शिमला: एक लोकसभा सीट (Lok sabha seat) और तीन विधानसभा सीटों (Three assembly seats) पर उपचुनाव में हार (Defeat in byelection) से भाजपा को करारा झटका लगा है. सेमीफाइनल की इस हार के बाद जयराम सरकार सत्ता का फाइनल (Satta ka final) जीतने की जुगत में जुट गई है. हिमाचल में कर्मचारी वोट बैंक (Employee vote bank in himachal) को साधने की दिशा में सरकार कई कदम उठा रही है. जयराम सरकार (jairam Government) का चार साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले कर्मचारियों के लिए जेसीसी यानी संयुक्त समन्वय समिति की बैठक (joint coordination committee meeting) हो रही है. सरकार कर्मचारियों को वित्तीय लाभ (financial benefits to employees) देने के लिए मन बना चुकी है. यदि कर्मचारियों को वेतन आयोग की सिफारिशों (Pay Commission Recommendations) के लिहाज से लाभ देना है तो उसके लिए सरकार को कर्ज (loan to government) लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
पहले से ही 60 हजार करोड़ से अधिक के कर्ज में डूबी भाजपा सरकार ने 2 हजार करोड़ रुपए का लोन (2 thousand crore loan) लेने की प्रक्रिया पूरी कर ली है. सरकार भली भांति जानती है कि कर्मचारी वोट बैंक (employee vote bank) को अपनी तरफ आकर्षित किए बिना मिशन रिपीट (Mission Repeat) का सपना पूरा नहीं होगा. छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल (small hill state himachal) की आर्थिक मुश्किलें पहाड़ जैसी बड़ी हैं. प्रति व्यक्ति आय के मामले में हिमाचल प्रदेश बेशक देश के प्रथम पांच राज्यों में शामिल है, लेकिन यहां सरकार के खजाने की हालत खस्ता है. राज्य सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च होता है. विकास के लिए नाम मात्र रकम ही बचती है.
इस बार वित्तीय वर्ष (Financial year) में जयराम सरकार ने 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक का बजट पेश किया था. सरकार का अधिकांश खर्च लोन से चलता है. मौजूदा वित्तीय वर्ष की लोन लिमिट (Loan limit of financial year) 5500 करोड़ रुपए है. इस लिमिट में से राज्य सरकार ने 3 हजार करोड़ रुपए का लोन ले लिया है. अब इसी माह सरकार 2000 करोड़ का लोन ले रही है. इस तरह अगल वित्तीय वर्ष यानी मार्च 2022 से पहले सरकार के पास केवल 500 करोड़ रुपए की लोन लिमिट ही बचेगी. इस साल हिमाचल सरकार ने पहले के मुकाबले कम लोन लिया है. कारण यह है कि 15वें वित्त आयोग (15th Finance Commission) से हिमाचल को उदार आर्थिक सहायता मिली है. इस कारण हिमाचल को लोन लेने की अधिक जरूरत नहीं पड़ी.
अब सरकार चुनावी वर्ष में प्रवेश करने वाली है. वर्ष 2022 में हिमाचल में विधानसभा चुनाव हुए हैं. इस समय सरकारी कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बना रहे हैं. सरकार और कर्मचारियों के बीच जेसीसी की मीटिंग पुल का काम करती है, लेकिन चार साल के कार्यकाल में एक बार भी जेसीसी की मीटिंग नहीं हुई. कर्मचारियों की यह नाराजगी सरकार पर भारी ना पड़े. इसलिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Cm jairam thakur) ने जेसीसी की मीटिंग (Jcc Meeting) के लिए पहल की है. जेसीसी की मीटिंग 27 नवंबर को शिमला में होगी. कर्मचारियों ने इस मीटिंग के लिए 64 मांगों का एजेंडा तैयार किया है.
हिमाचल में सरकारी कर्मियों के प्रतिनिधि संगठन हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ (Non-Gazetted Employees Federation) ने स्पष्ट किया है कि इस मीटिंग में एनपीएस, अनुबंध सेवाकाल, आउटसोर्स कर्मचारियों (outsource employees) के मसले सहित वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने पर कोई निर्णायक फैसला होना ही चाहिए. सरकार भी नए वेतन आयोग की सिफारिश (new pay commission recommendations) को लागू करने के लिए गंभीरता दिखा रही है. यही कारण है कि सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही से पहले 2000 करोड़ के लोन की प्रक्रिया पूरी की है. यदि सरकार पंजाब पैटर्न पर वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करती है तो उसके लिए सालाना 5000 करोड़ रुपए खजाने में अतिरिक्त चाहिए.
हिमाचल प्रदेश कर्ज के बोझ से कराह रहा है. सरकार लगातार कर्ज लेने पर मजबूर है. कैग ने राज्य सरकार को कर्ज के मकड़जाल से बचने की सलाह दी है. कैग ने चेताया है कि यदि सरकार ने समय रहते वित्तीय प्रबंधन को नहीं सुधारा तो हिमाचल बुरी तरह से कर्ज के जाल में फंस जाएगा. मौजूदा वित्तीय वर्ष में हिमाचल सरकार का बजट आंकड़ा 50192 करोड़ रुपए का है. पहली बार हिमाचल ने बजट में पचास हजार करोड़ रुपए का आंकड़ा पार किया है. यदि इस बजट में सौ रुपए को मानक रखा जाए तो इसका अधिकांश हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन और पेंशन पर ही खर्च होगा. इस सौ रुपए में सरकारी कर्मियों के वेतन पर 25.31 रुपए खर्च होंगे. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपए खर्च होंगे. इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपए, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपए चुकाने होंगे. इन सारे खर्चों के बाद सरकार के पास विकास कार्यों के लिए महज 43.94 रुपए ही बचेंगे.
हिमाचल का राजकोषीय घाटा 7789 करोड़ रुपए अनुमानित है. यह घाटा हिमाचल के सकल घरेलू उत्पाद का 4.52 प्रतिशत है. ये स्थिति चिंताजनक है. हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बोझ 60544 करोड़ रुपए है. पिछले साल यानी 2020 में मार्च महीने तक ये आंकड़ा 56107 करोड़ रुपए था. यदि 2013-14 की बात करें तो कर्ज का ये बोझ 31442 करोड़ रुपए था. यानी आठ साल में ही ये दुगना होने के करीब है. हिमाचल सरकार ने दिसंबर 2020 में एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था. फिर नए साल के पहले ही महीने यानी जनवरी 2021 में और एक हजार करोड़ रुपए का लोन लिया.
दिलचस्प तथ्य ये है कि हिमाचल में सरकार किसी भी दल की हो, लोन लेने में कोई पीछे नहीं है. कर्ज के बोझ के लिए हर सरकार विपक्षी को ही कसूरवार मानती है. इस बार भी बजट सत्र में लोन लिमिट संबंधी विधेयक लाने के दौरान भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा था कि प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2012 में जब सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. बाद में कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज 47906 करोड़ रुपए हो गया.
कर्ज पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है. मौजूदा सरकार के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल सरकार 2018-19 में 5737 करोड़ रुपए मार्केट लोन ले सकती थी, लेकिन सरकार ने कुल 4120 करोड़ रुपए ही लोन लिया. वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार की मार्केट लोन की सीमा 9187 करोड़ रुपए थी और लोन केवल 6000 करोड़ रुपए ही लिया गया. भाजपा का कहना है कि जयराम सरकार ने तीन साल में पूर्व की कांग्रेस सरकार के समय लिए गए 19199 करोड़ रुपए के कर्ज में से 19486 करोड़ रुपए वापस भी लौटाए हैं.
फिलहाल, हिमाचल प्रदेश पर साठ हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है. ये कर्ज और बढ़ने वाला है. नया वेतन आयोग लागू होने के बाद सरकारी कर्मियों की देनदारी 5000 करोड़ रुपए तक और बढ़ेगी. उसे देने के लिए सरकार को और कर्ज लेना पड़ेगा. हिमाचल सरकार चुनावी वर्ष में कर्ज की परवाह किए बिना कर्मचारियों की खुश करना चाहती है. उपचुनावों की हार के बाद भाजपा में मथन का लंबा दौर चला था. जिसके बाद यह कर्मचारियों को साधने पर निर्णय हुआ था. प्रदेश सरकार द्वारा लिए कर्ज पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि कर्ज लेना एक नियमित प्रक्रिया है. पिछली सरकारों ने भी कर्ज लिया है. प्रदेश सरकार नियमों के तहत और लिमिट के तहत ही कर्ज लेती है. मौजूदा सरकार ने पिछली कांग्रेस सरकार से कम ही कर्ज लिया है.