शिमला: प्रदेश उच्च न्यायालय ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए राज्य सरकार को जिला ऊना में 'मां चिंतपूर्णी सावन मेला' आयोजित करने के अपने निर्णय पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि भक्तों की भीड़ कोविड-19 वायरस संक्रमण के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकती है.
न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस निर्णय पर यथासंभव शीघ्रता से 13 अगस्त 2021 से पहले पहले विचार करे. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने कोरोना महामारी से निपटने के लिए प्रदेश में अपर्याप्त सुविधाओं और बुनियादी ढांचे को उजागर करने वाली एक जनहित याचिका और अन्य याचिकाओं पर सुनवाई के पश्चात ये आदेश पारित किए.
सुनवाई के दौरान कोर्ट मित्र ने कहा कि चूंकि सरकार द्वारा अपने पहले के फैसले की समीक्षा करके स्कूलों को बंद कर दिया है. इसलिए 16 अगस्त को होने वाले 'मां चिंतपूर्णी सावन मेला' को भी फिलहाल के लिए निलंबित कर दिया जाए, क्योंकि लाखों श्रद्धालु मंदिर में आएंगे और कोरोना प्रोटोकॉल की अनुपालना नहीं हो पाएगी.
वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता ने बताया कि उपायुक्त, ऊना ने सोच-समझकर निर्णय लिया है और यह सही मायने में मेला नहीं है, क्योंकि भक्तों को केवल मंदिर के दर्शन की अनुमति है और अन्य सभी गतिविधियों को निलंबित कर दिया गया है.
अदालत ने कहा कि कोरोना संक्रमण की अनिश्चित स्थिति को ध्यान में रखते हुए, यह उचित होगा कि सरकार इस मुद्दे की फिर से जांच करे और उसके बाद जनता के व्यापक हित में निर्णय ले और यह सुनिश्चित करे कि महामारी से कोई और नुकसान न हो. राज्य सरकार ने न्यायालय को यह भी बताया कि अब तक 20 बच्चों की पहचान की जा चुकी है, जो कोविड-19 के कारण अनाथ हो गए हैं.
इन 20 अनाथ बच्चों में से 19 बच्चों को उनके विस्तारित परिवारों में पालक देखभाल के तहत रखा गया है और वे 4000/- रुपये प्रति माह की दर से वित्तीय सहायता के हकदार हैं, जिसमें से बच्चे के भरण-पोषण के लिए पालक माता-पिता को 2500/- रुपये प्रति माह और 18 वर्ष की आयु तक बच्चे के नाम पर 1500/- रुपये प्रति माह आरडी के रूप में दिए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक बच्चा सरकार से पारिवारिक पेंशन पाने के लिए पात्र है, इसलिए उसे पालक देखभाल के तहत नहीं रखा जा सकता है और वह अपने चाचा के साथ रह रहा है.
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