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मानसून सत्र: कोरोना पर कांग्रेस ने रचा था चक्रव्यूह, सत्ता पक्ष ने दिखाई राजनीतिक चतुराई - वीरभद्र सिंह

कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत विपक्ष के आक्रामक तेवर से हुई. राज्य के इतिहास में ये पहली बार हुआ था कि विपक्ष ने स्थगन प्रस्ताव लाया और चर्चा भी हुई. मानसून सत्र में इस बार 10 बैठकें हुई. कोरोना के इस दौर में भी सदन की कार्यवाही 47 घंटे चली.

discussion on corona during himachal assembly monsoon session 2020
सदन की कार्यवाही में सीएम जयराम ठाकुर.
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Published : Sep 18, 2020, 10:29 PM IST

शिमला: वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर में हिमाचल विधानसभा का मानसून सत्र कई मायनों में असाधारण रहा. कांग्रेस ने राजनीतिक चक्रव्यूह रचते हुए सरकार को स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के लिए मजबूर किया. विपक्ष ने दाव तो बेहतर चला था, लेकिन खुद सक्रिय रूप से चर्चा में भाग न लेकर सत्ता पक्ष को सेफ पेसैज दे दिया. वहीं, सत्ता पक्ष ने भी राजनीतिक चतुराई दिखाई और कांग्रेस को उसी के बुने जाल में घेर लिया.

शुक्रवार को हिमाचल विधानसभा का मानसून सत्र खत्म हो गया. इस सत्र की सबसे खास बात स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा रही, क्योंकि राज्य के इतिहास में ये पहली बार हुआ था कि विपक्ष ने स्थगन प्रस्ताव लाया और चर्चा भी हुई.

कोरोना काल में 47 घंटे चली सदन की कार्यवाही

कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत विपक्ष के आक्रामक तेवर से हुई. नियम-67 के तहत विधानसभा के इतिहास में पहली बार विपक्ष के किसी प्रस्ताव को चर्चा के लिए स्वीकार किया. मानसून सत्र में इस बार 10 बैठकें हुई. कोरोना के इस दौर में भी सदन की कार्यवाही 47 घंटे चली.

विधायक रीता धीमान के कोरोना पॉजिटिव आने के बावजूद कार्यवाही में कोई व्यवधान नहीं पड़ा. वहीं, जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की रिपोर्ट सत्र से पहले पॉजिटिव आने के कारण वह इस बार किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं ले पाए. हालांकि उन्होंने वर्चुअल तरीके से घर में रहकर कार्यवाही अवश्य देखी.

पूरे सत्र में मौजूद रहे सदन के सबसे बुजुर्ग सदस्य

मौजूदा समय में सदन के वरिष्ठतम सदस्य एवं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के हौसले को जयराम ठाकुर सहित सत्ता पक्ष व विपक्ष के सभी सदस्यों ने रेखांकित किया. सीएम जयराम ठाकुर ने तो सत्र की समाप्ति पर यहां तक कहा कि वीरभद्र सिंह के सदन में आने से सभी को एक हौसला सा मिलता है.

कोरोना पर सरकार को घेरने की कोशिश

मुकेश अग्रिहोत्री ने सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं चूका. सत्र के पहले दिन जहां उन्होंने कोरोना पर सरकार को घेरने की कोशिश की, वहीं अंतिम दिन शिमला-मटौर फोरलेन मसले और 69 एनएच के मामले पर सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई.

मांगे मनवाने के लिए विपक्ष ने अपनाए कई तरीके

विपक्ष की तरफ से राजेंद्र राणा और जगतसिंह नेगी सहित अन्य सदस्यों ने सरकार को घेरने का प्रयास किया. विपक्ष ने अपनी मांगों को मनवाने के लिए वॉकआउट करने के अलावा विधानसभा अध्यक्ष का दरवाजा खटखटाने के साथ-साथ उनके कक्ष के बाहर धरना भी दिया. ये भी पहली बार देखा गया कि विपक्ष के सदस्य विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष के बाहर फर्श पर बैठ गए.

सीएम जयराम ने भी अपनाए तीखे तेवर

सत्ता पक्ष की बात की जाए तो इस बार सीएम जयराम ठाकुर ने अपने तेवर और तीखे कर दिए. सीएम जयराम ठाकुर ने आक्रामक अंदाज में विपक्ष को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया. सीएम ने कहा कि विपक्ष ने सत्र में रचनात्मक सहयोग नहीं दिया. उन्होंने दावा किया कि जनता कांग्रेस को करारा सबक सिखाएगी. उन्होंने तंज कसा कि कहां तो कांग्रेस के नेताओं को कोरोना संक्रमण से और बेहतर तरीके से निपटने के लिए सुझाव देने चाहिए थे और कहां विपक्ष ने सार्थक बहस से भागकर अपनी ऊर्जा नारेबाजी, वॉकआउट में लगाई. जनता इनसे पूछेगी कि संकट के समय में इन्होंने क्या योगदान दिया. इस तरह कांग्रेस ने बेशक सत्ता पक्ष को नियम-67 के तहत चर्चा के लिए मजबूर किया, परंतु खुद चर्चा में इंट्रस्ट नहीं दिखाया.

शिमला: वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर में हिमाचल विधानसभा का मानसून सत्र कई मायनों में असाधारण रहा. कांग्रेस ने राजनीतिक चक्रव्यूह रचते हुए सरकार को स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के लिए मजबूर किया. विपक्ष ने दाव तो बेहतर चला था, लेकिन खुद सक्रिय रूप से चर्चा में भाग न लेकर सत्ता पक्ष को सेफ पेसैज दे दिया. वहीं, सत्ता पक्ष ने भी राजनीतिक चतुराई दिखाई और कांग्रेस को उसी के बुने जाल में घेर लिया.

शुक्रवार को हिमाचल विधानसभा का मानसून सत्र खत्म हो गया. इस सत्र की सबसे खास बात स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा रही, क्योंकि राज्य के इतिहास में ये पहली बार हुआ था कि विपक्ष ने स्थगन प्रस्ताव लाया और चर्चा भी हुई.

कोरोना काल में 47 घंटे चली सदन की कार्यवाही

कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत विपक्ष के आक्रामक तेवर से हुई. नियम-67 के तहत विधानसभा के इतिहास में पहली बार विपक्ष के किसी प्रस्ताव को चर्चा के लिए स्वीकार किया. मानसून सत्र में इस बार 10 बैठकें हुई. कोरोना के इस दौर में भी सदन की कार्यवाही 47 घंटे चली.

विधायक रीता धीमान के कोरोना पॉजिटिव आने के बावजूद कार्यवाही में कोई व्यवधान नहीं पड़ा. वहीं, जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की रिपोर्ट सत्र से पहले पॉजिटिव आने के कारण वह इस बार किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं ले पाए. हालांकि उन्होंने वर्चुअल तरीके से घर में रहकर कार्यवाही अवश्य देखी.

पूरे सत्र में मौजूद रहे सदन के सबसे बुजुर्ग सदस्य

मौजूदा समय में सदन के वरिष्ठतम सदस्य एवं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के हौसले को जयराम ठाकुर सहित सत्ता पक्ष व विपक्ष के सभी सदस्यों ने रेखांकित किया. सीएम जयराम ठाकुर ने तो सत्र की समाप्ति पर यहां तक कहा कि वीरभद्र सिंह के सदन में आने से सभी को एक हौसला सा मिलता है.

कोरोना पर सरकार को घेरने की कोशिश

मुकेश अग्रिहोत्री ने सरकार को घेरने का कोई भी मौका नहीं चूका. सत्र के पहले दिन जहां उन्होंने कोरोना पर सरकार को घेरने की कोशिश की, वहीं अंतिम दिन शिमला-मटौर फोरलेन मसले और 69 एनएच के मामले पर सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई.

मांगे मनवाने के लिए विपक्ष ने अपनाए कई तरीके

विपक्ष की तरफ से राजेंद्र राणा और जगतसिंह नेगी सहित अन्य सदस्यों ने सरकार को घेरने का प्रयास किया. विपक्ष ने अपनी मांगों को मनवाने के लिए वॉकआउट करने के अलावा विधानसभा अध्यक्ष का दरवाजा खटखटाने के साथ-साथ उनके कक्ष के बाहर धरना भी दिया. ये भी पहली बार देखा गया कि विपक्ष के सदस्य विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष के बाहर फर्श पर बैठ गए.

सीएम जयराम ने भी अपनाए तीखे तेवर

सत्ता पक्ष की बात की जाए तो इस बार सीएम जयराम ठाकुर ने अपने तेवर और तीखे कर दिए. सीएम जयराम ठाकुर ने आक्रामक अंदाज में विपक्ष को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया. सीएम ने कहा कि विपक्ष ने सत्र में रचनात्मक सहयोग नहीं दिया. उन्होंने दावा किया कि जनता कांग्रेस को करारा सबक सिखाएगी. उन्होंने तंज कसा कि कहां तो कांग्रेस के नेताओं को कोरोना संक्रमण से और बेहतर तरीके से निपटने के लिए सुझाव देने चाहिए थे और कहां विपक्ष ने सार्थक बहस से भागकर अपनी ऊर्जा नारेबाजी, वॉकआउट में लगाई. जनता इनसे पूछेगी कि संकट के समय में इन्होंने क्या योगदान दिया. इस तरह कांग्रेस ने बेशक सत्ता पक्ष को नियम-67 के तहत चर्चा के लिए मजबूर किया, परंतु खुद चर्चा में इंट्रस्ट नहीं दिखाया.

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