड़कियों का एचबी कम होता है. हालांकि, स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि इस बीमारी को खत्म करने के लिए स्कूलों में भी कार्यक्रम चलाए जाने हैं, ताकि छात्रों को अन्य बीमारियों से बचाया जा सके. हिमाचल को एनीमिया मुक्त किया जाना है. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को पंचायतों और गांव में जाने के निर्देश दिए गए हैं. लोगों की उपचार निशुल्क होगा, दवाइयां भी प्रदेश सरकार देगी.

ये भी पढ़ें: हिमाचली युवाओं के खून में घुल रहा नशे का जहर, हाईकोर्ट भी स्कूल छात्रों द्वारा नशे के सेवन पर जता चुका है चिंता

शिमला: हिमाचल प्रदेश एनीमिया नियंत्रण में देशभर में अग्रणी राज्यों में शामिल है. राज्य सरकार के निरंतर प्रयासों और नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक 2020-21 की राष्ट्रीय रैंकिंग में प्रदेश ने 57.1 स्कोर के साथ तीसरा स्थान हासिल किया है. अब सोलन और चंबा जिला में सुधार हुआ है.

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सोलन जिला सबसे अधिक एनीमिया ग्रसित था, यहां 21.4 प्रतिशत के सुधार के साथ 50.4 प्रतिशत तक पहुंच गया है. पहले सोलन 71.8 प्रतिशत था. इसके अलावा प्रदेश के चंबा जिला में भी 19.8 प्रतिशत के सुधार के साथ 46.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है. नीति आयोग द्वारा जारी यह आंकड़े हिमाचल प्रदेश के लिए राहत की खबर है.

बच्चों को एनीमिया मुक्त करने के लिए रोग निरोधी आयरन और फोलिक एसिड की खुराक प्रदान की जा रही है. स्कूल जाने वाले बच्चों की नियमित रूप से डीवर्मिंग की जा रही है. मृदा संचारित कृमि का प्रसार 3 वर्षों में 29 प्रतिशत से घटकर 0.3 प्रतिशत हो गया है, जो कार्यक्रम की प्रभावशीलता और कार्यान्वयन को दर्शाता है.

एनीमिया मुक्त भारत सूचकांक के स्कोर कार्ड में हिमाचल प्रदेश वर्ष 2018-19 में 18वें स्थान पर था, लेकिन सरकार के निरंतर प्रयासों से इस रैंकिंग में सुधार हुआ है. हिमाचल अब देश भर में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है. देश की लगभग 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं, 5 वर्ष से कम उम्र के 59 प्रतिशत बच्चे, 54 प्रतिशत किशोरियां और 53 प्रतिशत गैर-गर्भवती गैर-स्तनपान करवाने वाली महिलाएं एनीमिक हैं. एनीमिया की व्यापकता में कमी से मातृ एवं शिशु जीवित रहने की दर में सुधार लाया जा सकता है.

प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने के उद्देश्य से विभिन्न स्थानों पर जागरूकता अभियान चला कर भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है. प्रदेश को एनीमिया मुक्त बनाने में राज्य सरकार के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं.

वर्ष 2019 से ही प्रदेश सरकार ने हिमाचल को एनीमिया मुक्त करने की कवायद शुरू कर दी थी. लोगों को इस बीमारी से मुक्त कराने के लिए सरकार ने अलग-अलग चरणों में योजना को धरातल तक पहुंचाने की तैयारी शुरू दी थी. इसमें स्वास्थ्य कार्यकर्ता पंचायतों में जाकर लोगों का इलाज कर रहे हैं. अगर बीमारी किसी मरीज में ज्यादा पनप रही हो तो उन्हें अस्पताल में उपचार के लिए बुलाया जाएगा. प्रदेश को एनीमिया मुक्त कराने के लिए सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को गांव-गांव जाने के निर्देश दिए हैं.

दरअसल यह बीमारी खून की कमी से होती है. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह बीमारी ज्यादा पाई जाती है. बच्चों को यह बीमारी जल्द अपनी गिरफ्त में लेती है. अगर व्यक्ति का खानपान सही हो तो इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है. स्वास्थ्य विभाग की मानें तो महिलाओं का एचबी (हिमोग्लोबिन)12 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए, जबकि पुरुषों का एचबी भी इससे ज्यादा होना चाहिए.

शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा गांव में महिलाओं और लड़कियों का एचबी कम होता है. हालांकि, स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि इस बीमारी को खत्म करने के लिए स्कूलों में भी कार्यक्रम चलाए जाने हैं, ताकि छात्रों को अन्य बीमारियों से बचाया जा सके. हिमाचल को एनीमिया मुक्त किया जाना है. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को पंचायतों और गांव में जाने के निर्देश दिए गए हैं. लोगों की उपचार निशुल्क होगा, दवाइयां भी प्रदेश सरकार देगी.

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