शिमला: चुनावी साल में हिमाचल की सियासत में उथल-पुथल मची हुई है. इस उथल-पुथल में सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा है. क्योंकि उसके दो मौजूदा विधायक पार्टी का 'हाथ' छोड़कर बीजेपी में शामिल हो (himachal congress MLA in BJP) हो गए हैं. कांगड़ा से विधायक पवन काजल और नालागढ़ से विधायक लखविंद्र राणा आज बीजेपी में शामिल हो (Himachal Congress MLA) हो गए हैं. मौजूदा विधायकों का इस तरह से पार्टी छोड़ना बता रहा है कि कांग्रेस के अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
दोनों अपनी पार्टी से हैं नाराज- बताया जा रहा है कि दोनों विधायक पार्टी में खुद की अनदेखी से नाराज हैं. पवन काजल को कांग्रेस ने कार्यकारी अध्यक्ष तो बनाया था, लेकिन पार्टी कार्यक्रमों में तवज्जो ना मिलने से वो (pawan kajal join bjp) नाराज थे. पवन काजल और सुधीर शर्मा के बीच भी सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था. बेशक काजल कार्यकारी अध्यक्ष थे, लेकिन उन्हें पार्टी आयोजनों में प्रमुखता नहीं दी जा रही थी. एक तरह से उन्हें अनदेखा किया जा रहा था. इसी से नाराज होकर वे भाजपा के संपर्क में आए और नई पारी नई टीम से खेलने पर बात फाइनल (pawan kajal joins bjp) हो गई. जिसके बाद पवन काजल बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
इसी तरह नालागढ़ से विधायक लखविंद्र राणा भी कई कारणों से पार्टी से (lakhwinder rana join bjp) नाराज हैं. पार्टी उनके विधायक रहते हुए ही उनके सियासी प्रतिद्वंद्वी हरदीप सिंह बावा को बढ़ावा दे रही है. जिससे साफ लग रहा है कि पार्टी उनपर बावा को तरजीह दे रही है. जिसके चलते उन्होंने भी कांग्रेस का हाथ छोड़ने का फैसला लिया है. पार्टी में अनदेखी के कारण लखविंद्र राणा ने बीजेपी का दामन थामा है.
पवन काजल ओबीसी चेहरा- पवन काजल के जाने से कांग्रेस को उस कांगड़ा जिले में बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है जहां से होकर हिमाचल की सत्ता का रास्ता जाता है. 15 सीटों वाले जिले में बीजेपी को एक प्रभावशाली नेता मिलने का फायदा होगा. पवन काजल दो बार से लगातार विधायक हैं. पवन काजल ओबीसी चेहरा हैं और भाजपा के पास कांगड़ा में ओबीसी वर्ग का कोई बड़ा चेहरा नहीं था. कांग्रेस को काजल की बगावत की खबर लगी तो आनन-फानन में उन्हें कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया और पूर्व सांसद चंद्र कुमार को ये जिम्मेदारी सौंप दी गई.
नालागढ़ में बीजेपी होगी मजबूत- लखविंद्र राणा नालागढ़ के विधायक हैं और लंबे समय से भाजपा के खिलाफ कोई सख्त बयान नहीं दे रहे थे. वैसे भी वे संघ परिवार के करीबी रहे हैं. राणा एबीवीपी व भाजयुमो में सक्रिय रहे हैं. साल 2005 में वो कांग्रेस में चले गए थे, वर्ष 2011 में उपचुनाव में वे कांग्रेस के टिकट से विजयी हुए और फिर 2017 में चुनाव जीते. अब 17 साल बाद फिर से भाजपा में शामिल हो गए हैं.
लखविंद्र राणा ने दो टूक कह दिया था कि कांग्रेस में उन्हें कमजोर करने की साजिश हो रही है. वो नालागढ़ हल्के में हरदीप सिंह बावा को प्रमोट करने और अपनी अनदेखी पर पार्टी के सामने नाराजगी जता चुके थे. पिछले चुनाव में टिकट न मिलने पर हरदीप सिंह बावा ने आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था, जिस पर कांग्रेस ने उन्हें छह साल के लिए निकाल दिया था. बाद में बावा को पार्टी में वापिस लिया गया था.
दल बदल का खेल जारी- भाजपा के सूत्र दावा करते हैं कि अभी कांग्रेस के कुछ और नेता उनके संपर्क में हैं. और चुनाव से पहले कांग्रेस का हाथ छोड़कर कमल थाम लेंगे. इससे पहले कांग्रेस ने भाजपा के पूर्व अध्यक्ष खीमी राम शर्मा व ठियोग से पूर्व एमएलए स्व. राकेश वर्मा की पत्नी इंदू वर्मा को पार्टी में शामिल करवा कर भाजपा तो झटका दिया था. अब बीजेपी ने कांग्रेस को झटका देते हुए पवन काजल और लखविंद्र राणा को अपने पाले में कर (Himachal Congress MLA joins BJP) लिया है. आने वाले दिनों में टिकट वितरण से पहले और बाद में भी हिमाचल की सियासत में फेरबदल होने के आसार हैं. भाजपा के लिए मिशन रिपीट साख का सवाल हो गया है, जेपी नड्डा के गृह प्रदेश में पार्टी हर हाल में सत्ता में वापसी चाहती है. देखना है कि कांगड़ा में ओबीसी नेता के पार्टी में आने से सबसे बड़े जिले का सियासी किला भाजपा के लिए कितना मजबूत साबित होता है.
ये भी पढ़ें : कांग्रेस ने पवन काजल को कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटाया, चंद्र कुमार को जिम्मा