शिमला: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की राजनीति में बेशक सवर्ण वर्ग के नेताओं का दबदबा है, लेकिन 50 फीसदी आबादी के लिए अभी तक अपनी बात पहुंचाने के लिए कोई मंच नहीं था. राज्य में लंबे समय से सवर्ण आयोग के गठन (swarn aayog himachal) की मांग हो रही थी. इस बार सवर्ण समाज से जुड़ी संस्थाओं और लोगों ने अपनी आवाज इस कदर बुलंदी से उठाई कि सरकार को तीन घंटे के भीतर सामान्य वर्ग आयोग के गठन (General Category Commission in Himachal) से संबंधित अधिसूचना जारी करनी पड़ी.
धर्मशाला में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सवर्ण समाज (power of upper caste commission) के लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया. इस समाज के लोगों का आरोप है कि हिमाचल में किसी भी सरकार ने सामान्य वर्ग की सुध नहीं ली है, जबकि हिमाचल की 50 फीसदी आबादी इस वर्ग से संबंधित है. विधानसभा उपचुनाव से पूर्व कुनिहार में इस समाज से जुड़े लोगों ने नाराजगी के तौर पर नोटा का बटन भी दबाया. बड़ी संख्या में नोटा का बटन दबने से न केवल भाजपा सरकार बल्कि विपक्षी दल कांग्रेस भी सियासी चिंता में पड़ गई थी. हालांकि हिमाचल कांग्रेस के शिखर नेता और पूर्व सीएम स्व. वीरभद्र सिंह के विधायक बेटे विक्रमादित्य सिंह ने आयोग के गठन को लेकर पक्षधरता जताई थी.
यही कारण है कि आंदोलन के बाद समाज के लोगों ने विक्रमादित्य सिंह का आभार जताया था. अब हिमाचल प्रदेश देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल हो गया है जहां इस आयोग का गठन हुआ है. इस घटनाक्रम के संदर्भ में हिमाचल के जातीय समीकरण पर नजर डालना भी दिलचस्प होगा. हिमाचल की राजनीति में सवर्ण समाज (upper caste commission in himachal) का ही दबदबा रहा है. इसमें भी राजपूत हावी रहे हैं. हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार से लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक राजपूत समुदाय से आते हैं. हिमाचल में केवल शांता कुमार ही ब्राह्मण समुदाय से मुख्यमंत्री रहे हैं.
वहीं, हिमाचल में दलित वर्ग का कोई राजनेता मुख्यमंत्री पद तक नहीं पहुंचा है. अलबत्ता विधानसभा अध्यक्ष से लेकर कैबिनेट मंत्री जरूर दलित वर्ग से बनते रहे हैं. भाजपा ने पहली बार एक दलित नेता के हाथ हिमाचल में पार्टी की कमान सौंपी है. यदि पूर्व की जनगणना को देखें तो हिमाचल प्रदेश की आबादी 68 लाख 56 हजार 509 है. इस आबादी में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 25.22 फीसदी है. कुल आबादी में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 17 लाख 29 हजार 252 है. इसी तरह एसटी 3 लाख 92 हजार 126 (5.71 परसेंट) ओबीसी 9 लाख 27 हजार 452 (13.52 प्रतिशत) स्वर्ण 50.72 प्रतिशत और अल्पसंख्यक 4.83 प्रतिशत हैं.
सवर्ण जातियों में राजपूत 32.72 प्रतिशत, ब्राह्मण 18 प्रतिशत हैं. प्रदेश में अब तक छह सीएम हुए हैं. पांच सीएम वाईएस परमार, रामलाल ठाकुर, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल, जयराम ठाकुर राजपूत समुदाय से आते हैं. वीरभद्र सिंह छह बार और प्रेम कुमार धूमल, रामलाल ठाकुर दो-दो बार मुख्यमंत्री रहे.राजपूत समुदाय का प्रभाव मंडी, शिमला, कुल्लू और कांगड़ा के कई क्षेत्रों में है.
हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में 68 विधानसभा क्षेत्र हैं. इसी तरह लोकसभा की 4 सीटें और राज्यसभा की 3 सीटें हैं. शिमला लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. विधानसभा में 17 सीटें एससी, 3 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 48 सीटें ओपन कैटेगरी में आती हैं. 2017 के विधानसभा चुनावों में 48 सामान्य सीटों पर 33 विधायक राजपूत चुन कर आए. भाजपा के 18, कांग्रेस के 12, दो आजाद उम्मीदवार प्रकाश सिंह राणा और होशियार सिंह, सीपीआईएम के राकेश सिंघा विधानसभा पहुंचे. सदन में राजपूत विधायकों की संख्या करीब 50 फीसदी है. प्रदेश कैबिनेट में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित महेंद्र सिंह ठाकुर, वीरेंद्र कंवर, गोविंद सिंह ठाकुर, राकेश पठानिया, बिक्रम सिंह ठाकुर, राजपूत मंत्री हैं. वहीं राजेंद्र गर्ग, सुरेश भारद्वाज और राम लाल मारकंडा ब्राह्मण समुदाय से हैं.
सवर्ण समाज के लोगों का कहना है कि 50 फीसदी आबादी होने के बावजूद उनकी मांगों को सुनने के लिए कोई उपयुक्त मंच नहीं था. सवर्ण समाज के आंदोलन को पूर्व में कांग्रेस के बड़े नेता रहे ठाकुर हरिदास के वंशज रुमित ठाकुर लीड कर रहे हैं. देवभूमि क्षत्रिय संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रुमित सिंह ठाकुर और देवभूमि सवर्ण मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष मदन ठाकुर ने बताया कि अब इस समाज के लोगों को न्याय की उम्मीद बंधी है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अनुसार उक्त समाज के संगठनों की मांग पर आयोग का गठन किया गया है और सरकार समाज के सभी वर्गों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.
आपको बता दें कि मध्य प्रदेश शिवराज सरकार ने भी सवर्ण समुदाय के लोगों के आंदोलन के बाद प्रदेश में सामान्य वर्ग आयोग का गठन किया था. इसके बाद पहाड़ी राज्य हिमाचल में भी आयोग के गठन की मांग तेज हो गई थी. धर्मशाला के तपोवन विधानसभा में शीतकालीन सत्र में विरोध जताने के लिए पूरे प्रदेश से सवर्ण समुदाय के लोग धर्मशाला के जोरावर मैदान में इकट्ठा हुए थे और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था. जिसके बाद सरकार ने प्रदेश में सामान्य वर्ग आयोग के गठन का ऐलान किया.