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किरतपुर-नेरचौक-मनाली फोरलेन निर्माण में अवैध डंपिंग पर हाई कोर्ट का संज्ञान, सरकार को नोटिस जारी - himachal pradesh news

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने किरतपुर-नेरचौक-मनाली फोरलेन निर्माण में अवैध डंपिंग पर संज्ञान लिया है. वहीं, एक अन्य मामले में सिरमौर के ट्रांसगिरि क्षेत्र को हाटी समुदाय के नाम पर जनजातीय क्षेत्र घोषित करने के विरोध में दायर याचिका पर प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई 16 अगस्त के लिए टल गई.

Himachal Pradesh High Court
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (फाइल फोटो).
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Published : Aug 2, 2022, 7:34 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने किरतपुर-नेरचौक-मनाली फोरलेन निर्माण में अवैध डंपिंग पर संज्ञान लिया है. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमजद एहतेशाम सईद व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने अवैध डंपिंग पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. फोरलेन विस्थापित समिति घुमारवीं ने इस मामले में अदालत में याचिका दाखिल की थी. समिति ने आरोप लगाया है कि किरतपुर-नेरचौक-मनाली फोरलेन निर्माण के दौरान मलबे को अवैध तरीके से जंगलों में फेंका जा रहा है. इससे इलाके के जंगलों को काफी नुकसान हो रहा है.

अदालत को बताया गया कि इस बारे में समिति ने डीएफओ बिलासपुर के पास शिकायत दर्ज की. डीएफओ बिलासपुर ने मामले को प्रधान मुख्य अरण्यपाल के समक्ष रखा. उसके बाद नेशनल हाईवे अथॉरिटी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर से 8,45,000 रुपए का मुआवजा भी वसूला गया. अदालत को बताया गया कि इस बारे राज्य स्तरीय कमेटी ने जांच करने के आदेश दिए थे, लेकिन अभी तक यह जांच पूरी नहीं की गई. याचिकाकर्ता समिति ने अदालत से गुहार लगाई है कि राज्य सरकार को आदेश दिया जाए ताकि जांच को समय पर पूरा किया जाए और अवैध तरीके से जंगलों में फैंके गए मलबे को हटाया जाए. मामले की सुनवाई तीन हफ्ते बाद निर्धारित की गई है.

हाटी समुदाय से संबंधित मामले में सुनवाई 16 अगस्त तक चली: वहीं, एक अन्य मामले में सिरमौर के ट्रांसगिरि क्षेत्र को हाटी समुदाय के नाम पर जनजातीय क्षेत्र घोषित करने के विरोध में दायर याचिका पर प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई 16 अगस्त के लिए टल गई. मुख्य न्यायाधीश अमजद सईद व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ के समक्ष इस मामले पर सुनवाई हुई. अनुसूचित जाति संरक्षण समिति जिला सिरमौर ने यह आरोप लगाया है कि उनकी जनसंख्या लगभग 40 प्रतिशत है और उन्होंने कभी भी अनुसूचित जनजाति क्षेत्र दर्जा दिए जाने को लेकर कोई भी दावा नहीं किया है. उन्हें सुनवाई का मौका दिए बिना ही ट्रांसगिरि क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने का सरकार ने किस तरह से निर्णय ले लिया.

उपरोक्त कानून आने से संबंधित क्षेत्र में अनुसूचित जाति पर हो रहे अत्याचार को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही ग्राम पंचायत से संबंधित निकायों में अनुसूचित जाति आधारित आरक्षण बिल्कुल समाप्त हो जाएगा. आरोप यह भी है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने उस क्षेत्र के संपन्न वर्ग के लोगों के दबाव में आकर राजनीतिक लाभ हासिल करने के उद्देश्य से जनजातीय क्षेत्र घोषित करने का निर्णय लिया है. इससे छुआछूत जैसी समस्या को दूर करने बाबत भारतीय संविधान में बनाए गए अनुच्छेद 17 का उद्देश्य भी समाप्त हो जाएगा. यह अपने आप में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 का सरेआम उल्लंघन है.

ये भी पढ़ें- Himachal Seat Scan: हिमाचल में चुनावी गतिविधियां तेज, जानिए इस साल आपके विधानसभा क्षेत्र में क्या हैं समीकरण

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने किरतपुर-नेरचौक-मनाली फोरलेन निर्माण में अवैध डंपिंग पर संज्ञान लिया है. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमजद एहतेशाम सईद व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने अवैध डंपिंग पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. फोरलेन विस्थापित समिति घुमारवीं ने इस मामले में अदालत में याचिका दाखिल की थी. समिति ने आरोप लगाया है कि किरतपुर-नेरचौक-मनाली फोरलेन निर्माण के दौरान मलबे को अवैध तरीके से जंगलों में फेंका जा रहा है. इससे इलाके के जंगलों को काफी नुकसान हो रहा है.

अदालत को बताया गया कि इस बारे में समिति ने डीएफओ बिलासपुर के पास शिकायत दर्ज की. डीएफओ बिलासपुर ने मामले को प्रधान मुख्य अरण्यपाल के समक्ष रखा. उसके बाद नेशनल हाईवे अथॉरिटी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर से 8,45,000 रुपए का मुआवजा भी वसूला गया. अदालत को बताया गया कि इस बारे राज्य स्तरीय कमेटी ने जांच करने के आदेश दिए थे, लेकिन अभी तक यह जांच पूरी नहीं की गई. याचिकाकर्ता समिति ने अदालत से गुहार लगाई है कि राज्य सरकार को आदेश दिया जाए ताकि जांच को समय पर पूरा किया जाए और अवैध तरीके से जंगलों में फैंके गए मलबे को हटाया जाए. मामले की सुनवाई तीन हफ्ते बाद निर्धारित की गई है.

हाटी समुदाय से संबंधित मामले में सुनवाई 16 अगस्त तक चली: वहीं, एक अन्य मामले में सिरमौर के ट्रांसगिरि क्षेत्र को हाटी समुदाय के नाम पर जनजातीय क्षेत्र घोषित करने के विरोध में दायर याचिका पर प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई 16 अगस्त के लिए टल गई. मुख्य न्यायाधीश अमजद सईद व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ के समक्ष इस मामले पर सुनवाई हुई. अनुसूचित जाति संरक्षण समिति जिला सिरमौर ने यह आरोप लगाया है कि उनकी जनसंख्या लगभग 40 प्रतिशत है और उन्होंने कभी भी अनुसूचित जनजाति क्षेत्र दर्जा दिए जाने को लेकर कोई भी दावा नहीं किया है. उन्हें सुनवाई का मौका दिए बिना ही ट्रांसगिरि क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने का सरकार ने किस तरह से निर्णय ले लिया.

उपरोक्त कानून आने से संबंधित क्षेत्र में अनुसूचित जाति पर हो रहे अत्याचार को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही ग्राम पंचायत से संबंधित निकायों में अनुसूचित जाति आधारित आरक्षण बिल्कुल समाप्त हो जाएगा. आरोप यह भी है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने उस क्षेत्र के संपन्न वर्ग के लोगों के दबाव में आकर राजनीतिक लाभ हासिल करने के उद्देश्य से जनजातीय क्षेत्र घोषित करने का निर्णय लिया है. इससे छुआछूत जैसी समस्या को दूर करने बाबत भारतीय संविधान में बनाए गए अनुच्छेद 17 का उद्देश्य भी समाप्त हो जाएगा. यह अपने आप में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 का सरेआम उल्लंघन है.

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