शिमला: न्यायपालिका की स्वतंत्रता में लोगों का विश्वास न केवल जनहित में, बल्कि समाज के हित में भी सर्वोपरी है. लोगों के इसी विश्वाश को बनाए रखने का दायित्व वकीलों, न्यायाधीशों, विधायकों और अधिकारियों का बनता है. प्रदेश हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी तबादला आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए की. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैध की खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय में याचिकाकर्ता जैसे वादी के लिए कोई जगह नहीं है. जिसका न्यायपालिका पर कोई विश्वास नहीं है.
मामले के अनुसार लेबर सर्कल शिमला में तैनात लेबर इंस्पेक्टर राजिंदर कुमार ने अपने तबादला आदेशों को हाईकोर्ट में चनौती दी थी. उनकी तरफ से यह बताया गया था कि उनका तबादला सुंदरनगर सर्कल में तैनात लेबर इंस्पेक्टर अनिल कुमार चौहान को उसके स्थान पर एडजस्ट करने के लिए किया गया. उसने निजी प्रतिवादी के पक्ष में डीओ नोट का हवाला देते हुए तबादला आदेशों को रद्द करने की गुहार लगाई थी.
याचिका की प्राथमिक सुनवाई पर हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए थे और मामले का रिकॉर्ड तलब किया था.मामले का रिकॉर्ड देखने पर कोर्ट ने पाया कि जिस तबादला आदेश को खारिज करने की गुहार प्रार्थी ने हाईकोर्ट से लगाई वहीं गुहार उसने अपने पक्ष में लिए डीओ नोट लगाकर विभाग से कर दी. हाईकोर्ट में अपनी याचिका के लंबित रहते हुए प्रार्थी ने अपने स्तर पर तबादला आदेशों को रद्द करवाने की कोशिश की, जिससे अदालत को आभास हुआ कि प्रार्थी का अदालत पर कोई भरोसा नहीं है.
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